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दिल्ली
कार्बन व्यापार और भारत (Carbon trading and India)
Posted on 06 Jul, 2015 10:18 AMएक मोटे अनुमान के मुताबिक सन 2012 तक कार्बन ट्रेडिंग से कम स
वर्मीकल्चर से पर्यावरण-मित्र खाद
Posted on 04 Jul, 2015 04:34 PM वर्मीकल्चर विधि से खाद बनाने के लिए केंचुओं का प्रयोग किया जाता हैकीटनाशियों के जैविक विकल्प
Posted on 04 Jul, 2015 04:23 PM करीब चार दशक पूर्व प्रसिद्ध विज्ञान लेखिका रसेल कार्सन ने एक पुस्तराष्ट्रीय जल ग्रिड कितना आवश्यक
Posted on 03 Jul, 2015 08:34 PM भारत में वर्तमान में सुर्खियों में आई ‘राष्ट्रीय जल ग्रिड’ की संकलसूखे को कैसे पछाड़ा बागलकोट ने
Posted on 02 Jul, 2015 11:19 AMड्राउट प्रूफिंग (सूखा रोधन) हमारे शब्दकोष में हाल में आई नई अवधारणा है। लेकिन यह कौशल बागलकोट जिले के लिये नया नहीं है। स्थानीय किसानों ने जल संरक्षण के लिये ऐसे तमाम तरीके खोजे थे जो कि विशेषज्ञों की जानकारी में भी नहीं थे। यहाँ उनके अपनाए गए तरीकों पर पैनी नजर डाली जा रही है।जिस सूखे के कारण पूरे राज्य के अन्य जिलों में प्रतिकूल स्थितियाँ बनीं उनसे निपटने के लिये इन गाँवों ने कौन सी प्रणाली अपनाई? दुर्भाग्य से इस बारे में बहुत ही कम जानकारियाँ उपलब्ध हैं। फिर भी अनुभव बताता है कि बागलकोट के गुमनाम से दिखने वाले इन गाँवों में पारम्परिक विवेक मौजूद है जिसके कारण कम वर्षा का भी उन्होंने अधिकतम उपयोग किया और सूखे के असर को नियन्त्रित कर लिया।
कर्नाटक में बागलकोट जिला राज्य में सबसे कम वर्षा यानी 543 मिलीमीटर औसत के रूप में पहचाना जाता है। सरकारी अनुमान के अनुसार 2002-04 के बीच इस जिले में सूखे की स्थितियों और पानी की कमी के कारण 1500 करोड़ रुपए की फसल का नुकसान हुआ।हालांकि जिले के कुछ गाँव ऐसे हैं जिन्होंने कम वर्षा और सूखे की स्थितियों के विरुद्ध अपने को बचा लिया। हुनागुंडा और बेनाकट्टी तालुका में स्थित इन गाँवों के नाम हैं-बड़वाडागी, चित्तरागी, , रामवाडागी, कराडी, कोडीहाला, इस्लामपुर, नंदवाडागी, केसरभावी।
लेकिन जिस सूखे के कारण पूरे राज्य के अन्य जिलों में प्रतिकूल स्थितियाँ बनीं उनसे निपटने के लिये इन गाँवों ने कौन सी प्रणाली अपनाई?
जल संकट : कारण और निवारण
Posted on 25 Jun, 2015 03:36 PMआज भारत ही नहीं, तीसरी दुनिया के अनेक देश सूखा और जल संकट की पीड़ा से त्रस्त हैं। आज मनुष्य मंगल ग्रह पर जल की खोज में लगा हुआ है, लेकिन भारत सहित अनेक विकासशील देशों के अनेक गाँवों में आज भी पीने योग्य शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है।
वाष्प स्नान : रोग-निवारण की प्राकृतिक विधा
Posted on 25 Jun, 2015 03:25 PMस्नान शुरू से ही मनुष्य के जीवन का एक अनिवार्य अंग रहा है। हम सभी का यह साधारण अनुभव है कि इससे न केवल शारीरिक स्वच्छता बल्कि मानसिक प्रफुल्लता भी मिलती है। वाष्प स्नान हमारे सामान्य शीतल जल स्नान से थोड़ा भिन्न जरूर है किंतु हमारे स्वच्छता और प्रसन्नता के साथ-साथ अत्यंत सरल तरीके से अनेक रोगों से हमारे शरीर की रक्षा हो जाती है। वर्षों पहले एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान स्व. डॉ.
कुशल गोबर प्रबन्धन पर्यावरण सुरक्षा के लिए जरूरी
Posted on 22 Jun, 2015 01:44 PMऐसा माना जाता है कि गोबर में श्रीगणेश का वास है और यह शुभ होता है।मानसून की भविष्यवाणी और उसकी विविध आयामी हकीकत
Posted on 22 Jun, 2015 01:30 PM
भारतीय मौसम विभाग का अनुमान है कि सन् 2015 में भारत में सामान्य से लगभग 12 प्रतिशत पानी कम बरसेगा। मानसून की कमी का असर खेती पर होगा और उसका प्रतिकूल असर अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेगा। मानसून की कमी की सम्भावना को ध्यान में रख सरकार द्वारा आवश्यक इन्तज़ाम किये जा रहे हैं। जहाँ तक खाद्यान्नों का प्रश्न है तो देश में अनाज का पर्याप्त भण्डार उपलब्ध है इसलिये नागरिकों द्वारा अन्न की कमी महसूस नहीं की जाएगी।
मौसम विभाग द्वारा लम्बी अवधि की सालाना बरसात की मात्रा के आधार पर औसत वर्षा का निर्धारण किया जाता है। इसे सामान्य (Normal) वर्षा कहते हैं। आधुनिक युग में मौसम विभाग द्वारा हर साल वर्षा का पूर्वानुमान घोषित किया जाता है। बरसात के दिनों में वर्षा की दैनिक स्थिति की सम्भावना पर बुलेटिन जारी की जाती है।
