Posted on 03 May, 2015 04:34 PMकृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की हमेशा से ही रीढ़ रही है, पर सबसे अधिक दुश्वारियाँ इसी ने झेली हैं। भारत में अधिकांशत: जीविका और गुजारे की फसल का ही उत्पादन हो रहा है, ऊपर से दैवीय आपदा, ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से खेती झुरमुट हो गई और खेती करने वाला इसका शिकार होता जा रहा है। 65 बरस की कृषि नीति और इतने ही प्रतिशत के आसपास कृषि के कारोबारी तबाही के मंजर से न उबर रहे हैं और न ही कृषक होने का गौरव हासि
Posted on 02 May, 2015 04:12 PMप्रसाद की रचना कामायनी का प्रमुख पत्र मनु उस विनाश का साक्षी है, जहाँ देवताओं की घोर भौतिकतावादी प्रवृत्ति भोग, विलास और उनके द्वारा प्रकृति के अनियन्त्रित दोहन के परिणामस्वरूप पूरी सभ्यता का विनाश हो जाता है। सिवाय मनु के कोई भी नहीं बचता है। देव सभ्यता के प्रलय के बाद नए जीवन की उधेड़बुन में लगे मनु के जीवन में श्रद्धा और इड़ा नामक दो स्त्रियाँ आती हैं। श्रद्धा मनु को अहिंसक तथा प्रकृति प्रेमी बना
Posted on 30 Apr, 2015 02:45 PMआज फिर लखीमपुर खीरी के अवधी कवि व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक पण्डित बंशीधर शुक्ल जी याद आ गए और याद आ गई उनकी वह कविता ‘चौराहे पर ठाढ़ किसनऊ ताकए चारिहवार...।’ आज चारों तरफ किसानों के मरने की खबरे गूंज रही हैं। अभी कुछ अरसा पहले एक सरकारी दिवस था किसान दिवस और भारत के प्रधानमन्त्री रहे चौधरी चरण सिंह के जन्म दिवस को यह गरिमा प्रदान की भारत सरकार ने, बड़ी-बड़ी बातें हुईं, पर सब बेनतीजा,
Posted on 28 Apr, 2015 01:34 PMप्रकृति को नजदीक से देखने की ख्वाहिश बहुत से लोगों की होती है। लेकिन इसे नजदीक से जानने की तमन्ना बहुत कम लोगों की पूरी हो पाती है। यदि आप इसी तरह की तमन्ना रखते हैं और प्रकृति से जुड़कर अपना कैरियर संवारना चाहते हैं तो ‘नेचुरल रिसोर्स मैनेजर’ बनकर इन्हीं ख्वाबों को पंख देकर बेहतर कैरियर की रोमांचक उड़ान भर सकते हैं।
Posted on 28 Apr, 2015 12:49 PMनेपाल को केन्द्र बनाकर आया भूकम्प, हिमालयी क्षेत्र के लिए न पहला है और न आखिरी। भूकम्प पहले भी आते रहे हैं, आगे भी आते ही रहेंगे। हिमालय की उत्तरी ढाल यानी चीन के हिस्से में कोई न कोई आपदा, महीने में एक-दो बार हाजिरी लगाने जरूर आती है। कभी यह ऊपर से बरसती है और कभी नीचे सबकुछ हिला कर चली जाती है। अब इनके आने की आवृति, हिमालय की दक्षिणी ढाल यानी भारत, नेपाल और भूटान के हिस्से में भी बढ़ गई हैं। ये
Posted on 28 Apr, 2015 12:39 PMधरती के गुस्से का अहसास पिछले शनिवार-रविवार को भारत और नेपाल के लोगों ने हिमालयी त्रासदी के रूप में किया। हमारे पुरखों ने पृथ्वी और नदियों को माँ बताया है। पानी, पेड़ और प्रकृति को भी किसी न किसी देवी-देवता का नाम देते हुए उसका पर्याय बताया है। इसका आज धार्मिक मतलब निकालते हुए भले ही प्रगतिशीलता का लबादा ओढ़ककर हम खारिज कर दें। पर इन सब पर धर्म का मुअलम्मा चढ़ाने के पीछे उनकी मंशा यह थी कि हम आराध्
Posted on 27 Apr, 2015 01:04 PMप्राकृतिक आपदाएँ पहले भी आती रही हैं और भविष्य में भी आती रहेंगी। प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं तो अपने पीछे तबाही का मंजर अवश्य छोड़कर जाती हैं। अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इन आपदाओं से क्या सीख लेते हैं और भविष्य में इसके प्रति क्या योजना बनाते हैं। आदिकाल से ही जो प्राकृतिक आपदाएँ मानवता को समय-समय पर झकझोरती आई हैं उनमें से भूकम्प भी एक है। यदि हम भूकम्प की बात करें तो इसे प्राकृतिक आपदाओं