दिल्ली

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जल गुणवत्ता पर एक नजर
Posted on 22 Feb, 2011 04:09 PM बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है कि हिंदुस्तान में चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। यहां जितनी नदियां हैं, मैंने कहीं नहीं देखा है। यहां वर्षा इतनी जोरदार होती है कि कई-कई दिनों तक थमने का नाम नहीं लेती। बाबर के इस लेख से ज्ञात होता है कि पानी के मामले में यह मुल्क कभी आत्मनिर्भर था, लेकिन अब तो वह बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश कम हो रही है और जलस्रोत सूख
समन्वय-साधिका सरस्वती
Posted on 19 Feb, 2011 04:46 PM सरस्वती का नाम याद करते ही मन कुछ ऐसा विषष्ण होता है। भारत की केवल तीन ही नदियों का नाम लेना हो तो गंगा, यमुना के साथ सरस्वती आयेगी ही। अगर सात नदियों को पूजा में मदद के लिए बुलाना है तो उनके बीच बराबर मध्य में सरस्वती को याद करना ही पड़ता हैः

गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिन्धु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।

ग्रे वॉटर रिसाइकलिंग से पूरी होगी जरूरत
Posted on 19 Feb, 2011 12:05 PM

दिल्ली में पानी की खपत बढ़ती जा रही है। साथ ही, सप्लाई और डिमांड के बीच का अंतर भी बढ़ रहा है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए जल बोर्ड लोगों को पानी की बर्बादी कम करने के लिए जागरूक भी कर रहा है, लेकिन जानकारों का मानना है कि जब तक ग्रे वॉटर का पूरा इस्तेमाल नहीं किया जाता, तब तक पानी की कमी दूर नहीं हो पाएगी। दिल्ली में हर दिन 200 मिलियन गैलन पानी की रिसाइकलिंग की जा सकती है और इससे 25 लाख लोगों

भारत में मौसम पूर्वानुमान
Posted on 14 Feb, 2011 09:51 AM भारत में मौसम विज्ञान का आरंभ प्राचीन काल से माना जाता है। करीब तीन हजार ईसा पूर्व लिखे गए दार्शनिक ग्रंथ ‘उपनिषदों’ में पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर घूमने के कारण मौसमी परिवर्तन के साथ बादल बनने और बारिश होने पर गंभीर चिंतन किया गया है। करीब 500 ईसवीं में वराहमिहिर द्वारा लिखे ‘बृहत संहिता’ ग्रंथ में उस समय की वायुमंडलीय क्रियाओं के गहरे ज्ञान की झलक मिलती है। उस दौरान रचे गए ‘आदित्य जायते वृष्टि’
सभी मृत नदियां बयां कर रही हैं : नदी योजनाएं ही बीमार
Posted on 10 Feb, 2011 03:46 PM
यमुना पर बने आईटीओ या ओखला पुल से गुजरते हुए अक्सर आपको अपनी नाक बंद रखनी पड़ती है। शायद ही अब किसी को वह समय याद आता होगा जब पवित्र यमुनाजी में आपने डुबकी लगाई होगी। पर्यटक भी इस प्रदूषित, गंदी, बदबूदार नाले में परिवर्तित यमुना को देखकर भौचक्के रह जाते हैं।
पश्चिम से निर्यातित मौत की लागत
Posted on 03 Feb, 2011 10:55 AM दुखद स्थिति तो यह है कि एक ओर देश के बंदरगाहों पर विदेशी औद्योगिक
भारतीय मानसून की विशेषताएं
Posted on 02 Feb, 2011 02:30 PM

भारत की जलवायु के बारे में कहा गया है कि भारत में केवल तीन ही मौसम होते हैं, मानसून पूर्व के महीने, मानसून के महीने और मानसून के बाद के महीने। यद्यपि यह भारतीय जलवायु पर एक हास्योक्ति है, फिर भी भारत की जलवायु के मानसून पर पूर्णतः निर्भर होने को यह अच्छी तरह व्यक्त करता है।

दिमाग साफ तो नदी भी साफ
Posted on 01 Feb, 2011 01:28 PM

मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए। हम लोग अपने स्कूलों में अक्सर किताबों में देशप्रेम, संविधान, भूगोल जैसे विषय पढ़ते हैं। कुछ समझते हैं और कुछ-कुछ रटते भी हैं, क्योंकि हमें परीक्षा में इन बातों के बारे में कुछ लिखना ही होता है।

लेकिन, मुझे लगता है कि असली देशप्रेम अपने घर, अपने मोहल्ले और शहर भूगोल को समझने से शुरू होता है। हम जिस शहर में रहते हैं, उसमें कौन-सा पहाड़ या कौन-सी छोटी या बड़ी नदी है, कितने तालाब हैं? हमारे घर का पानी कहाँ से, कितनी दूर से आता है? क्या यह किसी और का हिस्सा छीनकर हमको दिया जा रहा है, क्या हमने अपने हिस्से का पानी पिछले दौर में खो दिया है, बरबाद हो जाने दिया है- ये सब प्रश्न हमारे मन में आज नहीं तो कल जरूर आने चाहिए।

कन्याकुमारी से कश्मीर तक, भुज से लेकर त्रिपुरा तक

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