दिल्ली

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खाद्य सुरक्षा बनाम असुरक्षित किसान
Posted on 17 Aug, 2013 12:55 PM प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम अंततः संसद में प्रस्तुत कर दिया ग
गंगा का प्रभात
Posted on 17 Aug, 2013 11:26 AM गलित ताम्र भव : भृकुटि मात्र रवि
रहा क्षितिज से देख,
गंगा के नभ नील निकष पर
पड़ी स्वर्ण की रेख!
आर-पार फैले जल में
घुलकर कोमल आलोक,
कोमलतम बन निखर रहा,
लगता जग अखिल अशोक!

नव किरणों ने विश्वप्राण में
किया पुलक संचार,
ज्योति जड़ित बालुका पुलिन
हो उठा सजीव अपार!

सिहर अमर जीवन कंपन से
खिल-खिल अपने आप,
गंगा की सांझ
Posted on 17 Aug, 2013 11:11 AM अभी गिरा रवि, ताम्र कलश-सा,
गंगा के उस पार,
क्लांत पांथ, जिह्वा विलोल
जल में रक्ताभ प्रसार;
भूरे जलदों से धूमिल नभ,
विहग छंदों – से बिखरे –
धेनु त्वचा – से सिहर रहे
जल में रोओं – से छितरे!

दूर, क्षितिज में चित्रित – सी
उस तरु माला के ऊपर
उड़ती काली विहग पांति
रेखा – सी लहरा सुंदर!
उड़ी आ रही हलकी खेवा
दो आरोही लेकर,
मैं गंगा हूँ माँ भी हूँ मैं
Posted on 17 Aug, 2013 09:18 AM मैं गंगा हूँ माँ भी हूँ मैं

कहते जग की कल्याणी मैं

शिव के ललाट में धारी हूँ

उनके करवट लेने से ही

मैं प्रलयंकर बन जाती हूँ

जो गरल पी गए थे हंस कर...

उन सर्जक की अभिलाषा हूँ

मैं सदियों से बन मोक्ष दात्री

अमृत घट, प्रलय ले साथ-साथ

हिमवान पिता का प्रणव घोष
मैं गंगा हूँ
Posted on 16 Aug, 2013 04:26 PM मैं गंगा हूँ-गंगा मैया,

हाँ, यही तो प्रसिद्ध नाम है मेरा,

भागीरथी, जान्हवी, मंदाकिनी, विष्णुपदी
अन्य कई नाम भी है मेरे,

महाराजा भागीरथ बने थे
भू-लोक पर मेरे अवतरण के कारक,

मैंने ही मोक्ष प्रदान किया था सगर पुत्रों को,

भारत राष्ट्र की आत्मा मुझमें बसती है,

यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा,
प्रिय, जीवन-नद अपार
Posted on 16 Aug, 2013 02:40 PM प्रिय, जीवन-नद अपार,
विशद पाट, तीव्र धार, गहर भंवर, दूर पार,-
प्रिय, जीवन-नद अपार।


(1)
इस तट पर ना जाने कब से रम रहे प्राण,
ना जाने कितने युग बीत चुके शून्य मान,
पर, अब की उस तट से आई है वेणु-तान,
खींच रही प्राणों को बरबस ही बार-बार?
प्रिय, जीवन-नद अपार।

(2)
किस विधि नद करूं तरित? पहुंचूं उस पार, सजन?
नौका-निर्वाण
Posted on 16 Aug, 2013 02:30 PM यह रात मौन – व्रत धारे,
ओढ़े यह चादर काली,
लक्षावधि झिलमिल आंखे
क्यों दिखा रही मतवाली?

अंतरतर का अंधियारा
यह फैल पड़ा भूतल में,
सब ओर यही है छाया-
वन-उपवन में, जल-थल में।

कैसे बन गया अंधेरा
मेरा वह रूप उजेला?
कैसे लुट गया अचानक
मेरे प्रकाश का मेला?

क्या तुम सुनना चाहोगे?
वह तो है एक कहानी;
नीर फ़ाउंडेशन को मिला राष्ट्रीय पर्यावरण रत्न पुरस्कार
Posted on 13 Aug, 2013 11:40 AM

विश्वमित्र परिवार द्वारा नई दिल्ली के श्री राम सेंटर में दिया गया पुरस्कार

अनशन की बाढ़ और वायदों का कीचड़
Posted on 12 Aug, 2013 01:50 PM लिखित आश्वासन के बावजूद काम न रोकने पर जब प्रो.
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