दिल्ली

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जी डी अनशन पर अब रिमांड का कहर
Posted on 09 Aug, 2013 11:09 AM यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस अनशन और सत्याग्रह को खुद कांग्र
GD Agrawal
रेत पर फैले सवालों के हरित जवाब
Posted on 08 Aug, 2013 10:53 AM निर्माण क्षेत्र के लिए रेत की देश में कोई कमी नहीं है। लेकिन सभी
river mining
मानसून की बेरुखी से किसान चिंतित
Posted on 06 Aug, 2013 02:50 PM देश के उत्तरी इलाकों में भी इस वर्ष उम्मीद से कम वर्षा हुई है। मौसम विभाग द्वारा प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो 1 जून से लेकर 21
भयभीत सत्ता की तानाशाह प्रतिक्रिया
Posted on 05 Aug, 2013 02:37 PM सरकारों व जनप्रतिनिधियों के संवेदनशून्य रवैये को देखते हुए यदि आग
Rajendra singh
धारा
Posted on 03 Aug, 2013 11:30 AM बहने दो,
रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है,
यौवन-मद की बाढ़ नदी की
किसे देख झुकती है?
गरज-गरज वह क्या कहती है, कहने दो-
अपनी इच्छा से प्रबल वेग से बहने दो।
सुना, रोकने उसे कभी कुंजर आया था,
दशा हुई फिर क्या उसकी?
फल क्या पाया था?

तिनका-जैसा मारा-मारा
फिरा तरंगों में बेचारा-
गर्व गँवाया-हारा;
अगर हठ-वश आओगे,
आत्महत्या का आरोप लगा जी डी को एम्स लाई पुलिस
Posted on 03 Aug, 2013 09:31 AM

प्रो जी डी अग्रवाल गंगा सुरक्षा की अपनी मांग को लेकर गत् 13 जून से अनशनरत हैं। ताजा समाचार यह है कि जी डी खुद अपने पैरों पर चल सकते हैं। बावजूद इसके उन पर आत्महत्या का आरोप लगाया गया है। उन पर धारा 309 ए के तहत् केस दर्ज किया गया है। मातृ सदन, हरिद्वार से उठाकर पुलिस पहले जेल ले गई। आज दिनांक 02 अगस्त को प्रातः करीब चार बजे तीन पुलिस कर्मियों की निगरानी में उन्हे नई दिल्ली लाया गया। फिलहाल उन्ह

Swami Sanand
पेड़-पौधों पर भारी पड़ता अंधविश्वास
Posted on 01 Aug, 2013 10:00 AM

आज भी न केवल धार्मिक ग्रंथ बल्कि विज्ञान भी इस बात को प्रमाणित कर चुका है कि बरगद और पीपल रात में भी वायुमंडल मे

तरंगों के प्रति
Posted on 30 Jul, 2013 12:44 PM किस अनंत का नीला अंचल हिला-हिलाकर
आती हो तुम सजी मंडलाकार?
एक रागिनी में अपना स्वर मिला-मिलाकर
गाती हो ये कैसे गीत उदार?
सोह रहा है हरा क्षीण कटि में, अंबर शैवाल,
गाती आप, आप देती सुकुमार करों से ताल।
चंचल चरण बढ़ाती हो,
किससे मिलने जाती हो?
तैर तिमिर-तल भुज-मृणाल से सलिल काटती,
आपस में ही करती हो परिहास,
हो मरोरती गला शिला का कभी डाँटती,
गीत
Posted on 30 Jul, 2013 12:43 PM अस्ताचल रवि, छलछल-छवि,
स्तब्ध विश्व कवि, जीवन-उन्मन,
मंद पवन बहती सुधि रह-रह
परमिल की कह कथा पुरातन।

दूर नदी पर नौका सुंदर,
दीखी मृदुतर बहती ज्यों स्वर,
वहाँ स्नेह की प्रतनु देह की
बिना गेह की बैठी नूतन।

ऊपर शोभित मेघ छत्र सित,
नीचे अमिट नील जल दोलित;
ध्यान-नयन-मन, चिन्त्य प्राण-धन
,किया शेष रवि ने कर अर्पण।
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