प्रिय, जीवन-नद अपार

प्रिय, जीवन-नद अपार,
विशद पाट, तीव्र धार, गहर भंवर, दूर पार,-
प्रिय, जीवन-नद अपार।


(1)
इस तट पर ना जाने कब से रम रहे प्राण,
ना जाने कितने युग बीत चुके शून्य मान,
पर, अब की उस तट से आई है वेणु-तान,
खींच रही प्राणों को बरबस ही बार-बार?
प्रिय, जीवन-नद अपार।

(2)
किस विधि नद करूं तरित? पहुंचूं उस पार, सजन?
कच्चा घट, जल-संकट, लहर, भंवर, तीव्र व्यजन;
भय है, गल जाएगा यह मम तरणोपकरण,
दुस्तर-सी लगती है जीवन की तीव्र धार;
प्रिय, जीवन-नद अपार।

(3)
यदि वाहित करना था जीवन-नद वेग युक्त,-
तो यह रज-भाजन भी कर देते अग्नि-भुक्त;
पर यह तो कच्चा है, हे मेरे बंध मुक्त,
है इसमें छिद्र कई, और अनेकों विकार;
प्रिय, जीवन-नद अपार।

(4)
पहले इसके कि करो सजन वेणु-वादन तुम-
पहले इसके कि करो स्वर का आराधन तुम-
भेज अग्नि-पुंज, करो पक्का रज-भाजन तुम,
छूट जाए जिससे यह तरण-मरण-भीति-रार;
प्रिय, जीवन-नद अपार।

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