बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
प्रिय, जीवन-नद अपार
Posted on 16 Aug, 2013 02:40 PMप्रिय, जीवन-नद अपार,विशद पाट, तीव्र धार, गहर भंवर, दूर पार,-
प्रिय, जीवन-नद अपार।
(1)
इस तट पर ना जाने कब से रम रहे प्राण,
ना जाने कितने युग बीत चुके शून्य मान,
पर, अब की उस तट से आई है वेणु-तान,
खींच रही प्राणों को बरबस ही बार-बार?
प्रिय, जीवन-नद अपार।
(2)
किस विधि नद करूं तरित? पहुंचूं उस पार, सजन?
नौका-निर्वाण
Posted on 16 Aug, 2013 02:30 PMयह रात मौन – व्रत धारे,ओढ़े यह चादर काली,
लक्षावधि झिलमिल आंखे
क्यों दिखा रही मतवाली?
अंतरतर का अंधियारा
यह फैल पड़ा भूतल में,
सब ओर यही है छाया-
वन-उपवन में, जल-थल में।
कैसे बन गया अंधेरा
मेरा वह रूप उजेला?
कैसे लुट गया अचानक
मेरे प्रकाश का मेला?
क्या तुम सुनना चाहोगे?
वह तो है एक कहानी;