थोर जोताई बहुत हेंगाई, ऊँचे बाँधै आरी।
खेत जो तोरे उपजै नाहीं, घाघै दीह गारी।।
शब्दार्थ- थोर – कम। हेंगाई – पाटे से सिरावन देना। आरी – मेंड़।
भावार्थ- कम जुताई से और बहुत बार हेंगाई करने से एवं मेंड़ बाँधने से अन्न की उपज अच्छी होती हैं। घाघ कहते हैं कि यदि ऐसा न हो तो मुझे गाली देना।
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