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मघा में मक्कर पुरवा डाँस
Posted on 23 Mar, 2010 03:12 PM
मघा में मक्कर पुरवा डाँस।
उत्तरा में भई सबकी नास।।


भावार्थ- मघा नक्षत्र में मकड़ा-मकड़ी और पूर्वा में डँस नामक कीड़े पैदा होते हैं और उत्तरा में ये सब स्वतः नष्ट हो जाते हैं।

माघ पूस बहै पुरवाई
Posted on 23 Mar, 2010 03:04 PM
माघ पूस बहै पुरवाई।
तब सरसों का माहो खाई।।


शब्दार्थ- माहो- एक प्रकार का कीड़ा।

भावार्थ- पूस और माघ महीने में यदि पुरवा हवा चली तो सरसों में माहो लग जाता है और फसल नष्ट हो जाती है।

नीचे ओद ऊपर बदराई
Posted on 23 Mar, 2010 03:01 PM
नीचे ओद ऊपर बदराई,
घाघ कहै गेरुई अब धाई।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि जब खेत नीचे से गीला हो और ऊपर बादल कई दिनों तक छाये रहें तो समझो कि अनाज (गेंहूँ) में गेरुई नामक रोग लग जायेगा।

जेकरे ऊखर लगै लोहाई
Posted on 23 Mar, 2010 02:59 PM
जेकरे ऊखर लगै लोहाई।
तेहि पर आवै बड़ी तबाही।।


शब्दार्थ- लोहाई- लाही या सूखारोग।

भावार्थ- जिस किसान के ईख में सूखा रोग लग गया, उसकी फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है और किसान तबाह हो जाता है।

चना में सरदी बहुत समाई
Posted on 23 Mar, 2010 02:57 PM
चना में सरदी बहुत समाई।
ताको जान गधैला खाई।।


भावार्थ- चना अधिक पानी नहीं चाहता क्योंकि उसमें सर्दी अधिक लगती है और जब ऐसा हो तो समझो उसको गंधेला नामक कीड़ा खा जायेगा और पैदावार कम हो जायेगी।

गोहूँ गेरुई गाँधी धान
Posted on 23 Mar, 2010 02:55 PM
गोहूँ गेरुई गाँधी धान।
बिना अन्न के मरा किसान।।


भावार्थ- जब गेरुई नामक रोग गेहूँ में और गन्धी नामक कीड़ा धान में लग गया तब समझो कि किसान को अन्न मिलने वाला नहीं है। वह अन्न के बिना ही मरेगा।

कर्क बुवावै काकरी
Posted on 23 Mar, 2010 02:53 PM
कर्क बुवावै काकरी, सिंह अबोनो जाय।
ऐसा बोले भड्डरी, कीड़ा फिर फिर खाय।।


भावार्थ- ककड़ी की बोवाई कर्क राशि में करनी चाहिए क्योंकि सिंह राशि में बोने से उसमें कीड़ा बार-बार लग जाता है, ऐसा भड्डरी का कथन है।

कुम्भे आवै मीने जाय
Posted on 23 Mar, 2010 02:51 PM
कुम्भे आवै मीने जाय।
पेड़ी लागै पातौ खाय।।


भावार्थ- कुम्भ राशि में गेहूँ की फसल में गेरुई रोग लगने लगता है और मीन राशि में समाप्त हो जाता है। यह रोग तने से शुरू होकर पत्तियों को खा जाता है।

फसल रोग सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 02:27 PM
ऊख कनाई काहे से।
स्वाती क पानी पाये से।।


शब्दार्थ- कनाई- ईख का एक रोग जिसमें उसके अन्दर के रेशे लाल हो जाते हैं और मिठास भी कम हो जाती है।

भावार्थ- स्वाती नक्षत्र का पानी पाने से ईख कन्नी हो जाती है अर्थात् उसमें रोग लग जाता है।

सावन भादों खेत निरावै
Posted on 23 Mar, 2010 02:25 PM
सावन भादों खेत निरावै।
तब गृहस्थ बहुतै सुख पावै।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि यदि किसान सावन और भादों मास में खेत की निराई करवा दे तो आगे उसे बहुत सुख मिलेगा।

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