झिलँगा खटिया बातल देह, तिरिया लम्पट हाटे गेह।
भाई बिगरि मुद्दई मिलंत, घाघ कहै ई विपत्ति क अंत।।
शब्दार्थ- झिलँगा-ढीली-ढाली। हाटे-बाजार। बिगरी-नाराज। मुद्दई-बैरी।
भावार्थ- यदि बान टूटी हुई चारपाई हो, शरीर में वात रोग हो, पत्नी बदचलन हो, बाई नाराज होकर शत्रु से दोस्ती कर ले और बाजार में घर हो तो घाघ का कहना है कि इससे बढ़कर कोई दूसरी विपत्ति नहीं हो सकती।
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