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एक पाख दो गहना
Posted on 25 Mar, 2010 02:59 PM
एक पाख दो गहना।
राजा मरै कि सहना।।


शब्दार्थ- सहना- अधीनस्थ राजकर्मचारी। नगर प्रधान।

भावार्थ- यदि एक पक्ष में दो ग्रहण लगे तो राजा या शाहंशाह में से कोई एक मरेगा।

कुदरत ने कुछ भी 'वेस्ट' नहीं बनाया है - विजय चारयार
Posted on 25 Mar, 2010 02:57 PM

विश्व जल दिवस के अवसर पर विशेष रेडियो श्रृंखला “जल है तो कल है” इंडिया वाटर पोर्टल प्रस्तुत कर रहा है। यह कार्यक्रम वन वर्ल्ड साउथ इंडिया के सहयोग से प्रस्तुत किया जा रहा है। 22 मार्च को प्रसारित कार्यक्रम के हमारे मेहमान विशेषज्ञ- विजय राघवन चारयार रहे। विजय चारयार आइआइटी में प्राध्यापक हैं। ‘सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड टेक्नॉलॉजी’ से जुड़े विजय चारयार इकोलॉजिकल सेनिटेशन, ग्रामीण प्रोद्यौगिकी और ग्रीन कम्पोजिट के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

 



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यह कार्यक्रम एआईआर एफएम रेनबो इंडिया (102.6 मेगाहर्टज) पर रोजाना 18-23 मार्च, 2010 तक समय 3:45- 4:00 शाम को आप सुन सकते हैं।

असाढ़ मास पुनगौना
Posted on 25 Mar, 2010 02:55 PM
असाढ़ मास पुनगौना। धुजा बाँधि के देखौ पौना।
जो पै पवन पुरब से आवै। उपजै अन्न मेघ झर लावै।।

अगिन कोन जो बहै समीरा। पड़ै काल दुख सहै सरीरा।।

दखिन बहै जल थल अलगीरा। ताहि समें जूझैं बड़ बीरा।।
तीरथ कोन बूँद ना परैं। राजा परजा भूखन मरैं।।

पच्छिम बहै नीक कर जानो। पड़ै तुसार तेज डर मानो।।
अद्रा भद्रा कृत्तिका
Posted on 25 Mar, 2010 02:52 PM
अद्रा भद्रा कृत्तिका, असरेखा जो मघाहिँ।
चन्दा ऊगै दूज को, सुख से नरा अघाहिँ।।


भावार्थ- द्वितीया का चन्द्रमा यदि आर्द्रा, भद्रा (भाद्रपद), कृत्तिका, अश्लेषा या मघा में उदित हो, तो मनुष्य को सुख ही सुख प्राप्त होगा।

नदियां, बांध और लोग
Posted on 25 Mar, 2010 02:51 PM


विश्व जल दिवस के अवसर पर विशेष रेडियो श्रृंखला “जल है तो कल है” इंडिया वाटर पोर्टल प्रस्तुत कर रहा है। यह कार्यक्रम वन वर्ल्ड साउथ इंडिया के सहयोग से प्रस्तुत किया जा रहा है। 21 मार्च को प्रसारित कार्यक्रम की मेहमान रहे साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रीवर्स एंड पीपल से जुड़े वैज्ञानिक हिमांशु ठक्कर जी।
 

नदियाँ, बाँध और लोग
ज्योतिष सम्बन्धी कहावतें
Posted on 25 Mar, 2010 02:50 PM
अखै तीज रोहिनी न होई। पौष, अमावस मूल न जोई।।
राखी स्रवणो हीन विचारो। कातिक पूनों कृतिका टारो।।
महि-माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।।


शब्दार्थ- तज-छोड़ना। मही-धरती। खल-दुष्ट।
हरहट नारि बास एकबाह
Posted on 25 Mar, 2010 12:20 PM
हरहट नारि बास एकबाह, परुवा बरद सुहुत हरवाह।
रोगी होइ होइ इकलन्त, कहैं घाघ ई विपत्ति क अन्त।।

भावार्थ- कर्कशा स्त्री, अकेले का घर, पराया बैल, आलसी हलवाहा, रोगी होकर अकेले रहना, घाघ कहते हैं कि इससे बढ़कर और कोई विपत्ति नहीं होगी।

हँसुआ ठाकुर खँसुआ चोर
Posted on 25 Mar, 2010 12:18 PM
हँसुआ ठाकुर खँसुआ चोर।
इन्हैं ससुरवन गहिरे बोर।।


भावार्थ- हँस कर बात करने वाले ठाकुर और खाँसी आने वाले चोर इन ससुरों को गहरे पानी में डुबो देना चाहिए।

सांझै से परि रहती खाट
Posted on 25 Mar, 2010 12:15 PM
सांझै से परि रहती खाट, पड़ी भड़ेहरि बारह बाट।
घर आँगन, सब घिन-घिन होय, घग्घा गहिरे देव डुबोय।।


शब्दार्थ- भड़ेहरि- बर्तन आदि। घिन-गंदा।

भावार्थ- जो स्त्री सांझ से ही खाट पर पड़ी सोती हो और उसके घर की चीजें तितर-बितर हों, और जिसका घर-आंगन धिनाता रहता हो, ऐसी औरत को घाघ के अनुसार गहरे पानी में डुबो देना ही श्रेष्ठ होता है।

सधुवै दासी, चौरवै खाँसी
Posted on 25 Mar, 2010 12:13 PM
सधुवै दासी, चौरवै खाँसी, प्रेम बिनासै हाँसी।
घग्घा उनकी बुद्धि बिनासै, खाय जो रोटी बासी।।


भावार्थ- साधु को दासी, चोर को खाँसी और प्रेम को हँसी (उपहास) नष्ट कर देती है। इसी तरह जो बासी रोटी खाते हैं उनकी भी बुद्धि नष्ट हो जाती है।

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