Skip to main content
Share your content
Ask a question
Toggle navigation
?
Ask a Question?
Main navigation
Home
Data
People & Content
Data Finder
MET Data
State of Sanitation
Articles
Books and Book Reviews
Interviews
People and Organisations
Research Papers
Success Stories and Case Studies
Travel and Tourism
Video, Audio and other Multimedia
Weekly News and Policy Updates
View all Articles
Opportunities & Events
Topics
Solid Waste
Rainwater Harvesting
Rural Sanitation
Agriculture
Groundwater
Privatization
Livestock
Mining
Springs
Schools
View All Topics
भारत
Term Path Alias
/regions/india
जेठ आगली परवा देखू
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:25 PM
जेठ आगली परवा देखू। कौन बासरा है यों पेखू।।
रबिबासर अति बाढ़ बढ़ाव। मंगलवारी ब्याधि बताय।।
बुधा नाज महँगा जो करई। सनिवासर परजा परिहरई।।
चन्द्र सुक्र सुरगुरु के बारा। होय तो अन्न भरो संसारा।।
जेठ पहिल परिवा दिना
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:22 PM
जेठ पहिल परिवा दिना, बुध बासर जो होइ।
मूल असाढ़ी जो मिलै, पृथ्वी कम्पै जोइ।।
भावार्थ-
यदि ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को बुधवार पड़े और आषाढ़ की पूर्णिमा को मूल नक्षत्र हो तो पृथ्वी दुःख से काँप उठेगी।
जो चित्रा में खेलै गाई
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:19 PM
जो चित्रा में खेलै गाई।
निहचै खाली साख न जाई।
भावार्थ-
यदि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा-गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, गो क्रीड़ा के दिन चित्रा नक्षत्र में चन्द्रमा हो तो फसल अच्छी होती है।
छः ग्रह एकै रासि बिलोकौ
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:17 PM
छः ग्रह एकै रासि बिलोकौ।
महाकाल को दीन्हों कोकौं।।
भावार्थ-
जब छः ग्रह एक ही राशि में हो तो समझो महाकाल को निमन्त्रण दिया गया है।
चैत पूर्णिमा होइ जो
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:14 PM
चैत पूर्णिमा होइ जो, सोम गुरौ बुधवार।
घर घर होइ बधावड़ा, घर घर मंगलचार।।
भावार्थ-
यदि चैत की पूर्णिम सोमवार, वृहस्पतिवार या बुधवार को पड़े तो घर-घर आनन्द की बधाई बजेगी और मंगलचार होगा।
चैत सुदी रेवतड़ी जोय
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:08 PM
चैत सुदी रेवतड़ी जोय। बैसाखहिं भरणी जो होय।।
जेठ मास मृगसिर दरसंत। पुनरबसू आषाढ़ चरंत।।
जितो नछत्र की बरत्यो जाई। तेतो सेर अनाज बिकाई।।
भावार्थ-
चैत सुदी (कृष्ण) में रेवती, वैशाख में भरणी, ज्येष्ठ में मृगशिरा और आषाढ़ में पुनर्वसु जितने भी घड़ी रहेगी, अनाज उतने सेर बिकेगा।
चैत अमावस जै घड़ी
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:06 PM
चैत अमावस जै घड़ी, परती पत्रा माँहिं।
तेता सेरा भड्डरी, कातिक धान बिकाहिं।।
भावार्थ-
पचांग में चैत की अमावस जितनी घड़ी की होगी कातिक में धान उतने ही सेर बिकेगा, ऐसा भड्डरी का मानना है।
गहता आथा गहतो ऊगै
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:04 PM
गहता आथा गहतो ऊगै।
तोऊ चोखी साख न पूगै।।
शब्दार्थ-
गहता-ग्रहण। आथा-अस्त। ऊगै-उदय।
भावार्थ-
यदि ग्रहण ग्रस्तोदय (लगा हुआ ही उदय) और ग्रसातास्त (लगा हुआ अस्त) हो तो फसल अच्छी नहीं होगी।
कै जु सनीचर मीन को
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:02 PM
कै जु सनीचर मीन को, कै जु तुला को होय।
राजा बिग्रह प्रजा छय, बिरला जीवै कोय।।
भावार्थ-
शनिश्चर मीन का हो या तुला का, दोनों ही परिस्थिति में राजाओं में युद्ध होगा, प्रजा का नाश होगा और शायद ही कोई जीवित बचे।
एक मास में ग्रहण जो दोई
घाघ और भड्डरी
Posted on 25 Mar, 2010 03:01 PM
एक मास में ग्रहण जो दोई।
तो भी अन्न महंगो होई।।
भावार्थ-
यदि एक महीने में दो ग्रहण लगे तो अन्न महँगा होगा।
Pagination
First page
« First
Previous page
‹ Previous
…
Page
797
Page
798
Page
799
Page
800
Current page
801
Page
802
Page
803
Page
804
Page
805
…
Next page
Next ›
Last page
Last »
Subscribe to भारत
×
Email Address