हिमालय : पृथ्वी पर लिखी एक रहस्यमय लिपि

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पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने हिमालय के ईको-सिस्टम यानी उसकी तमाम जैव विविधता, वनस्पति, नदियों, जल प्रपातों और विशाल ग्लेशियरों को बचाने का आह्वान किया तो याद आया कि हमारे देश में हिमालय नामक एक पर्वत भी है। नहीं तो हम शहरातियों के लिए हिमालय का मतलब है-कुल्लू, मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जीलिंग और शिलांग आदि। कोई तीर्थयात्री हुआ तो उसके लिए हिमालय का मतलब बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, मानसरोवर, हेमकुंड साहब, गंगोत्री और जमनोत्री आदि हो जाता है।

लेकिन हिमालय कोई एक पहाड़ नहीं, वह पहाड़ों की एक श्रृंखला है। काराकोरम, हिन्दू कुश से लेकर पामीर के पठार तक सभी पहाड़ विराट हिमालय पर्वत प्रणाली के तहत ही आते हैं। संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट (8849 मीटर) ही नहीं के-2 चोटी भी हिमालय का हिस्सा है।

एशिया के बाहर सबसे ऊँची चोटी दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में पड़ने वाली संसार की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखला एंड्स के अंतर्गत आती है। मगर इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 7000 मीटर से भी कम है, जबकि हिमालय में 100 से भी ज्यादा ऐसी चोटियाँ हैं, जो 7200 मीटर से भी ज्यादा ऊँची हैं। यानी दुनिया की सबसे ऊँची पर्वतमाला है हिमालय पर्वतमाला। इसे ही राष्ट्र कवि रामधारीसिंह दिनकर ने 'मेरे नगपति, मेरे विशाल', 'मेरी जननी के हिम किरीट' और मेरे भारत के दिव्य भाल आदि कहा है।

इस पर्वतमाला से संसार की अनेक प्रसिद्ध नदियाँ निकली हैं। इनमें सिन्धु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और यांगत्सी बड़ी नदियाँ हैं। इसी से झेलम, चिनाब, राबी, व्यास और सतलज नदियाँ निकली हैं तो उधर पूर्व में बांग्लादेश पहुँचकर गंगा और ब्रह्मपुत्र आपस में मिलकर बंगाल की खाड़ी में तिरोहित हो जाती हैं और यहीं दुनिया का सबसे बड़ा नदी-डेल्टा बनता है।

पिछले वर्षों में वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है कि हिमालय के ग्लेशियर क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन की वजह से खिसक-पिघल रहे हैं। ये तमाम हिमखंड ही हिमालय से निकलने वाली नदियों को भरते हैं। अनुमान लगाया गया है कि करीब 25 वर्षों में ये ग्लेशियर विलुप्त हो जाएँगे, क्योंकि इस इलाके में पृथ्वी का तापमान बढ़ जाएगा। इससे हिमालय से जुड़े देशों भारत, पाकिस्तान, चीन (तिब्बत), बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में बाढ़ और सूखे का प्रकोप बढ़ जाएगा।

इसका अर्थ होगा भारत सहित इन सभी देशों में करोड़ों लोगों का विस्थापन। कहते हैं कि ध्रुवों पर जितनी बर्फ जमा है उससे कुछ कम बर्फ हिमालय पर्वतमाला पर ग्लेशियरों के रूप में जमा है। संसार की बात तो नहीं जानते, लेकिन एशिया की कम से कम दस बड़ी नदियाँ हिमालय से निकलती हैं, जिन पर करीब एक अरब से भी ज्यादा लोगों की जीविका चलती है। गंगा, यमुना के उपजाऊ मैदान हिमालय ही ने तो बनाए हैं।

यदि आपने ऋषिकेष से बद्रीनाथ, केदारनाथ की भी यात्रा की हो तो हिमालय की सुंदरता को देखकर आप दंग रह जाएँगे। पेड़ों की अंधाधुँध कटाई और आबादी के बढ़ते बोझ के कारण बेशक पहाड़ नंगे भी हुए हैं, लेकिन सुदूर ऊँचाइयों पर हरे-भरे वन भी हैं। हिमालय में ही प्रसिद्ध फूलों की घाटी है। तरह-तरह के पेड़ हैं। औषधियाँ हैं और वनस्पतियाँ हैं। यह अनेक पशु-पक्षियों और जीव-जन्तुओं की स्थली है।

गोल्डन ईगल, नीली गर्दनवाली क्रेन, हिमालयी बुलबुल, स्नो गूज, स्नो कॉक्स, पहाड़ी मैना आदि पक्षी यहाँ अपना सौंदर्य और संगीत बिखेरते हैं। भूटान में लाल गर्दन, पीला मुख और काली चोंच वाला एक ऐसा पक्षी पाया जाता है जिसका सौंदर्य देखकर लोग दंग रह जाते हैं। इस पक्षी का नाम है ब्लाइथ ट्रैगोपान।

सर्दियों के दौरान अनेक पक्षी साइबेरिया और खासकर मध्य एशिया से हिमालय की झीलों के आसपास आकर ठहरते हैं। लंबी गर्दन वाले सफेद हंस से सुंदर पक्षियों का झुंड हिम वर्षा और बाज सरीखे किसी पक्षी के हमलों के बीच ऊँची चोटियाँ पार करता हुआ आगे बढ़ता है और हम जैसे लोग उस दृश्य को डाक्यूमेंट्री में देखकर ही मुग्ध हो जाते हैं।

भारत को छः ऋतुएँ ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और बसंत देने में भी हिमालय का योगदान है। भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत के वातावरण पर हिमालय का प्रभाव असंदिग्ध है। हिमालय मानसून की हवाओं को उत्तर में जाने से रोकता है। इसी से तराई क्षेत्र में भारी वर्षा संभव हो पाती है।

हिमालय में एक विचित्र आकर्षण है। कुछ अद्भुत और रहस्यमय। जैसे किसी ने पृथ्वी पर विराट लिपि में कुछ लिखकर छोड़ दिया हो। कि जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है और न ही पढ़ पाए। आज तक ब्राहमी लिपि कोई पढ़ नहीं पाया।

हिमालय का मध्य एशिया में रेगिस्तानों के निर्माण में योगदान स्वीकार किया जाता है और इसी के कारण ईरान की तरफ से आने वाली शरद की हवाएँ कश्मीर में बर्फबारी कराती हैं।

हिमालय का नाता धर्म और संस्कृति से भी गहरा है। हिन्दुओं के लिए यह तपोभूमि है तो बौद्धों ने यहाँ साधना की है और मठ बनाए हैं। हिन्दुओं के लिए हिमालय बेहद पवित्र है, जहाँ कैलाश मानसरोवर है, जो शिव का वास है। यह कई देवियों का आवास है तो सिख धर्म के भी दो-तीन तीर्थ स्थल हिमालय में हैं। उत्तराखंड में।

कई बार यति नामक हिम मानव को हिमालय में देखे जाने की खबरें मिली हैं। हिमालय में निश्चय ही कोई आकर्षण है। कोई जादू हैं। कहते हैं पाँचों पांडव द्रोपदी और एक कुत्ते के साथ अंत में हिमालय की ओर ही गए थे। एक-एक करके सब यात्रा में गिरते गए और अंत में धर्मराज युधिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुँचे थे। यह एक मिथक है, जो भारतीय मानस में दर्ज रहा है।

कथाकार संजय खाती ने अपने कहानी संग्रह 'बाहर कुछ नहीं था' में एक कहानी दी हैः स्वर्गारोहिणी। डायरी शैली में लिखी यह अद्भुत कहानी है। इसमें कथाकार शिखर पर इंद्रधनुष देखता है, जिसको उसका खच्चर वाला कुंदन स्वर्ग का पुल समझकर नतमस्तक है। यह कहानी उन सब लोगों को पढ़ना चाहिए जो हिमालय के सौंदर्य को देखना चाहते हैं लेकिन टूरिस्ट स्थलों तक जाकर और फोटो खींचकर लौट आते हैं।

लेखक ने इसमें सवाल उठाया है कि यह स्वर्गारोहण का मिथक आखिर किस चीज के लिए गढ़ा गया है। यह किसका प्रतीक है। यह कहानी हिमालय दर्शन की कहानी नहीं है, बल्कि हिमालय से साक्षात्कार की कहानी है। वर्षों पहले प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक नेत्रसिंह रावत ने 'पत्थर और पानी' नाम से यात्रा संस्मरण लिखे थे। हिमालय यात्रा के ये संस्मरण हवा की आवाजों और बढ़ती नदी की ध्वनियों और शोर के वर्णन से एक अलग हिलाय से हमारा साक्षात्कार कराते हैं।

हिमालयवासियों का जीवन निश्चय ही बेहद कठोर है, लेकिन हिमालय में विचित्र आकर्षण है। कुछ अद्भुत और रहस्यमय। जैसे किसी ने पृथ्वी पर विराट लिपि में कुछ लिखकर छोड़ दिया हो। जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है और न ही पढ़ पाए। आज तक ब्राहमी लिपि कोई पढ़ नहीं पाया। हिमालय तो फिर प्रकृति की अनूठी लिपि है।

पर्वत, पेड़, पक्षी, फूल, जीवन, वैराग्य, अध्यात्म, तप और फिर भी एक अजब रहस्यलोक। इसे इसके तमाम इको सिस्टम के साथ बचाना जरूरी है और इसे बचाना इससे जुड़े देशों का ही नहीं, समूची मनुष्यता का सरोकार बनना चाहिए, क्योंकि हिमालय अपने मौजूदा रूप में भी जीवित नहीं रखा गया तो हम भी नहीं रहेंगे। हिमालय रोजाना अनेक तरह से हमे रचता, गढ़ता है।

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