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भूकंप का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल
Posted on 01 Oct, 2011 11:23 AM

भूकंप से क्षति न हो, इसके लिए पहला सबक भूकंपरोधी मकानों का निर्माण है, हालांकि सिर्फ विशेष प्र

जन-आंदोलनों की आंच और परमाणु सपना
Posted on 26 Sep, 2011 04:23 PM

इसमें शक नहीं है कि देश में परमाणु सुरक्षा का स्तर काफ़ी निम्न है। हालांकि परमाणु बिजली का उत्प

सुरक्षित विकास बचाएगा धरती को
Posted on 26 Sep, 2011 03:07 PM

भूकंप से होने वाली क्षति कम करने के लिए विकास के कार्यक्रमों को सुरक्षित विकास में बदलने की पह

हरियाली और कैरियर का रास्ता
Posted on 26 Sep, 2011 12:39 PM

एक्सप‌र्ट्स कहते हैं कि आईटी के बाद ग्रीन जॉब्स में होगा बूम। क्या है ग्रीन जॉब्स?

नदियों के प्रवाह की रक्षा जरूरी
Posted on 24 Sep, 2011 06:09 PM

नदियों से पानी मोड़ने की उस हद तक ही अनुमति दी जाए जो कि नदी के पर्यावरणीय प्रवाह की सीमा से अध

नीम - एक बहुआयामी वृक्ष
Posted on 24 Sep, 2011 05:38 PM

मेलियासिए परिवार का नीम (अजादिरक्ता इंडिका) भारत में पाई जाने वाली सर्वाधिक उपयोगी और मूल्यवान वृक्ष-प्रजातियों में से एक है। यह पीएच 10 तक की अनेक प्रकार की मिटि्टयों में उग सकता है, जो कि इसे भारतीय उप महाद्वीप में एक सर्वाधिक बहुआयामी और महत्वपूर्ण वृक्ष बनाता है। इसके अनेक प्रकार के उपयोगों की वजह से, भारतीय कृषकों द्वारा इसकी खेती वैदिक काल से की गई

वन, वृक्ष और नदी का सरकारी प्रबंधन
Posted on 24 Sep, 2011 10:21 AM

भारत में प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और स्वामित्व कमोवेश सरकारी विभागों के ही हाथ में है। इस

इस शहर का क्या करें
Posted on 23 Sep, 2011 11:42 AM एक तरफ विकास और तरक्की के नए पैमाने गढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ बेकाबू आबादी, प्रदूषण, गंदगी और बीमारी के नए मर्कज भी बन रहे हैं। गांवों से बढ़ता पलायन और बिना किसी नापजोख के चल रहा शहरीकरण देश की कैसी तस्वीर बना रहा है, बता रहे हैं पंकज चतुर्वेदी

शहरीकरण का मतलब ही हो गया है रफ्तार। रफ्तार का मतलब है वाहन। और वाहन हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार से खरीदे गए ईंधन को पी रहे हैं और बदले में दे रहे हैं दूषित हवा। शहर को ज्यादा बिजली चाहिए। यानी ज्यादा कोयला जलेगा, ज्यादा परमाणु संयंत्र लगेंगे। शहर का मतलब है उद्योगीकरण और अनियोजित कारखानों की भरमार। नतीजा यह हुआ है कि देश की सभी नदियां जहरीली हो चुकी हैं। नदी थी खेती के लिए, मछली के लिए, दैनिक कार्यों के लिए, न कि गंदगी सोखने के लिए।

साल दर साल बढ़ती गर्मी, फैलता जलसंकट और मरीजों से पटते अस्पताल। इसी तरह की तमाम और समस्याएं हैं जो दिनोंदिन चिंता का विषय बनती जा रही हैं। माना जा रहा है कि इन मुश्किलों की एक बड़ी वजह पर्यावरण का विनाश है। पर्यावरण को नष्ट करने में शहरीकरण का बहुत बड़ा हाथ है। असल में देखें, तो संकट घटते जंगलों का हो या फिर साफ हवा या साफ पानी का। सभी के जड़ में विकास की वह अवधारणा है जिसमें शहररूपी सुरसा का मुंह फैलता ही जा रहा है। इसके निशाने पर है कुदरत और इंसान। शहरीकरण की रफ्तार इतनी तेज है कि कस्बे नगर बन रहे हैं और नगर, महानगर। देश की बहुसंख्यक आबादी नगरों की तरफ भाग रही है। यह पलायन काफी कुछ रोजी-रोटी से भी जुड़ा है। रोजगार, आधुनिक सुविधाएं और भविष्य की लालसा में लोगबाग अपने पुश्तैनी घर-बार छोड़कर शहर की चकाचौंध की ओर पलायन कर रहे हैं।
urbanization
परम्परागत जलाशयों का संरक्षण
Posted on 22 Sep, 2011 05:02 PM

वन-विनाश का प्रत्यक्ष प्रभाव वर्षा, वातावरण तथा जलस्रोतों पर पड़ता है। करोड़ों रुपया खर्च कर, ज

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