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घने वन या खतरनाक खनन, किसे चुनेंगे आप?
Posted on 14 Feb, 2012 04:19 PM 6,48,750 हेक्टेयर नोगो जोन वाले घने जंगल में से 71 प्रतिशत या 4,62,939 हेक्टेयर सघन वनक्षेत्र में खनन की मंजूरी
इंडिया इन ट्रांजिशनः प्रौद्योगिकी मानव के इरादों को बुलंद करती है
Posted on 14 Feb, 2012 01:00 PM अपने पर्यावरण की देशीय प्रकृति का ज्ञान संसाधनों के उपयोग, पर्यावरण के प्रबंधन, भूमि संबंधी अधिकारों के आवंटन और अन्य समुदायों के साथ राजनयिक संबंधों के लिए आवश्यक है। भौगोलिक सूचनाएं प्राप्त करना और उनका अभिलेखन समुदाय को चलाने के लिए एक आवश्यक तत्व है। इन सूचनाओं की प्रोसेसिंग और उसके आधार पर महत्वपूर्ण निर्णय लेना समुदाय के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, भले ही वह कोई घुमंतू जनजाति
खाद्य सुरक्षा बनाम सुरक्षित खाद्य
Posted on 12 Feb, 2012 09:36 AM

किसानों को अभी तो हरित क्रांति ने मारा है कल उसे बीज क्रांति मार देगी। बीजों का पेटेन्ट उसे मार देगा व ऐसे बीजों

Green revolution
वक्त आ गया है कि प्राधिकरण छोडें गंगा विशेषज्ञ?
Posted on 08 Feb, 2012 12:17 PM

पत्थर चुगान, रेत खनन तथा नदियों पर बांधों के निर्माण को लेकर नीति बने। प्रदूषण मुक्ति, नदी भू उपयोग, जलग्रहण क्ष

Ganga river
पशु-पक्षियों को आपदाओं का सहज नैसर्गिक पूर्वाभास होता है
Posted on 07 Feb, 2012 12:55 PM विकसित सभ्यता के इस दौर में ऐसा लगता है, जैसे मनुष्य प्रत्येक प्रकार की विपदाओं से निपटने में पूरी तरह सक्षम है। जबकि ऐसा है नहीं। पहले जब मनुष्य प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रहता था, तब उसे शायद आने वाली विपदाओं का पूर्वाभास हो जाता था। पशु-पक्षियों में आज भी इस तरह की क्षमतायें देखी जाती हैं। जरूरत है कि उनकी इस क्षमता का उपयोग किया जाये। हमारे अध्ययन बतलाते हैं कि भूकम्प से पूर्व पशु-पक्षी असा
पहाड़ों की पीड़ा
Posted on 07 Feb, 2012 10:17 AM

पर्यावरण संरक्षण के मकसद से ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में बाहरी लोगों के जमीन-जायदाद खरीदने पर कानूनन पाबंदी है, ले

राष्ट्रीय जल नीति 2012 पर सुझाव आमंत्रित
Posted on 06 Feb, 2012 03:15 PM ‘राष्ट्रीय जल नीति 2002’ के दस साल बाद ‘राष्ट्रीय जल नीति 2012’ का मसौदा प्रारूप लोगों की टिप्पणियों और सुझाव के लिए रखा गया है। केंद्र सरकार ‘राष्ट्रीय जल नीति 2012’ को अंतिम रूप देने से पहले सभी की राय लेना चाहती है। पानी जैसे तेजी से घट रहे प्राकृतिक संसाधन के उपयोग के प्रति लोगों को जिम्मेदारी का एहसास मसौदे की प्राथमिकता है इसको मानते हुए सरकार ने समाज के सक्षम तबकों को जल के उपयोग के बदले तर्कपूर्ण दर पर भुगतान की बात कही है।

‘राष्ट्रीय जल नीति 2012’ चेताती है कि पानी का असमान वितरण सामाजिक अशांति का सबब बन सकता है। मसौदे में स्पष्ट माना गया है कि देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट से जूझ रहा है। बढ़ती आबादी, शहरीकरण और बदलती जीवनशैली में पानी की मांग बढ़ रही है जो कि जल सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है।

पर्यावरणीय परिवर्तनों से जल पर पड़ने वाले प्रभाव इस नये मसौदे में काफी प्रमुखता से उठाये गए हैं। समुद्र सतह के बढ़ते स्तर, भूमिगत जल और सतह के जलस्रोतों का खारा होना, तटों का डूबना और बारिश की मात्रा में विभिन्नताओं के साथ ही बाढ़ और जमीन के कटाव तथा सूखे की समस्या आदि बातें मसौदे में प्राथमिकता के आधार पर कही गई हैं।

जल प्रबंधन में संभावनाएं
Posted on 06 Feb, 2012 11:11 AM समूचे विश्व में पानी की किल्लत के चलते जल संचयन, सरंक्षण जैसे कोर्स की मांग खूब बढ़ गई है। निश्चित तौर पर इनमें भी अब पेशेवरों की मांग है। इसी के मद्देनजर इग्नू में जल संचयन एवं प्रबंधन का कोर्स शुरू किया गया है। इस कोर्स के अंतर्गत पानी का प्रबंधन कैसे किया जाए, पानी का संरक्षण कैसे किया जाए जैसे विषयों के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी जाती है।
पानी के लिए फैल सकती है अशांति
Posted on 06 Feb, 2012 10:04 AM

जल की कमी पर सरकार ने चेताया

विकल्पों के लिए व्यापक आंदोलन
Posted on 04 Feb, 2012 11:38 AM

जलवायु बदलाव जैसे संकट के दौर में यह और भी जरूरी हो जाता है कि सभी पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं के अस्तित्व और भलाई

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