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पानी के निजीकरण की नीति
Posted on 26 Sep, 2012 11:28 AM सरकारों का उल्टा पेंडूलम चालू हो गया है पहले सरकारीकरण और अब निजीकरण का। भारत में जीने के साधनों का समाजीकरण करने की परंपरा रही है। भारत का समाज अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर संसाधनों का प्रबंधन करता रहा है। पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए जून 2012 में भारतीय जल नीति लाई गई है। भारत के कई शहरों में पीपीपी मॉडल के नाम पर जल वितरण का निजीकरण किया गया है जो बूरी तरह फेल रहा। फिर भी सरकार कोई
जल विद्युत के नाम पर तांडव
Posted on 26 Sep, 2012 10:42 AM देश के सभी पहाड़ी नदियों पर जल विद्युत परियोजना के लिए बांध बनाने पर सरकारें आमादा हैं। पहाड़ी नदियों पर जल विद्युत परियोजना का बनना स्थानीय निवासियों के अपनी जमीन तथा रोजगार के लिए एक खतरनाक संकेत है। हमारे देश की नदियां लोगों की जीवन और संस्कृति से गहरी जुड़ी हुई हैं लेकिन इनके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर पहाड़ी क्षेत्र के जल, जंगल, जमीन को बर्बाद कर रहे हैं बता रहे हैं डॉ.
Hydro power project
मानव निर्मित बाढ़
Posted on 25 Sep, 2012 03:31 PM पर्यावरण भूवैज्ञानिक के. एस. वैद्य उत्तराखंड में रहते हैं और पूर्व में प्रधानमंत्री की विज्ञान सलाहकार परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं। प्रस्तुत साक्षात्कार स्पष्ट करता है कि बाढ़ के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार हैं।-

हिमालय के साथ ही साथ भारत के अन्य हिस्सों में लगातार बाढ़ की पुनरावर्ती हो रही है। किस भूगर्भीय परिस्थिति के चलते इनमें वृद्धि हो रही है?
गंगा की गाय को बचाओ
Posted on 22 Sep, 2012 01:12 PM गंगा हमारी आस्था की प्रतीक है, जो अनेक सभ्यताओं और परम्पराओं को अपने में समेटे हुई है। गंगा में बढ़ते प्रदूषण की वजह से न केवल गंगा मैली हुई है बल्कि इसकी गोद में पल रहा हमारा राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन (गंगा की गाय) का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। गंगा के साथ डॉल्फिन का संबंध बहुत पुराना है, भगीरथ के तपस्या से जब गंगा स्वर्ग से उतरी थीं तो उनके साथ डॉल्फिन भी थी।
मैला होता हिमालय
Posted on 21 Sep, 2012 03:55 PM हिमालय की चोटियां इंसानी दखल की वजह से प्रदूषित होती जा रही हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर लगातार तापमान बढ़ रहा है और इस क्षेत्र के ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। स्थिति को जल्द ही काबू नहीं किया गया तो खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। मामले का जायजा ले रहे हैं जयसिंह रावत।

हिमालय के सारे ग्लेशियर एक साथ नहीं सिकुड़ रहे हैं। सिकुड़ने वाले ग्लेशियरों के पीछे खिसकने की गति भी एक जैसी नहीं है और न ही एक ग्लेशियर की गति एक जैसी रही है। अगर ग्लेशियर के पिघलने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग होता तो यह गति घटती और बढ़ती नहीं। हिमालय में सत्तर फीसद से अधिक ग्लेशियर पांच वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले हैं और ये छोटे ग्लेशियर ही तेजी से गायब हो रहे हैं। मशहूर ग्लेशियर विशेषज्ञ डीपी डोभाल भी अलग-अलग ग्लेशियर के पीछे हटने की अलग-अलग गति के लिए लोकल वार्मिंग को ही जिम्मेदार मानते हैं।

जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर जबरदस्त यातायात जाम की स्थिति आ गई हो और एवरेस्ट और फूलों की घाटी जैसे अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में हजारों टन कूड़ा-कचरा जमा हो रहा हो तो हिमालय और उसके आवरण-ग्लेशियरों की सेहत की कल्पना की जा सकती है। अब तो कांवड़ियों का रेला भी गंगाजल के लिए सीधे गोमुख पहुंच रहा है, जबकि लाखों की संख्या में छोटे-बड़े वाहन गंगोत्री और सतोपंथ जैसे ग्लेशियरों के करीब पहुंच गए हैं। हिमालय के इस संकट को दरकिनार कर अगर अब भी हमारे पर्यावरण प्रेमी ग्लोबल वार्मिंग पर सारा दोष मढ़ रहे हैं तो फिर वह सचाई से मुंह मोड़ रहे हैं। एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे के चरण समुद्रतल से करीब 8,850 मीटर की ऊंची एवरेस्ट की चोटी पर पड़ने के बाद से अब तक तीन हजार से अधिक पर्वतारोही वहां अपना झंडा गाड़ जुके हैं।
अराजकता फैलाने वाला साबित होगा, भूमालिकों से जलाधिकार छीनना
Posted on 12 Sep, 2012 10:19 AM “नदियोंको मां नहीं, कारपोरेट बनाना है।
लहरों से पुण्य नहीं, पौंड कमाना है।।
सोना होता होगा नीला तुम्हारे लिए।
हमें तो पानी को रक्त में बदल जाना है।’’

groundwater
पवन ऊर्जा क्षेत्र की निकली हवा
Posted on 11 Sep, 2012 02:20 PM नवीन एवं नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय ने जीबीआई योजना वर्ष 2009 में प्रारंभ की थी, जिसमें पवन
पानी को पॉली कचरे से बचाओ!
Posted on 11 Sep, 2012 01:31 PM ऐसा नहीं है कि बढ़ते पॉलीथीन कचरे को रोका नहीं जा सकता या पॉलीथीन
Poly waste
ਸਿੰਜੈਂਟਾਂ ਦੀ ਜੀ.ਐੱਮ. ਮੱਕੀ ਬਣੀ ਪਾਲਤੂ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦਾ ਕਾਲ
Posted on 10 Sep, 2012 02:54 PM ਕੰਪਨੀ ਖਿਲਾਫ਼ ਦਰਜ਼ ਹੋਇਆ ਅਪਰਾਧਿਕ ਮਾਮਲਾ

ਬਾਇਓਟੈੱਕ ਦੈਂਤ ਸਿੰਜੈਂਟਾ ਉੱਪਰ, ਇੱਕ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਦੌਰਾਨ (ਇਹ ਮੁਕੱਦਮਾ 2007 ਵਿੱਚ ਖਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ) ਇਹ ਛੁਪਾਉਣ ਕਰਕੇ ਕਿ ਇਸਦੀ ਜੀ ਐੱਮ ਮੱਕੀ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਦੀ ਹੈ, ਅਪਰਾਧਿਕ ਮਾਮਲਾ ਦਰਜ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ।
पानी
Posted on 06 Sep, 2012 12:59 PM पानी पर लिखी ये कवितायें नर्मदा जल सत्याग्रह के जन-संघर्ष को समर्पित हैं और पानीदार होने का दिखावा करने वाली इस असंवेदनशील व्यवस्था के विरोध में एक बयान है। इस सत्याग्रह ने पानी को एक संघर्ष के प्रतीक में बदल दिया है...।

पानी –I


कहते हैं
जब कुछ नहीं था
पानी था।

और जब
नहीं बचेगा कुछ भी

तब
पानी रहेगा।
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