Posted on 17 Jan, 2015 01:31 PMआज देश में कहीं भी सादा नमक नहीं मिल सकता। पशु आहार और बर्फ बनाने वाली फैक्टरियों के नाम पर कहीं सादे नमक के डले, बोरे दिख जाएं तो अलग बात, लेकिन हमारे आपके भोजन में अब आयोडीन मिला नमक ही इस्तेमाल होता है। इसकी शुरुआत सन् 1990 से हुई है। उससे पहले की परिस्थिति बता रहा है डाॅ ज्योति प्रकाश का यह लेख जो उन्होंने सन् 1986 में लिखा था- घेंघा या थायराइड रोग पर सामाजिक दृष्टि से कुछ बुनियादी काम करते हुए।
नमक आयुक्त ने घोषणा की है कि सन् 1990 तक देश में बनने-बिकने वाले सारे नमक को आयोडीन युक्त कर दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह कदम आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा, थायराइड रोग से लड़ने के लिए उठाया गया है।
घेंघा रोग से लड़ने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। पिछले 20 साल से ‘राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम’ इसी उद्देश्य से चलाया जा रहा है, पर वह समस्या को कुरेद तक नहीं पाया। शोषण की शिकार और कई सामाजिक कारणों से आयोडीन की कमी झेल रही गरीब आबादी को आज तक आयोडीन वाला नमक न दे पाने वाले जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों की आलोचना कम नहीं हुई है।
Posted on 16 Jan, 2015 04:52 PMक्या बिना पढ़े, बिना स्कूल गए कोई इंजीनियर बन सकता है? आज तो यही जवाब मिलेगा कि ऐसा नहीं हो सकता।
इंजीनियर बनना हो तो स्कूल जाना होगा। वहां भी सिर्फ अपनी मेहनत, अपनी योग्यता काम नहीं आएगी। ट्यूशन तो पुराना पड़ गया शब्द है, उससे काम नहीं चलेगा। सब तो यही बताएंगे कि इंजीनियर बनाना है तो कोचिंग का इंतजाम भी करना पड़ेगा। इस सबमें जो खर्च आएगा, वह भी हर घर तो जुटा नहीं पाता। तो कुछ बच्चे चाह कर भी, योग्य होते हुए भी इस दौड़ में पीछे रह जाते हैं।
जो इस मोड़ से आगे बढ़ गए, उन्हें अभी पांच साल और बिताने हैं। तब वे इंजीनियर बन पाएंगे। तो जरा जोड़कर तो देखो भला कितने साल हो गए?