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प्रकृति नियन्त्रित जल प्रबन्ध
Posted on 21 Jan, 2015 09:48 AM
आदिकाल से पृथ्वी पर पानी का प्रबन्ध, प्रकृति, करती आई है। यह प्रबन्ध, प्रकृति द्वारा पानी को सौंपे गए लक्ष्यों की पूर्ति का प्रबन्ध है जिसे वह, प्राकृतिक घटकों की सहायता से पूरा कर रहा है। वे घटक, एक ओर जहाँ विभिन्न कालखण्डों में मौजूद जीवन की निरन्तरता एवं विकास यात्रा को निरापद परिस्थितियाँ उपलब्ध कराते रहे हैं तो दूसरी ओर भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प
water
हर गाँव तक सिंचाई सुविधा का लक्ष्य
Posted on 20 Jan, 2015 11:25 AM

प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना के लिए सालाना कोष


नई दिल्ली (नेदु)। केन्द्र सरकार की योजना देश के हर गाँव तक सिंचाई सुविधा पहुँचाने की है। इसके लिए सरकार द्वारा 1,000 करोड़ रुपए की सिंचाई योजना की शुरुआत की जा रही है जिसमें विभिन्न मन्त्रालयों द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं को समाहित किया जाएगा।
गंगा सफाई अभियान पर ‘सुप्रीम’ सख्ती
Posted on 20 Jan, 2015 11:20 AM गंगागंगा सफाई अभियान को चलते हुए 30 साल का एक लम्बा समय व्यतीत हो चुका है लेकिन आज भी गंगा की स्थिति जस-की-तस बनी हुई है। प्रदूषण के स्तर पर तो गंगा की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही ह
मैं गंगा क्यों मैली हूँ
Posted on 20 Jan, 2015 10:03 AM हूँ पतित पावनी,जीवन दायी
मैं गंगा क्यों मैली हूँ
तट मेरे सजते कालजयी पर्वोत्सव से
स्वयं क्यों क्षीणा हूँ
कल मैं अपनी लहरों के संग
खूब किल्लोलें करती थी
अमृत सा था ये जल
सबके परलोक सुधारा करती थी
जन गण की प्यास बुझाती
मैं फिर क्यों प्यासी रहती हूँ
महा गरल से त्रस्त हो रही
मरती जाती हूँ
साक्षी रही इतिहास बदलते
जूलॉजी ग्रेजुएट्स के लिए ढेरों हैं नौकरियां
Posted on 19 Jan, 2015 12:40 PM

जूलॉजी एक ऐसा विषय है, जो न केवल बेहतरीन कॅरिअर के अवसर उपलब्ध करवाता है, बल्कि प्रकृति से जुड़

बांध, आपदा प्रबंधन और विस्थापन
Posted on 19 Jan, 2015 09:41 AM

प्रदेश सरकार को उत्तराखंड की आपदा से सबक लेना होगा और विद्युत परियोजना के संदर्भ में अपनी आपदा

मत रोको, गंगा को बहने दो…
Posted on 18 Jan, 2015 04:01 PM हमारी सभ्यता का उद्भव और विकास नदियों के किनारों से जुड़ा रहा है। नदियों से शुरू हुआ हमारा विकास क्रम आज नदियों के विनाश तक जा पहुंचा है। गंगा और यमुना हमारे जीवन का आज भी आधार-भूत तत्व हैं। स्वांतः सुखाय विकास की आधुनिक अवधारणा आज नदी रूपी हमारी जीवनदायी स्रोत के लिए अभिशाप बन गई है। पतित् पावनी गंगा पिछले तीन दशकों से मुक्ति की बाट जोह रही है। गंगा मुक्ति की चिंता सरकार से ज्यादा देश की सर्वोच्च अदालत को है और वह हर बार सरकार से यक्ष प्रश्न करती है कि गंगा की सफाई कब तक होगी? इसी सवाल की पड़ताल करती सामयिकी।

.देश की पावन नदी गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। उत्तर भारत की यमुना, पश्चिम की साबरमती, दक्षिण की पम्बा की भी हालत बहुत ही खराब है। देश की कई नदियां जैविक लिहाज से मर चुकी हैं। इसका असर पर्यावरण के साथ लोगों पर भी पड़ रहा है।

वर्ल्ड रिसोर्सेज रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गंदा पानी पीते हैं। पीलिया, हैजा, टायफाइड और मलेरिया जैसी कई बीमारियां गंदे पानी की वजह से होती हैं। रासायनिक खाद भी भू-जल को दूषित कर रहे हैं। कारखानों और उद्योगों की वजह से हालत और बुरी हो गई है।
निवेश सन्धियों से बढ़ते जोखिम
Posted on 18 Jan, 2015 12:12 PM नागरिकों के विकास के लिए मानव अधिकार नीतियों एवं पर्यावरण संरक्षण क
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मत पियो या कम पियो?
Posted on 17 Jan, 2015 03:37 PM

एक समय स्वीडन के लोग अन्य देशों की तुलना में ज्यादा शराब नहीं पीते थे। लेकिन अब यहां प्रति व्यक

Anupam Mishra
असली बीमारी तो लूट की है
Posted on 17 Jan, 2015 01:31 PM आज देश में कहीं भी सादा नमक नहीं मिल सकता। पशु आहार और बर्फ बनाने वाली फैक्टरियों के नाम पर कहीं सादे नमक के डले, बोरे दिख जाएं तो अलग बात, लेकिन हमारे आपके भोजन में अब आयोडीन मिला नमक ही इस्तेमाल होता है। इसकी शुरुआत सन् 1990 से हुई है। उससे पहले की परिस्थिति बता रहा है डाॅ ज्योति प्रकाश का यह लेख जो उन्होंने सन् 1986 में लिखा था- घेंघा या थायराइड रोग पर सामाजिक दृष्टि से कुछ बुनियादी काम करते हुए।

. नमक आयुक्त ने घोषणा की है कि सन् 1990 तक देश में बनने-बिकने वाले सारे नमक को आयोडीन युक्त कर दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह कदम आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा, थायराइड रोग से लड़ने के लिए उठाया गया है।

घेंघा रोग से लड़ने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। पिछले 20 साल से ‘राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम’ इसी उद्देश्य से चलाया जा रहा है, पर वह समस्या को कुरेद तक नहीं पाया। शोषण की शिकार और कई सामाजिक कारणों से आयोडीन की कमी झेल रही गरीब आबादी को आज तक आयोडीन वाला नमक न दे पाने वाले जिम्मेदार नेताओं और अधिकारियों की आलोचना कम नहीं हुई है।
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