पर्यावरण पर्यटन : सामुदायिक विकास का प्रभावी साधन

पर्यावरण पर्यटन को पर्यावरण उद्योग में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला बाजार समझा जाता है। विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार इस क्षेत्र में दुनियाभर में हर साल पाँच प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है और इससे होने वाली कमाई घरेलू उत्पादों के 6 प्रतिशत के बराबर सकल उपभोक्ता चीजों के 11.4 प्रतिशत के बराबर है। इस उद्योग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इससे फायदा उठाना और उपलब्ध अवसरों का उपयोग करना स्थानीय युवकों का काम है और इसके लिए उन्हें पर्यावरण पर्यटन में उद्यमिता सम्भालनी होगी। पर्यटन गरीबी दूर करने, रोजगार सृजन और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने का सशक्त साधन है। 27 सितबर, 2003 को दुनिया भर में विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया जिसका मुख्य विषय यही था। इस विषय से ही पता चल जाता है कि पर्यटन विकासशील देशों के लिए कितना सार्थक और महत्वपूर्ण है। हालांकि पर्यटकों को अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रोम में सन् 1963 में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय यात्रा एवं पर्यटन सम्मेलन में बहुत सरल शब्दों में इसका वर्णन किया गया है।

इस सम्मेलन की परिभाषा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जब किसी अन्य देश की आनन्द पाने, छुट्टी बिताने, स्वास्थ्य ठीक-ठाक करने, तीर्थ यात्रा, खेलकूद, व्यापार अथवा किसी अन्य उद्देश्य से या बैठकों और सम्मेलन में शामिल होने के लिए यात्रा करता है और वहाँ कम-से-कम 24 घण्टे ठहरता है तो उसे पर्यटक कहा जाता है। इसी तरह से घरेलू पर्यटकों को परिभाषित करने के लिए उपर्युक्त वाक्यांश के पहले भाग की जगह यह रखना पड़ेगा कि वह व्यक्ति जो अपने सामान्य परिवेश से बाहर के स्थानों पर यात्रा करके पहुँचता है और वहाँ रुकता है।

खाली समय की गतिविधियों में पर्यटन प्रमुख है यह दुनियाभर में लोकप्रिय है और अब इसमें व्यापार और ऐसी ही अन्य गतिविधियाँ भी शामिल हो गई हैं। विश्वव्यापी पर्यटन संगठन ने जो भविष्यवाणियाँ की हैं, उनसे ऐसे संकेत मिलते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन औसतन 4 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ता रहेगा।

भारत में वर्ष 2008 के दौरान कुल अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक वर्ष 2007 की संख्या के मुकाबले 1.9 प्रतिशत ज्यादा रहे। लेकिन अन्तरराष्ट्रीय मन्दी, आतंकवाद और स्वाइन फ्लू जैसी महामारी के फैलने के कारण वर्ष 2009 के दौरान अन्तरराष्ट्रीय पर्यटकों का आना-जाना अनुमानों के अनुसार चार प्रतिशत कम रहा। इनसे वर्ष 2008 के दौरान लगभग 944 करोड़ अमरीकी डॉलर की कमाई होने का अनुमान है। वर्ष 2009 के दौरान इस कमाई में 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसी बात से जाहिर हो जाता है कि पर्यटन क्षेत्र अन्तरराष्ट्रीय घटनाओं से कितना ज्यादा प्रभावित होता है।

इस क्षेत्र से होने वाली मोटी कमाई के चलते पर्यटन क्षेत्र एक फलता-फूलता उद्योग बन गया है। इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है और इसमें स्थानीय पर्यावरण में सुधार लाने तथा परिवहन, होटल, खान-पान और हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में सेवाओं और माल की गुणवत्ता बेहतर करने की शक्ति निहित है।

पर्यटन से स्थानीय युवकों को नए-नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मिलते हैं। पर्यटन से सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आती है और पर्यटकों तथा उनके मेशबानों के बीच बेहतर और समझदारी पूर्ण सम्बन्ध विकसित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इससे विदेशी मुद्रा की मोटी कमाई होती है जो किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। सच्चाई यह है कि दुनिया के 83 प्रतिशत विकासशील देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा अर्जित करने का प्रमुख साधन है।

अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक पर्यटन सोसाइटी (टीआईईएस) ने वर्ष 1990 में पर्यावरण पर्यटन की परिभाषा देते हुए कहा था कि यह उन प्राकृतिक क्षेत्रों का जिम्मेदार सफर है, जो पर्यावरण की रक्षा और स्थानीय लोगों के जनजीवन में सुधार लाते हैं। सम्भवतः यह पर्यटन का सबसे महत्वपूर्ण प्रकार है जिसमें गंतव्य और उद्देश्य के आधार पर पर्यटन को विद्वानों और उद्योगों ने परिभाषित किया है। इस लेख के उद्देश्य से पर्यटन के विशेष वर्गों, जैसे सांस्कृतिक पर्यटन, भू-पर्यटन, विरासत पर्यटन, वन्य जीवन पर्यटन, साहसिक पर्यटन, धार्मिक पर्यटन, शीतकालीन पर्यटन, स्वास्थ्य पर्यटन आदि अनेक वर्ग हैं जो पर्यावरण पर्यटन के अन्तर्गत आते हैं।

हमारे देश में घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षक किस्म के पर्यटन स्थल मौजूद हैं। इनमें से अनेक पयर्टन स्थल पर्यावरण पर्यटन के अन्तर्गत आएँगे। वर्ष 2006 में इन चुनिन्दा स्थलों पर 46.7 लाख अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक आए जबकि इसके अगले वर्ष यानी 2007 में 51.7 लाख पर्यटक आए। लेकिन उन्हीं कारणों से, जिनका जिक्र इसी लेख में पहले किया जा चुका है, वर्ष 2008 में विदेशी सैलानियों की संख्या घटकर 50.7 लाख पर आ गई।

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र पर्यावरण पर्यटकों के लिए अनोखे और बेजोड़ स्थल प्रस्तुत करता है, जहाँ वे क्षेत्रीय, पर्यावरण सम्बन्धी, जलवायु सम्बन्धी, नस्ल सम्बन्धी, सांस्कृतिक, भाषायी यहाँ खान-पान और परिधान सम्बन्धी भिन्नताएँ देख सकते हैं। इस प्रकार की विविधता पूर्वोत्तर क्षेत्र के अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, सिक्किम और त्रिपुरा में देखने को मिलेगी।

इन क्षेत्रों में देश की कुल आबादी के 3.79 प्रतिशत के बराबर करीब 3.88 करोड़ लोग करीब चार सौ समुदायों में रहते हैं और तरह-तरह की 200 भाषाएँ और बोलियाँ बोलते हैं। इनमें हर समुदाय की अपनी सांस्कृतिक परम्पराएँ हैं और ये देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 7.98 प्रतिशत के बराबर 2.62 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रहते हैं।

इनमें कुछ ऐसी छोटी बस्तियाँ हैं जिनकी कुल आबादी 250 से कम है लेकिन जिन्हें देखकर आगन्तुकों को घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय स्तर की रंगारंग विभिन्नता देखने को मिलती है। इस क्षेत्र में जहाँ विदेशी सैलानियों को हिमालय की हिममण्डित चोटियाँ देखने को मिलती हैं, वहीं पटकोई शृंखला की कम ऊँची उत्तरी पहाडि़यों के भी दर्शन होते हैं जो क्षेत्र के 70 प्रतिशतभाग में फैली हैं और जहाँ दो बड़ी नदियों (ब्रह्मपुत्र और बराक) की घाटी में अनेक छोटी-छोटी जलधाराएँ बहती नजर आती हैं।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में अनेक छोटी-बड़ी पहाडि़याँ हैं जो समुद्र तल से 50 मीटर से लेकर 5,000 मीटर तक ऊँची हैं। इन्हें मिलाकर पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र ऐसा दृश्य प्रस्तुत करता है जहाँ जून से सितम्बर तक की वर्षा ऋतु में बहुत भारी (226 मिलीमीटर से 602 मिलीमीटर) तक वर्षा होती है।

दक्षिणी मेघालय में स्थित चेरापूँजी दुनिया का अधिकतम वर्षा वाला क्षेत्र है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में 56.9 प्रतिशत इलाके में घने जंगल हैं, जबकि वर्ष 2004-05 के आँकड़ों के अनुसार कुल भारत में जंगलों वाले इलाके का प्रतिशत 22.83 था। अरुणाचल प्रदेश में जहाँ 93.75 प्रतिशत जंगलों का इलाका है वहीं, असम में इस प्रकार का क्षेत्र 24.6 प्रतिशत है और ये वन ऊष्म कटिबन्धीय जैव विविधता के अनोखे नमूने प्रस्तुत करते हैं।

भारत का एक तिहाई क्षेत्र जैव विविधताओं से भरा है। वनस्पति क्षेत्र में पूर्वोत्तर का इलाका बहुत समृद्ध है। वहाँ 7,500 प्रकार के फूल, 700 तरह के सलबमिसरी पुष्प (आर्विफड), 5,864 तरह के खट्टे फल और विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु मिलते हैं।

इनमें 3,624 प्रकार के कीट, 236 प्रकार की मछलियाँ 64 तरह के उभयचर, 137 प्रकार के सरीसृप, 561 प्रकार के पक्षी और 166 प्रकार के स्तनपायी जीव पाए जाते हैं।

पर्यावरण पर्यटन मानव, प्रकृति और संस्कृति के बीच एक रचनात्मक सम्पर्क स्थापित करता है और पूर्वोत्तर क्षेत्र के पर्यटन स्थलों तक लोगों को आकर्षित करने की इनमें अपार क्षमता है। पर्यावरण पर्यटन का विचार सन् 2001 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने शुरू किया और इस उद्देश्य से उसने 26 जिओपार्क चिन्हित किए। जिओपार्कों को उन राष्ट्रीय संरक्षित क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया गया है जहाँ अनेक भौगोलिक दाय वाले स्थल मौजूद हैं। इन स्थलों में विशेष महत्व वाले दुर्लभ और सौन्दर्यशास्त्र की दृष्टि से विशेष अपील वाली वस्तुएँ और जीव-जन्तु होते हैं।

इनके विषय संरक्षण, शिक्षा और पर्यटन माने जाते हैं जो आर्थिक गतिविधि, स्थानीय उद्यमों और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र की पर्यावरण पर्यटन सम्पदाओं में हिममण्डित पर्वत शिखर, हिमालय की विशाल पर्वत शृंखलाओं के ढलानों वाली चोटियाँ, दुर्गम दर्रे, झीलें, गरम पानी के सोते, तवांग जैसे चित्रालिखित से कस्बे, माजुली जैसे नदियों के बीच विकसित दुनिया के सबसे बड़े द्वीप हैं।

विश्व प्रसिद्ध काजीरंगा और अन्य वन्य प्राणी अभयारण्य, रिजर्व फॉरेस्ट, गन्धक वाले गरम पानी के सोते और असम में आकर्षक विरासत वाले स्थल, पहाड़ी गुफाएँ, चित्रवत सेवन सिस्टर्स जलप्रपात और डाकी फॉल सिस्टम, बरापानी सियाजोन आदि जैसे जलप्रपात तथा मेघालय के रानीखोर क्षेत्र में डायनासोर के जीवाश्म, आकर्षक लोकतक झील, मणिपुर का यासिरी फॉसिल पार्क, मिजोरम की राजधानी आइजोल आदि शामिल हैं।

इस क्षेत्र में और भी अनेक प्राकृतिक स्थल हैं जिन्हें पर्यटक देख कर आजीवन याद रखेंगे। इनमें नगालैंड की जापाफू चोटी (3,048 मीटर ऊँची) और जूकू घाटी शामिल है। सिक्किम की चांगू झील, नाथूला दर्रा और गरम पानी के सोते बहुत मशहूर हैं। त्रिपुरा के उदयपुर जिले में फॉसिलवुड पार्क और अनेक विश्व धरोहर स्थल पर्यटकों के केन्द्र हैं। इन सभी प्राकृतिक सम्पदाओं के साथ पूर्वात्तर क्षेत्र पर्यावरण पर्यटन का स्वर्ग कहा जा सकता है। इस इलाके में दुनिया की सबसे ज्यादा समृद्ध प्राकृतिक विविधताएँ मौजूद हैं जिन्हें बनाए रखने की जरूरत है।

पर्यावरण पर्यटन को पर्यावरण उद्योग में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला बाजार समझा जाता है। विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार इस क्षेत्र में दुनियाभर में हर साल पाँच प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है और इससे होने वाली कमाई घरेलू उत्पादों के 6 प्रतिशत के बराबर सकल उपभोक्ता चीजों के 11.4 प्रतिशत के बराबर है। इस उद्योग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। इससे फायदा उठाना और उपलब्ध अवसरों का उपयोग करना स्थानीय युवकों का काम है और इसके लिए उन्हें पर्यावरण पर्यटन में उद्यमिता सम्भालनी होगी।

अगर देश के शिक्षित बेरोजगार ग्रामवासी युवक अपने ही क्षेत्र में उपयुक्त स्थलों पर रचनात्मक ढंग से उद्यमिता सम्भाल लें तो उनके लिए व्यापार के अवसरों की कोई कमी नहीं रह जाएगी। अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक आमतौर पर पाँच सितारा होटलों की संस्कृति से ऊब चुका है। इन पर्यटकों के लिए एक नई शुरुआत की जा सकती है। इनके लिए विशेष रूप से भवन निर्माण, कलाकारों द्वारा कॉटेजों के डिजाइन तैयार किए जा सकते हैं जो लकड़ी के लट्ठों पर टिके और ग्रामीण दृश्यों का आभास करा सकें, लेकिन उनमें पाँच सितारा होटलों जैसी सुखा-सुविधाएँ और सफाई हो।

ये स्वच्छ पर्यावरण में बने हों और साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाए। इसके लिए भारत निर्माण जैसी ग्राम विकास परियोजनाओं से सहायता ली जा सकती है, जिसकी मदद से वहाँ सड़क सम्पर्क, पानी-बिजली की आपूर्ति, टेलीफोन सुविधा आदि उपलब्ध कराई जा सकती है। इन सेवाओं को बनाए रखने की जरूरत भी स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी कमाने के अवसर प्रदान कर सकती है।

अब जबकि व्यावसायिक प्रशिक्षण पर बहुत जोर दिया जा रहा है, स्थानीय युवा वर्ग को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करना मुश्किल नहीं होगा। इस दिशा में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय ने पहले ही जरूरी कदम उठा लिए हैं और उसने पर्यटन क्षेत्र के लिए विशेष प्रशिक्षण शुरू कर दिया है। यह ध्यान देने की बात है कि जिन लोगों ने यह प्रशिक्षण पूरे किए, उन्हें उद्योग में सुनिश्चित काम मिल गया है।

पर्यटकों के लिए कैम्पिंग स्थलों के संचालन करने से भी स्थानीय युवकों को काम मिल सकता है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित जनशक्ति की जरूरत पड़ेगी। खान-पान के लिए भी कुछ विशेषज्ञों की सहायता लेनी पड़ेगी। खान-पान की सूची में स्थानीय पकवान, स्थानीय फल और सब्जियाँ, मीट, दूध, पोल्ट्री, अण्डे, तथा मछलियाँ स्थानीय रूप से प्राप्त की जा सकती हैं। कुछ ग्रामवासी प्रयास करके इन चीजों की आपूर्ति कर सकते हैं।

कुछ स्थानीय युवकों को गाइड के रूप में काम करने के अवसर मिल सकते हैं। ये आने वाले पर्यटकों को अड़ोस-पड़ोस की पहाडि़यों और जंगलों की सैर करा सकते हैं और स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं तथा ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की तरह अपने समुदाय और लोक जीवन का परिचय दे सकते हैं।

स्थानीय पर्यटन स्थलों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके ये नाम कमा सकते हैं। स्थानीय बुनकर और कारीगर अपने उत्पाद प्रदर्शित करके पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। इन कारीगरों को अपने हस्तशिल्प और बनाए गए परिधानों को पर्यटकों के सामने प्रस्तुत करने के अवसर दिए जा सकते हैं।

अनेक पर्यटक उनकी बनाई गई चीजों को स्मृति चिन्ह के रूप में खरीदकर अपने साथ ले जाएँगे। इस प्रकार की माँग बढ़ जाने पर स्थानीय कारीगर माँग के मुताबिक नई डिजाइनों का समावेश कर सकते हैं और इस तरह अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार से समुदाय का सशक्तीकरण होगा और इससे खा़सतौर से स्थानीय महिलाओं की आय बढ़ेगी और वे आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगी।

काजीरंगा वन्यप्राणी अभयारण्य जैसे विश्व विख्यात पर्यटन स्थल से लगे स्थानों पर इस प्रकार के अनेक उद्यम विकसित हो गए हैं और वे अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की ऐसी सभी जगहों पर इस प्रकार के छोटे-मोटे उद्योगों का नेटवर्क विकसित किया जाए और पर्यटकों का उनके साथ परिचय कराया जाए।

राज्य पर्यटन विभागों को इस तरफ खासतौर से ध्यान देना होगा और उन्हें आस-पास के ग्रामवासी, शिक्षित बेकार युवकों को आस-पास ही रोजगार के अवसर देने के लिए काम करना होगा। इससे ग्रामीण पर्यावरण की प्रक्रिया में सुधार आएगा और कपड़े की बुनाई, हस्तशिल्प आदि ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में साक्षरता दर काफी ऊँची है और एक बार स्थानीय युवा वर्ग पर्यटन सेवा की प्रक्रिया में शामिल हो गया तो उसका विस्तार होता रहेगा और हर युवा-युवती राष्ट्रीय और सामुदायिक समृद्धि में अपना योगदान करके पड़ोसी गाँव के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सकेंगे।

पूर्वोत्तर क्षेत्र परिषद की क्षेत्रीय योजना के औद्योगिक क्षेत्र के विजन दस्तावेज में आधारभूत स्तर पर छोटे उद्योगों की स्थापना के लिए सुदृढ़ नींव तैयार करने की बात कही गई है। इस प्रकार के उद्योग समूह पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में फैले होंगे और वे परिवार, समुदाय और उद्यम स्तर पर सेवाओं और उत्पाद सुविधाओं के केन्द्र बनेंगे। इस प्रकार से वे स्थानीय उत्पादों के जरिए स्थानीय उद्यम का मूल्यवर्धन करेंगे और उद्यमियों, युवकों, किसानों, कारीगरों जैसे प्रशिक्षित लोगों के जरिए लाभप्रद उद्यम शुरू कर सकेंगे।

इस प्रकार से पूर्वोत्तर क्षेत्र में द्वितीयक क्षेत्र की नींव सुदृढ़ होगी। पूर्वोत्तर क्षेत्र शिक्षा परिषद ने भी एक विशेष सम्पूर्ण एक वर्षीय प्रशिक्षण की परिकल्पना की है, जो प्रमुख रूप से उस शिक्षित बेरोजगार युवा वर्ग के लिए होगी, जो उद्यमिता शुरू करने का इच्छुक होगा। इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट हाल ही में प्राप्त हुई है और उसकी जाँच की जा रही है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में जहाँ 84 प्रतिशत से ज्यादा लोग गाँवों में रहते हैं, पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा देने में रुचि लेने वाले लोग इससे खासतौर से लाभान्वित हो सकेंगे और वे पर्यावरण पर्यटन को सामुदायिक विकास का सशक्त साधन बना सकेंगे।

लेखक पूर्वोत्तर परिषद के सदस्य हैं।
ई-मेल: ppshri@gmail.com

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Post By: Shivendra
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