Posted on 11 Jan, 2015 12:20 AMस्केलेटल फ्लोरोसिस के मरीजों के लिए उम्मीद की नयी रोशनी सामने आयी है। गया में राज्य भर के हड्डी रोग विशेषज्ञ एकजुट होकर इस मसले पर विचार-विमर्श करेंगे। यह कांफ्रेंस बोध गया में 13-15 फरवरी के बीच होगा। यह जानकारी कांफ्रेंस की स्वागत समिति के अध्यक्ष डॉ फरहत हुसैन और आयोजन सचिव डॉ प्रकाश सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि इस कांफ्रेस में नेशनल ऑर्थोपेडिक एसोसियेशन के कम से कम पांच पूर्व सचिव भाग लेंगे।
Posted on 04 Jan, 2015 12:02 PM 1. मुंगेर के खैरा गाँव में फ्लोराइड युक्त जल की समस्या पर मुख्यमन्त्री गम्भीर और कहा सिर्फ सरकार की नौकरी नहीं कीजिए, बल्कि भगवान से भी डरिए
2. 5 मार्च 2015 तक योजना पूरा करने के निर्देश मुख्य सचिव फिर 5 जनवरी को पटना में खैरा की स्थिति की करेंगे समीक्षा
Posted on 02 Jan, 2015 04:38 PMमॉनसून आने में अभी शायद देर है!लेकिन बिहार की अधिकांश नदियों में मॉनसून की आहटें अभी से सुनाई देने लगी हैं। उन नदियों में भी, जहां साल के अधिकतर दिनों पानी की बजाय रेत भरी रहती है। खासकर, बिहार की वो नदियां, जो अपने पानी के बहाव के लिए तो कम लेकिन अपने किनारे बसे गांवों में बहने वाले लहू की रंगत के लिए ज्यादा विख्यात हैं।
Posted on 29 Dec, 2014 01:10 PMजब कोई अपने शहर से दूर रहता है, तो अपने शहर को पुकारता है। परंतु इस शीला को क्या हो गया... ‘ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे...’ पटना में एमए करते समय, उसके उसने छात्रावास से एक खत लिखा था - ‘मुंगेर शहर नहीं है। वहां के दिन, शवयात्रा से लौटे लोगों की तरह इतने अधिक उदास और टूटे हुए होते हैं, कि वे और ज्यादा उदास हो ही नहीं सकते... मुंगेर शहर नहीं, एक दार्शनिक है... अकेला, उदास, चुप-चुप और इसे कभी भूला नहीं जा सकता है, कम से कम अपने अस्वीकृत क्षणों में तो नहीं....’
मगर उस दिन, शीला अपने शहर को भूल गयी थी। मैं भूल गया था। मुंगेर के तमाम लोग भूल गये थे। ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे... ओ तोइयलो शोधागार। और हर पुकार, प्रतिध्वनि की तरह वापस लौट आयी था। बरौनी, पत्थर का बुत। एक सख्त ऐब्स्ट्रैक्ट चेहरा।
Posted on 24 Dec, 2014 04:55 PM कचहरिया डीह बिहार के नवादा जिले का एक बदनसीब टोला है। रजौली प्रखण्ड के हरदिया पंचायत में स्थित इस गाँव को आस-पास के लोग विकलांगों की बस्ती कहते हैं।
71 घरों वाले इस छोटे से टोले के सौ के करीब जवान लड़के-लड़कियाँ चलने-फिरने से लाचार हैं। उनकी हड्डियाँ धनुषाकार हो गई हैं। यह सब तीन दशक पहले शुरू हुआ जब अचानक इस बस्ती के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा तय सीमा से काफी अधिक हो गई और बस्ती स्केलेटल फ्लोरोसिस के भीषण प्रकोप का शिकार हो गया।
हालाँकि मीडिया में लगातार यहाँ की परिस्थितियों पर खबरें आने से एक फायदा तो यह हुआ कि सरकार का ध्यान इस ओर गया और यहाँ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित हो गया। मगर देखरेख के अभाव में पिछले दिनों वह चार माह से खराब पड़ा था, महज दस दिन पहले यह ठीक हुआ है।