बांध, बैराज और जलाशय

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पोलावरम बांध के रास्ते में नई बाधा
Posted on 09 Nov, 2010 10:08 AM

आंध्र प्रदेश की लगभग 60 वर्ष पुरानी पोलावरम परियोजना के निर्माण में एक और बाधा सामने आ गई है।


अब केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि उसने इस परियोजना के संबंध में पड़ोसी राज्यों उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक सुनवाई के बिना ही काम कैसे शुरू करवा दिया।

नोटिस में कहा गया है कि अगर राज्य सरकार ने इसका जवाब दस दिनों के भीतर नहीं दिया तो उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा।

उत्तराखंडः प्रकृति नहीं विकास को कोसें
Posted on 15 Oct, 2010 03:43 PM अनियंत्रित और मैदानी प्रकृति का विकास उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पड़ोस में लगी आग यदि हम नहीं बुझाएगें तो हमारा घर भी जल कर भस्म हो जाएगा। पूरा उत्तरी भारत इस बार उत्तराखंड की बाढ़ की भयावहता का विस्तार बन कर रह गया। इस विभीषिका का पुनरावृति रोकने के लिए आवश्यक भी है कि पहाड़ों को नैसर्गिक रूप से बचे रहने दिया जाए।-का.सं.सितम्बर के तीसरे सप्ताह की अखण्ड बारिश ने पूरे उत्तराखण्ड को तहस-नहस करके रख दिया था। अनुमान है कि इस दौरान दो सौ लोग तथा एकाध हजार पशु मारे गए। एक हजार मकान और फसल से भरे खेत भी नष्ट हो गए थे और अनेक सड़कें भी बह गई। वर्ष 1956, 1970 एवं 1978 में भी इस प्रकार की बारिश हुई थी। लेकिन तब इस प्रकार की तबाही नहीं हुई थी। मेरे बचपन में जहां गोपेश्वर गांव की आबादी 500 थी वह आज 15000 हो गई है। नए फैले हुए गोपेश्वर में बरसात के दिनों में टूट-फूट एवं जल-भराव की घटना कभी कभार होती रहती हैं लेकिन जो पुराना गांव है उसमें अभी तक इस प्रकार की गड़बड़ी नहीं के बराबर है। गोपेश्वर मन्दिर के नजदीक भूमिगत नाली पानी के निकास के लिए बनी थी जिसमें जलभराव की नौबत ही नहीं आती थी।

रेणुका बांध परियोजना पर पर्यावरण मंत्रालय की रोक
Posted on 14 Oct, 2010 05:57 PM

आखिर जो होना था, वह हो गया। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश की रेणुका बांध परियोजना पर रोक लगा दी है। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 31 अगस्त 2010 की तिथि वाले अपने पत्र में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में प्रस्तावित रेणुका बांध परियोजना के लिए हिमाचल प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड के आवेदन पर परियोजना को अनुमति देने से इनकार कर दिया। मंत्रालय को यह अहम निर्णय ल

टिहरी बांध के मामले में सर्वोच्च अदालत के आदेश का उल्लंघन
Posted on 02 Oct, 2010 05:43 PM

टिहरी बांध के संबंध में एन. डी. जयाल बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मुकदमे में उच्चतम न्यायालय के माननीय न्यायाधीश आर. वी. रविन्द्रन एवं माननीय न्यायाधीश एच. एल. गोखले की पीठ ने उत्तराखंड राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को 17 सितंबर 2010 को आदेश दिया कि वे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप बंद करें और प्रभावित लोगों का पुनर्वास कार्य करें। उन्हें छः सप्ताह के अंदर स्थिति एवं कार्यवाही रिपोर्ट दाखिल करना है। हालांकि उच्चतम न्यायालय का फैसला काबिले तारीफ है लेकिन इसमें टीएचडीसी एवं राज्य सरकार को अपनी जिम्मेदारी पूरा करने की जरूरी गंभीरता का अभाव है।

 

याचिकाकर्ता एड्वोकेट कोलिन गोंसाल्विस एवं एड्वोकेट संजय पारिख द्वारा उजागर किये गये समस्याओं पर अदालत ने राज्य सरकार एवं टीएचडीसी को कई अहम मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर दिया है। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि बांध में पानी का स्तर बढ़ने के कारण भागीरथी नदीघाटी में तीन गांवों रौलाकोट, नाकोट, स्यांसु के डूबने की आशंका है। वास्तव में,

तबाही के बांध
Posted on 29 Sep, 2010 09:26 AM ऐसा लगता है कि देश के प्रसिद्ध बांध भाखड़ा का, जिसे गोविंद सागर भी कहते हैं, संचालन तदर्थ और कामचलाऊ ढंग से किया जा रहा है, जो असंख्य लोगों और उनकी जीविका के लिए तो खतरनाक है ही, इस बांध से जिन क्षेत्रों में जलापूर्ति हो रही है, वहां भी भारी संकट उत्पन्न हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण इसी महीने तब दिखा, जब बांध की दीवार पर झुकाव देखा गया। यह 1988 की विनाशकारी घटना का दोहराव लगता है, जब भीषण बाढ़ के
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विवाद के केंद्र में तिपाईमुख
Posted on 15 Jul, 2010 12:04 PM
मणिपुर में छह हजार करोड़ रुपए की लागत से प्रस्तावित तिपाईमुख पनबिजली परियोजना का विरोध पड़ोसी देश बंगलादेश करता रहा है। साथ ही मणिपुर के गैर सरकारी संगठन भी इसके खिलाफ आंदोलन चलाते रहे हैं। विरोध और आलोचना को नजरअंदाज करते हुए हाल ही में इस परियोजना की आधारशिला रखी गई।
प्रदूषण और अवर्षण से दम तोड़ रहा रिहंद
Posted on 30 Nov, 2009 09:01 PM

उत्तर भारत में उर्जा संकट बेकाबू होने का खतरा


अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए। गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है, अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत् इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी, लेकिन इस वर्ष का खतरा ज्यादा बड़ा है।
प्रदूषण के अथाह ढेर पर बैठा रिहंद समूचे उत्तर भारत में अभूतपूर्व उर्जा संकट की वजह बन सकता है। लगभग 15,000 मेगावाट के बिजलीघरों के लिए प्राणवायु कहे जाने वाले रिहंद बाँध की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आने वाले दिनों में रिहंद के पानी पर निर्भर बिजलीघरों से उत्पादन ठप्प हो सकता है। आज रिहंद बाँध यानि कि पंडित गोविन्दवल्लभपंत सागर जलाशय का स्तर 848.7 फिट रिकॉर्ड किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.7 फिट कम और वास्तविक न्यूनतम जलस्तर से मात्र 18.7 फिट अधिक है। अगली बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए
Rihand
सिर्फ बांधों के फायदे मत गिनाइए
Posted on 26 Nov, 2009 08:07 AM ये प्रतिगामी विकास है, प्रलय की ओर ले जाने वाला, सारी वसुधा को तापमान वृध्दि के बुखार की तपन में धकेलने वाला है ये विकास। संसार इस विकास से हुए विध्वंस को जान गया है, परेशान है कि समाधान कहां से लाएं लेकिन हमारे हुक्मरां हैं कि अभी भी लकीर के फकीर बने हुए हैं। उन्हें विद्युत उत्पादन के वे तरीके सूझ ही नहीं रहे हैं जिनसे हमारा आज रौशन तो होगा ही हमारे आने वाला कल भी रौशन रहेगा। विस्थापन की मार से दूर हमारी दुनिया सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों के प्रति तब और ज्यादा प्रतिबध्द होगी।देश में बांधों की बाढ़ आ गई है। हिमाचल प्रदेश से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक और उत्तराखण्ड से लेकर सुदूर केरल तक बांधों की पौ-बारह है। ‘ले बांध, दे बांध’ की तर्ज पर सरकारी मशीनरी बांध प्रस्तावों पर तेजी से कार्रवाई कर रही हैं। एक-एक नदी के प्रवाह पर दर्जनों बांध परियोजनाएं, कुछ मंझोली तो कुछ विशालकाय, कहीं पर सरकारी तो कहीं अर्ध सरकारी और कहीं गैर सरकारी निवेश से ये परियोजनाएं देश को विकास के नव युग में ले जाने को आतुर हो चली हैं।

ये अलग मुद्दा है कि इसी बीच नेपाल-बिहार सीमा पर कहीं कोई कोसी बांध दरकता है और पचासों हजार लोग एक
कोसी परियोजना- ऐतिहासिक सिंहावलोकन
Posted on 23 Sep, 2009 01:08 PM
कोसी नदी बेसिन मानव अधिवास के लिये प्राचीन काल से ही उपयुक्त जगह है। 12-13वीं शताब्दी में पश्चिम भारत की कई नदियों के सूख जाने के कारण वहां के पशुचारक समाज के लोग कोसी नदीबेसिन में आकर बस गये। कोसी नदी घाटी में बढ़ती जनसंख्या और कोसी नदी के बदलते प्रवाह मार्ग के बीच टकराहट होने लगी। नदी की अनियंत्रित धारा को लोग बाढ़ समझने लगे। बाढ़ नियंत्रण के लिये तात्कालीन शासकों ने कदम उठाये।1 सबसे पहले 12वीं
आलादीन का चिराग- बराह क्षेत्र हाईडेम
Posted on 23 Sep, 2009 09:08 AM
पिछले 60 वर्षों में सरकारी व्यवस्था को लोगों को समझाने/बहलाने में पूर्ण सफलता मिली, कि कोसी समस्या का निदान बराह क्षेत्र `हाईडेम´ है। बांध या तटबंधों से बाढ़ की समस्याओं का निदान कहां तक हो सका, इसकी रिर्पोट हमारे समक्ष है। सिपर्फ यदि बिहार के संदर्भ में देखें तो सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1954 में बिहार में तटबंधों की लम्बाई 160 किलोमीटर थी और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था। वत्तZमान म
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