विवाद के केंद्र में तिपाईमुख


मणिपुर में छह हजार करोड़ रुपए की लागत से प्रस्तावित तिपाईमुख पनबिजली परियोजना का विरोध पड़ोसी देश बंगलादेश करता रहा है। साथ ही मणिपुर के गैर सरकारी संगठन भी इसके खिलाफ आंदोलन चलाते रहे हैं। विरोध और आलोचना को नजरअंदाज करते हुए हाल ही में इस परियोजना की आधारशिला रखी गई।

इससे साफ संकेत मिलता है कि केन्द्र सरकार इस परियोजना को समय पर पूरा करना चाहती है। लेकिन केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश के बयान से ऐसा लगता है कि परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने में अधिक वक्त लग सकता है। दिल्ली में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित करते हुए रमेश ने कहा कि तिपाईमुख एक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक अनूठी परियोजना है जिसका शिलान्यास देश के तीन प्रधानमंत्री कर चुके हैं। रमेश ने कहा कि शायद यह बांध अधर में लटक सकता है। उन्होंने बांध क्षेत्र की जैव विविधता को स्वीकार करते हुए कहा कि वे चार बार बांध क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं और उन्हें लगता है कि बांध का निर्माण ठंडा पड़ सकता है। जब उनसे पूछा गया कि उनका मंत्रालय पर्यावरण के दृष्टिकोण से बांध बनाने के लिए हरी झंडी दिखा चुका है, ऐसी स्थिति में बांध का निर्माण कैसे रुक सकता है, तब उन्होंने कहा कि उनके मंत्रालय की अनुमति मिलने का अर्थ किसी परियोजना का क्रियान्वयन नहीं होता। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से दी जाने वाली अनुमति की प्रचलित प्रणाली से वे खुश नहीं हैं और इस प्रणाली को अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है। रमेश ने कहा कि जब उन्होंने तिपाईमुख बांध के विरोध में बंगलादेश के रुख के बारे में पढ़ा तब उन्होंने फौरन अपने मंत्रालय के अधिकारियों से इस मामले पर विचार करने के लिए कहा ताकि यह मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा मुद्दा न बन जाए। अब उन्हें लगता है कि तिपाईमुख एक राजनीतिक फुटबॉल बनकर रह गया है।

केन्द्रीय मंत्री ने आश्वस्त किया कि उनका मंत्रालय परियोजना के संबंध में बंगलादेश की चिंता को ध्यान में रखेगा। इसके साथ ही इस मसले पर बंगलादेश सरकार के साथ बातचीत भी की जाएगी।

मणिपुर में प्रस्तावित तिपाईमुख बांध के विरोध में बंगलादेश के कई संगठन अपनी नराजगी जता चुके हैं। बंगलादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनल पार्टी की नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया भी इस बांध का विरोध कर रही हैं। गैर सरकारी संगठनों एवं पर्यावरण से जुड़े संगठनों ने जब तिपाईमुख बांध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया तो खालिदा जिया भी उसमें शामिल हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि बांध के निर्माण से बंगलादेश को खमियाजा भुगतना पड़ेगा और क्षेत्र का पर्यावरण नष्ट हो जाएगा। इसके बाद बंगलादेश के अधिकारियों के एक दल ने बांध क्षेत्र का दौरा भी किया।

बंगलादेश की सीमा से २०० कि० मी० दूर बराक नदी पर बांध का निर्माण प्रस्तावित है। बंगलादेश के पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर मणिपुर में बराक और तुईवाई नदी के संगम स्थल पर १६२ मीटर ऊंचे बांध का निर्माण किया जाएगा तो बंगलोदश में बराक नदी सूख सकती है। बराक नदी का पानी मेद्घना नदी तक पहुंचता है और बराक नदी लाखों लोगों को पेयजल उपलब्ध कराती है। पर्यावरणविदों और गैर सरकारी संगठनों का तर्क है कि तिपाईमुख पन बिजली परियोजना की वजह से खेती प्रभावित होगी। साथ ही लोगों को विस्थापन का संकट झेलना पड़ेगा। स्थानीय जलाशय भी सूख जाएंगे और क्षेत्र की जैव विविधता नष्ट हो जाएगी।

दूसरी तरफ भारत सरकार की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि पूर्वोत्तर भारत में बिजली की आपूर्ति करने के लिए बांध का निर्माण किया जा रहा है और इससे बंगलादेश को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा बल्कि उसे बाढ़ नियंत्रण करने में मदद मिलेगी।

नेशनल हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कार्पोरेशन (एन एच पी सी) के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि तिपाईमुख बांध के निर्माण में समय लग सकता है चूंकि ज्वाइंट वेंचर कंपनी अभी तक नहीं बनाई गई है। केन्द्र की तरफ से परियोजना को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी एनएचपीसी को सौंपी गई है, लेकिन इसका निर्माण संयुक्त उपक्रम के रूप में किया जाएगा। जिसमें एनएचपीसी की भागीदारी ६९सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड की २६ और मणिपुर सरकार की पांच -पांच फीसदी रहेगी।

अब देखना यह है कि बंगलादेश और मणिपुर में हो रहे विरोध के बीच भारत सरकार किस तरह तिपाईमुख बांध का निर्माण कर पाती है। तिपाईमुख बांध की तरह अरुणाचल प्रदेश में भी लोअर सुवन सिटी पन बिजली परियोजना का काम शुरू हो रहा है, जिसका विरोध असम के गैर सरकारी संगठन कर रहे हैं और बांध बन जाने के बाद असम में तबाही की आशंका प्रकट कर रहे हैं। बड़े बांधों के संबंध में सरकार को एक कारगर नीति बनाने की जरूरत है, ताकि विकास का अर्थ विनाश न हो। बिजली की जरूरत की पूर्ति करने के लिए किसी भी इलाके को तबाह करना औचित्यपूर्ण निर्णय नहीं कहलाएगा।
 
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