भारतीय परमाणु वैज्ञानिकों की सक्षमता के गवाह पोकरण धमाके, और रावतभाटा (राजस्थान) में परमाणु रिएक्टर की स्वदेशी मरम्मत रहे हैं। ऐसे में एक विवादास्पद रिएक्टर को ऊंची कीमत में खरीद कर सरकार देश की जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है और अपने वैज्ञानिकों को भी हतोत्साहित कर रही है। कल तक लोग जिस संयंत्र को विकास का मानक मान रहे थे, आज उसे विनाश की कुंजी कह रहे हैं।
तमिलनाडु के तिरुनवेली जिले के कूडनकुलम और इंदींतकरई गांवों में इन दिनों हजारों लोग धरने पर बैठे हैं। वे नहीं चाहते कि उनके यहां परमाणु बिजली केंद्र के लिए रूस से खरीदे जा रहे रिएक्टर लगाए जाएं। 10 सितंबर से चल रहे इस धरने की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री ने अपने एक मंत्री वी नारायणसामी को भेजा भी, लेकिन बात नहीं बनी। प्रधानमंत्री का कहना है कि रिएक्टर के रुकने से इलाके का विकास थम जाएगा, लेकिन ग्रामीणों ने 13 अक्टूबर को बड़ा विरोध दर्ज कर रिएक्टर को शुरू नहीं होने दिया। असल समस्या परमाणु रिएक्टर की नहीं, वहां लगाए गए रिएक्टर की गुणवत्ता की है। सनद रहे कोई दस साल पहले जब इन रिएक्टरों को खरीदने का सौदा हो रहा था, तब भी जागरूक समाज ने सरकार को चेताया था कि रूसी रिएक्टर सुरक्षा की दृष्टि से बेहद घटिया हैं।रिएक्टर के उपकरणों की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान कोई बाहरी नहीं, बल्कि खुद रूस का परमाणु और तकनीकी विभाग लगा रहा है। जापान के फुकुशिमा की परमाणु त्रासदी के परिप्रेक्ष्य में देश के प्रधानमंत्री के लिए तैयार एक रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस में तैयार परमाणु रिएक्टर प्राकृतिक आपदा और मानवजन्य दुर्घटना, दोनों ही हालत में धोखा दे सकते हैं। भारत ने रूस से एक हजार मेगावाट शक्ति के दो वीवीईआर यानी ‘वोदो वोदायननोय इनर्जेटिक स्काई रिएक्टर’ खरीदे हैं। बलोना फाउंडेशन, नार्वे का आकलन है कि वीवीईआर में प्रयुक्त तकनीकी पश्चिमी देशों के सुरक्षा मापदंडों के अनुरूप कतई नहीं है। यहां तक कि वीवीईआर 1000 की उत्पादन इकाई को आर्थिक मदद करने वाले यूरोपीय आयोग ने भी इसकी सुरक्षा संबंधी खामियों पर टिप्पणियां की हैं।
वीवीईआर की संरचना पश्चिमी देशों में तैयार पीडलूआर (प्रेसर्ड वाटर रिएक्टर) की तरह ही है। ग्रीनपीस और न्यूकनेट सरीखी अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण प्रेमी संस्थाओं का कहना है कि वीवीईआर में लगे ‘प्रेशर वैसल’ का आकार बहुत छोटा है। यह वैसल की दीवार और ईंधन से निकले न्यूट्रान के बीच पानी का वांछित दबाव बनाए रखने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा इस रिएक्टर में अचानक रफ्तार बढऩे, अपर्याप्त अग्नि सुरक्षा और दोयम दर्जे के निर्माण और सामग्री की भी शिकायतें हैं। कूडनकुलम में लगने वाले रूसी रिएक्टर में यदि कोई दुर्घटना होती है तो वहां सटे विशाल समुद्र के समूचे जीव-जंतु जगत का जड़मूल से सफाया हो जाएगा। एकीकृत ग्रामीण तकनीकी केंद्र, पलाड के निदेशक और परमाणु विरोधी अभियान के अगुआ डा. आरवीजे मेनन के मुताबिक इस रिएक्टर का परमाणु जहर हवा के जरिए दो दिशाओं में बहेगा।
उत्तर-पूर्व की तरफ इसके बहने पर श्रीलंका में कहर बरपेगा, लेकिन यदि हवा का रुख दक्षिण-पश्चिम रहा तो तमिलनाडु के थुटुकुडी, तिरुनवेली, कन्याकुमारी और रामनाथपुरम जिलों की शामत आएगी। मेनन रहस्योद्घाटन करते हैं कि परमाणु ऊर्जा विभाग के कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों के विरोध के बावजूद यह सौदा किया गया है। वैज्ञानिक परमाणु तकनीकी के मामले में किसी भी विदेशी सहयोग के खिलाफ थे। वे लोग चाहते थे कि भारत में मौजूद स्वदेशी तकनीकी का इस्तेमाल किया जाए, जो इस रूसी सौदे से बहुत अधिक सस्ती भी पड़ती। भारतीय परमाणु वैज्ञानिकों की सक्षमता के गवाह पोकरण धमाके, और रावतभाटा (राजस्थान) में परमाणु रिएक्टर की स्वदेशी मरम्मत रहे हैं। ऐसे में एक विवादास्पद रिएक्टर को ऊंची कीमत में खरीद कर सरकार देश की जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है और अपने वैज्ञानिकों को भी हतोत्साहित कर रही है। कल तक लोग जिस संयंत्र को विकास का मानक मान रहे थे, आज उसे विनाश की कुंजी कह रहे हैं।
लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट में सहायक संपादक हैं।
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