अरुण तिवारी

अरुण तिवारी
दोस्तों को हम दूर कर रहे हैं
Posted on 08 Oct, 2014 04:40 PM

विश्व वन्यजीव सप्ताह पर विशेष


विश्व वन्यजीव संगठन के ताजा आंकड़े कह रहे हैं कि हमने पिछले 40 सालों में प्रकृति के 52 फीसदी दोस्त खो दिए हैं। बीते सदी में बाघों की संख्या एक लाख से घट कर तीन हजार रह गई है। स्थल चरों की संख्या में 39 फीसदी और मीठे पानी पर रहने वाले पशु व पक्षी भी 76 फीसदी तक घटे हैं। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में कई प्रजातियों की संख्या 60 फीसदी तक घट गई है।

यह आंकड़ों की दुनिया है। हकीकत इससे भी ज्यादा बुरी हो सकती है। इंसान यह सोचकर बच नहीं सकता है कि वन्यजीव घट रहे हैं तो इससे उसकी तरक्की का कोई लेना-देना नहीं है। हकीकत यही है कि प्रकृति की कोई रचना निष्प्रयोजन नहीं है, अगर कोई चीज बिना प्रयोजन के होती है तो प्रकृति उसे समय के अंतराल के साथ खुद ही खत्म भी कर देती है।
<i>डॉल्फिन</i>
महात्मा का सपना, मोदी का मिशन - आइए, हम सभी भंगी बने
Posted on 06 Oct, 2014 04:21 PM
एक थाने के बाहर झाड़ू लगाता देश के प्रधानमंत्री, रेलवे स्टेशन की सफाई करता रेलमंत्री, सफाई के लिए अपने पैतृक गांव को गोद लेती जलसंसाधन मंत्री; नाला साफ करता विपक्षी पार्टी का एक प्रमुख, सड़कों पर झाड़ू उठाए खड़े मुंबइया सितारे और “न गंदगी करुंगा और न करने दूंगा” कहकर शपथ लेते 31 लाख केन्द्रीय कर्मचारी। दिखावटी हों, तो भी कितने दुर्लभ दृश्य थे ये! ‘नायक’ एक फिल्म ही तो थी, किंतु एक दिन के मुख्यमंत्री ने खलनायक को छोड़कर, किस देशभक्त के दिल पर छाप न छोड़ी होगी?

सफाई की छूत-अछूत


दुर्भाग्यपूर्ण है कि ‘स्वच्छ भारत’ का आगाज करने के उपक्रम में हमने भाजपा नेता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सरकारी कर्मचारियों व आम आदमी के अलावा सिर्फ आम आदमी पार्टी के नेता व कार्यकर्ताओं को ही शामिल देखा। दूसरी पार्टियों के लोगों को अपने से यह सवाल अवश्य पूछना चाहिए कि यह राजनीति हो, तो भी क्या यह नई तरह की राजनीति नहीं है?
<i>स्वच्छ भारत अभियान</i>
ड्रैगन जैसा न हो भारत का विकास
Posted on 26 Sep, 2014 03:58 PM
निवेशक हमेशा मुनाफे के लिए ही निवेश करता है, वह चाहे अमेरिका हो या चीन। वैसे ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि निवेशकों में होड़ तभी होती है, जब निवेश करना सुरक्षित हो और पर्याप्त मुनाफे की गारंटी। संभवतः इस दृष्टि से दुनिया आज भारत केे सबसे मुफीद देशों में से एक है। निर्णय लेने और उसे लागू कराने में सक्षम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि, निस्संदेह निवेशकों को आकर्षित करने में सक्षम है। यह होड़ इसीलिए मची हुई है। हम चूंकि निवेश के भूखे राष्ट्र हैं इसलिए इस होड़ को लेकर हम अंदर-बाहर तक गदगद होते रहते हैं। हमारे प्रधानमंत्री हमारी इस भूख के इंतजाम करने में सफल भी दिखाई दे रहे हैं।

द्विपक्षीय शर्तों पर सहमति बनें


हम खुश हों कि अगले पांच साल में 100 अरब डॉलर के चीनी निवेश से सुविधा संपन्न रेलवे स्टेशन, रेलवे ट्रैक के विस्तार, तीव्र गति रेलगाड़ियों और अधिक औद्योगिक पार्क की हमारी भूख मिटेगी।
<i>तिब्बत में परमाणु कचरा</i>
ऐसा कब तक चलेगा, मी लॉर्ड
Posted on 26 Sep, 2014 12:26 PM
अदालतों का काम है, आदेश देना और शासन-प्रशासन का काम है, उसकी पालना करना। किंतु ऐसा लगता है कि हमारी सरकारों ने अदालती आदेशों की अनदेखी करना तय कर लिया है; खासकर, पर्यावरणीय मामलों में। रेत खनन, नदी भूमि, तालाब भूमि, प्रदूषण से लेकर प्रकृति के विविध जीवों के जीवन जीने के अधिकार के विषय में जाने कितने अच्छे आदेश बीते वर्षों में देश की छोटी-बड़ी अदालतों ने जारी किए हैं। किंतु उन सभी की पालना सुनिश्चित हो पाना, आज भी एक चुनौती की तरह हम सभी को मुंह चिढ़ा रहा है।

कितने अवैध कार्यों को लेकर रोक के आदेश भी हैं और आदेश के उल्लंघन का परिदृश्य भी। किसी भी न्यायतंत्र की इससे ज्यादा कमजोरी क्या हो सकती है, कि उसे अपने ही आदेश की पालना कराने के लिए कई-कई बार याद दिलाना पड़ेे। आखिर यह कब तक चलेगा और कैसे रुकेगा? बहस का बुनियादी प्रश्न यही है।
<i>इलाहाबाद हाईकोर्ट</i>
ऐसे कैसे रुकेगा नदियों में मूर्ति विसर्जन
Posted on 22 Sep, 2014 03:39 PM
गणपति बप्पा मोरया! गणपतिजी गए। नदियां उनके जाने से ज्यादा, उनकी प्रतिमाओं के नदी विसर्जन से दुखी हुईंं। विश्वकर्मा प्रतिमा का विसर्जन भी नदियों में ही हुआ। नवरात्र शुरु होने वाला है। नदियों ने बरसात के मौसम में खुद की सफाई कि अब त्योहारों का मौसम आ रहा है और लाखों मुर्तियां नदियों में विसर्जित की जाएंगी। नदियां आर्तनाद कर रही हैं कि मुझे फिर गंदला किया जाएगा।

गत् वर्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद शायद गंगा-यमुना बहनों ने राहत की सांस ली होगी कि अगली बार उन्हें कम-से-कम उत्तर प्रदेश में तो मूर्ति सामग्री का प्रदूषण नहीं झेलना पड़ेगा। किंतु उत्तर प्रदेश शासन की जान-बूझकर बरती जा रही ढिलाई और अदालत द्वारा दी राहत ने तय कर दिया है कि इस वर्ष भी गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन जारी रहेगा।
<i>मुर्ति विसर्जन</i>
नदियों को मारो मत...
Posted on 22 Sep, 2014 01:21 PM

नदियों को मारो मत,
निर्मल ही रहने दो।
अविरल तो बहने दो
जीयो और जीने दो।

हिमधर को रेती से,
विषधर को खेती से,
जोड़ो मत नदियों को,
सरगम को तोड़ो मत।

सरगम गर टूटी तो,
टूटेंगे छंद कई,
रुठेंगे रंग कई,
उभरेंगे द्वंद्व कई।
नदियों को मारो मत...

तरुवर की छांव तले।

पालों की सीलेंगे,

polluted river
प्रकृति के साथ मिलकर करें विकास
Posted on 21 Sep, 2014 12:13 PM
नदियों, झीलों और पहाड़ों के पेट में घुसकर जिस तरह का निर्माण किया गया; उसे सभ्य समाज द्वारा विकसित सभ्यता का नाम तो कदापि नहीं दिया जा सकता।

. विकास और विनाश दो विपरीत ध्रुवों के नाम हैं। दोनों के बीच द्वंद्व कैसे हो सकता है? पहले आए विनाश के बाद बोए रचना के बीज को तो हम विकास कह सकते हैं; लेकिन जो विकास अपने पीछे-पीछे विनाश लाए, उसे विकास नहीं कह सकते। दरअसल वह विकास होता ही नहीं। बावजूद इस बुनियादी फर्क के हमारे योजनाकार आज भी अपने विनाशकारी कृत्यों को विकास का नाम देकर अपनी पीठ ठोकते रहते हैं।

विनाशकारी कृत्यों का विरोध करने वालों को विकास विरोधी का दर्जा देकर उनकी बात अनसुनी करते हैं। सुनकर अनसुनी करने का नतीजा है पहले उत्तराखंड, हिमाचल और अब धरती के जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में जलजला आया और हमने बेहिसाब नुकसान झेला। इन्हें राष्ट्रीय आपदा घोषित करना और हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा अपने जन्मदिन बनाने की बजाय जम्मू-कश्मीर को मदद भेजने का आह्वान संवेदनात्मक, सराहनीय और तत्काल सहयोगी कदम हो सकता है।
Badh
‘अमेठी’ में पानी पर ‘रेल नीर’ का राज है
Posted on 21 Sep, 2014 11:00 AM
मालती नदी का तल खोदकर इतना ढालू बना दिया गया है कि अब इसमें पानी रु
Rail neer
गंगा को प्रतीक नहीं, परिणाम का इंतजार
Posted on 13 Sep, 2014 10:28 AM

मैं आया नहीं हूं; मुझे गंगा मां ने बुलाया है, नमामि गंगे व नीली क्रांति जैसे शब्द तथा स्व. श्री दीनदयाल उपाध्याय की जन्म तिथि पर जल संरक्षण की नई योजना का शुभारंभ की घोषणा से लेकर पूर्व में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने तक; निःसंदेह प्रतीक महत्वपूर्ण हैं। किंतु जो प्रतीक स्वयं को ही प्रेरित न कर सकें, उनका क्या महत्व? झाड़ू उठाकर सफाई करते हुए किसी एक दिन फोटो खिंचवाने वाले स्वयंसेवी साथियों, जिलाधीशों व नेताओं से मैं कई बार यह कहने को मजबूर हुआ हूं। मजबूर मैं आज फिर हूं।

मुझे याद है कि जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती की अगुवाई में गए दल के कहने पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। हालांकि, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश की पहल पर उन्होंने गंगोत्री से उत्तरकाशी जिले के 135 किलोमीटर लंबे भगीरथी क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया;

<i>गंगा</i>
ये विकास या विनाश
Posted on 08 Sep, 2014 01:07 PM

ये विकास है या विनाश है,
सोच रही इक नारी।
संगमरमरी फर्श की खातिर,
खुद गई खानें भारी।
उजड़ गई हरियाली सारी,
पड़ गई चूनड़ काली।
खुशहाली पे भारी पड़ गई
होती धरती खाली।
ये विकास है या....

विस्फोटों से घायल जीवन,
ठूंठ हो गये कितने तन-मन।
तिल-तिल मरते देखा बचपन,
हुए अपाहिज इनके सपने।
मालिक से मजदूर बन गये,

river mining
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