अरुण तिवारी
23-24 जून को उत्तराखण्ड विकास संवाद
Posted on 20 Jun, 2015 10:42 AMहिमालयी राज्यों के नागरिक संगठन, लम्बे अरसे से हिमालयी प्रदेशों के विकास की अलग नीति माँग कर रहे हैं। मैं समझता हूँ कि नीति आयोग की यह नीति, जाने-अनजाने इसके दरवाजे खोल रही है। खुले दरवाज़े का लाभ लेने के लिये जरूरी है कि प्रदेश सरकारें अपने प्रदेश की सामर्थ्य, संवेदना और जरूरत का आकलन कर टिकाऊ विकास का खाका तैयार करने में जुट जाएँ। इस दृष्टि से उत्तराखण्ड जैसे संवेदनशाली राज्य के टिकाऊ विकास का खाका बेहद सावधानी, समझ, संवेदना, समग्रता और दूरदृष्टि की माँग करता है। नीति आयोग ने इस नीति पर काम करना शुरू कर दिया है कि राज्य, केन्द्र की ओर ताकने की बजाय, अपने संसाधनों के विकास पर ज्यादा-से-ज्यादा ध्यान कैसे दें? इसके लिये नीति आयोग के दलों ने राज्यों के दौरे भी शुरू कर दिये हैं। इस नीति से किन राज्यों को लाभ होगा और कौन-कौन से राज्य घाटे में रहेंगे? इस नीति से पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील राज्यों में विकास और पर्यावास के बीच सन्तुलन साधना कितना सम्भव होगा; यह भी एक प्रश्न है।इस नीति में राज्य से आने वाली केन्द्रीय कर राशि के आधार पर केन्द्रीय बजट में राज्य की हिस्सेदारी का विचार भी सुनाई दे रहा है। इससे आप आशंकित हो सकते हैं कि इससे कमजोर आर्थिकी वाले राज्यों में स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन की विवशता बढ़ जाएगी; जिसके दुष्प्रभाव व्यापक होंगे।
हिण्डन प्रदूषण मुक्ति हेतु दिल्ली में पंचायत
Posted on 09 Jun, 2015 02:54 PMतिथि: 11 जून, 2015समय: 11 बजे से 4 बजे तक
स्थान: इण्डिया हैबिटेट सेंटर (भारत पर्यावास केन्द्र), लोधी रोड, नई दिल्ली
आयोजक: जल-जोड़ो अभियान
उद्देश्य :
1. हिण्डन नदी की प्रदूषण मुक्ति का समाधान खोजना।
2. समाधान हेतु सभी सम्बन्धित वर्गों को एकजुट करना।
मूल विचार :
शासन और औद्योगिक प्रतिनिधियों को शामिल किए बगैर हिण्डन प्रदूषण मुक्ति के समाधान हासिल करना असम्भव है। यह भी सच है कि हिण्डन प्रदूषण के चार बड़े स्रोत हैं - कृषि में प्रयोग होने वाले रसायन, मल, ठोस कचरा और औद्योगिक अवजल। हिण्डन में जल प्रवाह की कमी और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड व शासन की नाकामी....निर्मलीकरण के मार्ग की दो अन्य बड़ी बाधाएँ हैं। हिण्डन, यमुना में मिलती है और यमुना, गंगा में। अतः यदि गंगा और यमुना को स्वच्छ करना है, तो पहले हिण्डन को स्वच्छ करना होगा। यदि हिण्डन को स्वच्छ करना है, तो काली और कृष्णी को निर्मल किए बगैर यह हो नहीं सकता। मतलब साफ है कि यदि हम चाहते हैं कि गंगा स्वच्छ हो, तो इसके लिये गंगा की सिर्फ मुख्य धारा को स्वच्छ करने से काम चलेगा नहीं; जरूरी है कि गंगा की सभी सहायक धाराओं की निर्मलता सुनिश्चित करने का काम प्राथमिकता पर हो।
जल-जन जोड़ो अभियान के संचालक जल पुरूष श्री राजेन्द्र सिंह जी द्वारा हस्ताक्षरित आमन्त्रण पत्र में कहा गया है कि हिण्डन प्रदूषण के कारण अब लोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।
पैसा नहीं, प्रवाह देकर कहें ‘नमामि गंगे’
Posted on 28 May, 2015 03:49 PMगंगा के संकट, संघर्ष और ‘नमामि गंगे’ को सामने रखें, तो कह सकते हैं गंगा की बीमारी सदी से अधिक पुरानी है; एक साल
ताकि गंगा भी न मांग ले इच्छा मृत्यु
Posted on 28 May, 2015 10:35 AMआज गंगा दशहरा है। 28 मई, दिन गुरुवार, पंचाग के हिसाब से ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि ! श्री काशीविश्वनाथ की कलशयात्रा का पवित्र दिन। कभी इसी दिन बिन्दुसर के तट पर राजा भगीरथ का तप सफल हुआ। पृथ्वी पर गंगा अवतरित हुई। ‘‘ग अव्ययं गमयति इति गंगा’’ - जो स्वर्ग ले जाये, वह गंगा है।
एनसीआर का पानी, नदी और ग्रीन ट्रिब्युनल
Posted on 23 May, 2015 04:17 PMराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दायरा फैला; आबादी बढी; साथ-साथ पर्यावरण की चिन्ता की लकीरें भी। कहना न होगा कि पानी और नदी के मोर्चे पर र
हवा और शान्ति के हक में कुछ हरित फैसले
Posted on 23 May, 2015 01:38 PMजितना विकसित शहर, उतनी अधिक पर्यावरणीय समस्यायें। यह अनुभव सौ फीसदी सच है; भारत के महानगर, इसका उदाहरण बनकर सामने आये हैं। इस सच के सामने आने के साथ-साथ महानगर वासियों की चिन्तायें बढ़ी हैं और संचेतना भी। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु संवेदना जगाने का असल काम, मीडिया, कुछ याचिका-कर्ताओं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने किया है; इस बात से भी शा
भगवान को न्याय हेतु एक न्यायाधिकरण (National Green tribunal)
Posted on 23 May, 2015 12:43 PMराष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पूरे देश में नदी तट व तलहटी से बिना लाइसेंस व पर्यावरणीय मंजूरी क
खल्क खुदा का, जैव विविधता इंसानी शिकंजे में
Posted on 23 May, 2015 09:19 AMअंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष
भूले नहीं कि एक माँ गंगा भी है
Posted on 11 May, 2015 12:03 PMलोग कहते हैं कि भारतीय संस्कृति, अप्रतिम है। किन्तु क्या इसके वर्तमान को हम अप्रतिम कह सकते हैं? माँ और सन्तान का रिश्ता, हर पल स्नेह और सुरक्षा के साथ जिया जाने वाला रिश्ता है। क्या आज हम इस रिश्ते को हर पल स्नेह और साझी सुरक्षा के साथ जी रहे हैं?
इस स्नेहिल रिश्ते के बीच के अनौपचारिक बन्धन को प्रगाढ़ करना तो दूर, हम इस रिश्ते के औपचारिक दायित्व की पूर्ति से भी भागते हुए दिखाई नहीं दे रहे? बेटियों के पास तो माँ के लिये हर पल समय है; किन्तु हम बेटों के पास दायित्व से दूर भागने के लिये लाख बहाने हैं।
कभी-कभी मुझे खुद अपराध बोध होता है कि माँ, मेरी भी प्राथमिकता सूची में ही नहीं है; न जन्म देने वाली माँ और न पालने-पोषने में सहायक बनने वाली हमारी अन्य माताएँ।