अरुण तिवारी
अरुण तिवारी
यह कैसा प्रदूषण नियन्त्रक
Posted on 19 Feb, 2015 12:52 PMकिसी भी राज्य में प्रदूषण नियन्त्रित करने की सबसे अधिक अधिकारिक जवाबदेही, राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की होती है। किन्तु यदि उसे इसके लिए धन ही न मिले अथवा उसे प्रदूषण नियन्त्रण हेतु राज्य के सम्बन्धित विभाग द्वारा जारी आदेशों/निर्देशों की जानकारी ही न हो, तो इस स्थिति को आप किस धिक्कार से नवाजेंगे?जवाबदेह नागरिक भूमिका की माँग करता जनादेश- 2015
Posted on 18 Feb, 2015 12:16 PMभारत में एक सक्षम जन निगरानी तन्त्र की माँग कर रहा है। इस माँग की ओविज्ञान पर्यावरण केन्द्र जारी करेगा ताप विद्युत संयन्त्र ग्रीन रेटिंग रिपोर्ट
Posted on 18 Feb, 2015 11:19 AMविज्ञान पर्यावरण केन्द्र द्वारा कोयले और लिग्नाइट पर आधारित ताप विदजलगांव में बनेगी जल, जन और अन्न सुरक्षा की रणनीति
Posted on 25 Nov, 2014 12:16 PMतारीख : 19-29 दिसंबर, 2014स्थान : गांधी तीर्थ, गांधी रिसर्च फाउंडेशन, जैन हिल्स, जलगांव, महाराष्ट्र
संकट में समझ व सहमति की विशेषज्ञ पहल
Posted on 24 Nov, 2014 11:48 AMभारत नदी सप्ताह 2014
तारीख : 24-27 नवंबर, 2014
स्थान : लोदी रोड, नई दिल्ली
एक नदी को स्वस्थ मानने के मानक वास्तव में क्या होने चाहिए? जब हम कहते हैं कि फलां नदी को पुनजीर्वित करना है, तो भिन्न नदियों के लिए भिन्न कदमों का निर्धारण करने के आधार क्या हों? केन्द्र तथा राज्य स्तरीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा नदियों की निर्मलता की जांच को लेकर अपनाए जा रहे परंपरागत मानक पर्याप्त हैं या उनसे इतर भी कुछ सोचे जाने की जरूरत हैं? बांध, बैराज, जल विद्युत परियोजनाएं बनें या न बनें? न बनें, तो क्यों? बनें तो, कैसे बनें? क्या डिजाइन, क्या आकार अथवा मानक हों? मानकों की प्रभावी पालना सुनिश्चित करने के कदम क्या हों?
नदी के लिए आवश्यक प्रवाह का मापदंड क्या हो? जरूरी प्रवाह की दृष्टि से किसकी मांग उचित है: परिस्थितिकीय पर्यावरणीय अथवा नैसर्गिक? तीनों में भिन्नता क्या है? इनका निर्धारण कैसे हो?
नदी सिर्फ बहता पानी है या कि अपने-आप में एक संपूर्ण पर्यावरणीय प्रणाली? वास्तव में क्या हमारे पास कुछ शब्द या वाक्य ऐसे हैं, जिनमें गढ़ी नदी की परिभाषा, वैज्ञानिकों को भी स्वीकार हो, विधिकों को भी और धर्मगुरुओं को भी?
जल सुरक्षा की भारतीय चुनौतियां
Posted on 21 Nov, 2014 12:56 PMसुरक्षित जल हेतु जल सुरक्षा और जल सुरक्षा हेतु जल स्रोतों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। दुर्योग से भारत में जल स्रोत, उनमें मौजूद जल की मात्रा और गुणवत्ता... तीनों की सुरक्षा पर खतरे का परिदृश्य स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। जल प्रबंधन की जो खामियां हैं, सो अलग। चुनौतियां कई हैं:
1. स्थानीय जल स्रोत का रकबा, योजना और जल सुरक्षा कानूनों के संबंध में जन जागृति का अभाव;
भारत में जल सुरक्षा की जरूरतें
Posted on 21 Nov, 2014 12:33 PMभारत में जल सुरक्षा की चुनौतियों को सामने रखें, तो कई बिंदु जरूरत बनकर सामने उभरते हैं। भारत में इनके बगैर जल सुरक्षा का प्रश्न हल होता दिखाई नहीं देता। जरूरी है कि हम इन जरूरतों को जरूरी मानकर व्यवहार में लाने की प्रक्रिया शुरू करें:कारसेवा का करिश्मा : निर्मल कालीबेई
Posted on 21 Oct, 2014 01:28 PMहोशियारपुर के धनोआ गांव से निकलकर कपूरथला तक जाती है 160 किमी लंबी कालीबेई। इसेे कालीबेरी भी कहते हैं। कुछ खनिज के चलते काले रंग की होने के कारण ‘काली’ कहलाई। इसके किनारे बेरी का दरख्त लगाकर गुरुनानक साहब ने 14 साल, नौ महीने और 13 दिन साधना की। एक बार नदी में डूबे, तो दो दिन बाद दो किमी आगे निकले। मुंह से निकला पहला वाक्य था: “न कोई हिंदू, न कोई मुसलमां।’’ उन्होंने ‘जपजीसाहब’ कालीबेईं के किनारे ही रचा। उनकी बहन नानकी भी उनके साथ यहीं रही। यह 500 साल पुरानी बात है।अकबर ने कालीबेईं के तटों को सुंदर बनाने का काम किया। व्यास नदी इसे पानी से सराबोर करती रही। एक बार व्यास ने जो अपना पाट क्या बदला; अगले 400 साल कालीबेईं पर संकट रहा।
... ताकि झूठ न हो जाए पर्वतराज का गीत
Posted on 18 Oct, 2014 03:15 PMहिमालय के बारे में एक बात और अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि पहले पूरे लघु हिमालय क्षेत्र में एक सम
मीडिया और नदी : एक नाव के दो खेवैए
Posted on 14 Oct, 2014 11:14 AM भारतीय जनसंचार संस्थान के परिसर में आने का पहला मौका मुझे तब मिला था, जब मुझे हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम में अस्थायी प्रवेश का पत्र मिला था। हालांकि उस वक्त संपादकीय विभागों में नौकरी के लिए पत्रकारिता की डिग्री/डिप्लोमा कोई मांग नहीं थी, सिर्फ सरकारी नौकरियों में इसका महत्व था, बावजूद इसके यहां प्रवेश पा जाना बड़ी गर्व की बात मानी जाती थी। यह बात मध्य जुलाई, 1988 की है।कोई डाक्टर शंकरनारायणन साहब यहां के रजिस्ट्रार थे। स्थाई प्रवेश की अंतिम तिथि तक मेरे विश्वविद्यालय द्वारा डिग्री/अंकपत्र जारी न किए जाने के कारण संस्थान ने मेरे लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। इस पूरी प्रक्रिया में मेरी और संस्थान की कोई गलती नहीं थी। यह एक व्यवस्था का प्रश्न था। किंतु तब तक मैं न व्यवस्था को समझता था, न मीडिया को और न नदी को।