अनुपम मिश्र
नींव से शिखर तक
Posted on 14 Apr, 2009 06:13 PM
आज अनपूछी ग्यारस है। देव उठ गए हैं। अब अच्छे-अच्छे काम करने के लिए किसी से कुछ पूछने की, मुहुर्त दिखवाने की जरूरत नहीं है। फिर भी सब लोग मिल-जुल रहे हैं, सब से पूछ रहे हैं। एक नया तालाब जो बनने वाला है।...
पाल के किनारे रखा इतिहास
Posted on 14 Apr, 2009 04:28 PM
''अच्छे-अच्छे काम करते जाना,'' राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न, बुढ़ान सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपने खेत पर काम करने जाते। दोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली से खाना लेकर।
राज, समाज और पानी : पांच
Posted on 18 Feb, 2009 01:38 PM
अनुपम मिश्र
जमीन पर इस आदर्श के अमल की बात बाद में। अभी तो थोड़ा ऊपर उठ आसमान छूकर देखें। बादल यहाँ सबसे कम आते हैं। पर बादलों के नाम यहाँ सबसे ज्यादा मिलते हैं। खड़ी बोली, और फिर संस्कृत से बरसे बादलों के नाम तो हैं ही पर यहाँ की बोली में तो जैसे इन नामों की घटा ही छा जाती है, झड़ी ही लग जाती है। और फिर आपके सामने कोई 40 नाम बादलों के, पर्यायवाची नहीं, 40 पक्के नामों की सूची भी बन सकती है। रुकिए, बड़ी सावधानी से बनाई गई इस सूची में कहीं भी, कभी भी कोई ग्वाला, चरवाहा चाहे जब दो चार नाम और जोड़ दे यह भी हो सकता है।
भाषा की और उसके साथ-साथ इस समाज की वर्षा संबंधित अनुभव-सम्पन्नता इन चालीस, बयालीस नामों में चुक नहीं जाती। वह इन बादलों के प्रकार, आकार, चाल-ढाल, स्वभाव, ईमानदारी, बेईमानी - सभी आधारों पर और आगे के वर्गीकरण करते चलता है। इनमें छितराए हुए बादलों के झुंड में से कुछ अलग-थलग पड़ गया एक छोटा-सा बादल भी
राज, समाज और पानी : तीन
Posted on 18 Feb, 2009 01:11 PM
अनुपम मिश्र
आज आपके सामने मैं इस विशाल मरुभूमि में फैले रेत के विशाल साम्राज्य की एक चुटकी भर रेत शायद रख पाऊँ। पर मुझे उम्मीद है कि इस ज़रा-सी रेत के एक-एक कण में अपने समाज की शिक्षा, उसकी शिक्षण-प्रशिक्षण परंपराओं, उसके लिए बनाए गए सुंदर अलिखित पाठ्यक्रम, इसे लागू करने वाले विशाल संगठन की, कभी भी असफल न होने वाले उसके परिणामों की झलक, चमक और ऊष्मा आपको मिलेगी।
आज जहाँ रेत का विस्तार है, वहाँ कुछ लाख साल पहले समुद्र था। खारे पानी की विशाल जलराशि। लहरों पर लहरें। धरती का, भूमि का एक बिघा टुकड़ा भी यहाँ नहीं था, उस समय। यह विशाल समुद्र कैसे लाखों बरस पहले सूखना शुरू हुआ, फिर कैसे हजारों बरस तक सूखता ही चला गया और फिर यह कैसे सुंदर, सुनहरा मरूप्रदेश बन गया, धरती धोरां री बन गया-
राज, समाज और पानी : दो
Posted on 18 Feb, 2009 01:02 PMअनुपम मिश्र
मेरा परिचय भी कोई लंबा चौड़ा नहीं होगा। ऐसा कुछ न तो मैंने पढ़ा-पढ़ाया है, न कोई उल्लेखनीय काम ही किया है। एक पीढ़ी पहले के शब्दों में जिसे 'तार की भाषा' टेलिग्राम की भाषा कहते थे, या आज की पीढ़ी में जिसे एस.एम.एस कहने लगे हैं, कुछ वैसे ही गिने चुने 20-20 शब्दों में मेरा परिचय, सचमुच बहुत सस्ते में निपट जाएगा। पहले परिचय ही दे दूँ अपना। सन् 1947 में मेरा जन्म वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ। प्राथमिक साधारण पढ़ाई-लिखाई हैदराबाद, बंबई और फिर अब छत्तीसगढ़ के एक गाँव बेमेतरा में।