अनुपम मिश्र
देश में पानी का संकट जिस तरह से बढ़ता जा रहा है उसके बारे में अब कुछ अलग से बताना ज़रूरी नहीं लगता। जो संकट पहले गर्मी के दिनों में आता था, अब सर्दी के दिनों में भी सिर उठाने लगा है। पानी के मामले में देश की राजधानी दिल्ली भी काफी गरीब साबित हो रही है।
ऐसे में जहाँ देश की सबसे कम बरसात होती हो - हमारे राजस्थान के रेतीले इलाक़ो में समाज ने पानी के लिए अपने को सबसे अच्छे ढंग से संगठित किया था। कुछ हज़ार साल पुरानी यह परंपरा आज भी जारी है और जहाँ आधुनिकतम तकनीक से पानी देने की कोशिशें असफल हुई हैं, वहाँ एक बार फिर से इसी परंपरा ने लोगों के लिए साफ और मीठा पानी जुटाया है।
हम कह सकते हैं कि पानी जुटाने की यह परंपरा समयसिद्ध और स्वयंसिद्ध साबित हुई है। अंग्रेज जब हमारे देश में आए थे तब उन्हें सचमुच कन्याकुमारी से कश्मीर तक छोटे बड़े कोई बीस लाख तालाब बने बनाए मिले थे। तब देश में कोई इंजीनियर नही था, इंजीनियरिंग सिखाने वाला कालेज नहीं था, सरकारी स्तर पर कोई सिंचाई विभाग नहीं था फिर भी पूरे देश में पानी और सिंचाई का सुंदर काम खड़ा था। गांधीजी ने आज से 100 साल पहले 'हिंद स्वराज' में देश के स्वावलंबन, सहकारिता और देश के निर्माण की जिन बातों की ओर इशारा किया था, वे सब हमें पानी के इस काम में बहुत सरलता और तरलता से देखने को मिल सकती हैं।
आज हमारे पढ़े लिखे समाज को ये जानकर काफी अचरज होगा कि देश का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज 1847 में इन्ही ग्रामीण इंजीनियरों के बदौलत खुला था। आज सरकारें और समाज सेवी संस्थाएँ भी जिन्हें अनपढ़ बताती है और कुछ सिखाना चाहती हैं उन्हीं लोगों ने इस देश में इस कोने से उस कोने तक पानी की शिक्षा, पानी के सिद्धांत और पानी के व्यवहार का एक सुंदर ढाँचा खड़ा किया। इस ढाँचे का आकार इतना बड़ा था कि वो निराकार हो गया था। इसका कोई केन्द्रीय बजट नहीं था, कोई सदस्य नही था, कोई नौकर चाकर नहीं था। फिर भी पूरे देश में पानी का काम बहुत खूदसूरती से चलाया जाता था।
तालाब बनवाने वालों की एक इकाई थी, बनाने वालों की एक दहाई थी और यह इकाई, दहाई मिलकर सैंकड़ा, हजार बनती थी। लेकिन पिछले दौर में थोड़ी सी नई पढ़ाई पढ़े हुऐ समाज के एक छोटे से हिस्से ने इस इकाई, दहाई, सैंकड़ा को शून्य ही बना दिया है। लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी पानी की इस शिक्षा और व्यवहार के काम में चुपचाप जुटा है।
पुस्तकः महासागर से मिलने की शिक्षा |
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