राज, समाज और पानी : तीन

Anupam Mishra
Anupam Mishra

 

अनुपम मिश्र


आज आपके सामने मैं इस विशाल मरुभूमि में फैले रेत के विशाल साम्राज्य की एक चुटकी भर रेत शायद रख पाऊँ। पर मुझे उम्मीद है कि इस ज़रा-सी रेत के एक-एक कण में अपने समाज की शिक्षा, उसकी शिक्षण-प्रशिक्षण परंपराओं, उसके लिए बनाए गए सुंदर अलिखित पाठ्यक्रम, इसे लागू करने वाले विशाल संगठन की, कभी भी असफल न होने वाले उसके परिणामों की झलक, चमक और ऊष्मा आपको मिलेगी।

आज जहाँ रेत का विस्तार है, वहाँ कुछ लाख साल पहले समुद्र था। खारे पानी की विशाल जलराशि। लहरों पर लहरें। धरती का, भूमि का एक बिघा टुकड़ा भी यहाँ नहीं था, उस समय। यह विशाल समुद्र कैसे लाखों बरस पहले सूखना शुरू हुआ, फिर कैसे हजारों बरस तक सूखता ही चला गया और फिर यह कैसे सुंदर, सुनहरा मरूप्रदेश बन गया, धरती धोरां री बन गया- इसे पढ़ने समझने में आपको भूगोल की किताबों, प्रगैतिहासिक पुस्तकों के ढेर में हजारों पन्ने पलटने पड़ सकते हैं। पर इस जटिल भौगालिक घटना की बड़ी ही सरल समझ आपको यहाँ के समाज के मन में मिल जाएगी। वह इस सारे प्रपंच, प्रसंग को बस केवल दो शब्दों में याद रखता है-'पलक दरियाव' यानी पलक झपकते ही जो दरिया, समुद्र, गायब हो जाए। लाखों बरस का गुणा-भाग, भजनफल, अनगिनत शून्य वाली संख्याएं-सब कुछ अपने ब्लैक बोर्ड से उसने एक सधे शिक्षक की तरह डस्टर से मिटा कर चाक का चूरा झाड़ डाला और बस कहा 'पलक दरियाव'। जो समाज इतना पीछे इतनी समझदारी से झाँक सकता है वह उतना ही आगे अपने भविष्य में भी देख सकता है। वह उतनी ही सरलता, सहजता से फिर कह देता है- पलक दरियाव। यानी पलक झपकते ही यहाँ फिर कभी समुद्र आ सकता है। धरती के गरम होने समुद्र का स्तर उठने की जो चिंता आज हम विश्व के विशाल मंचों पर देख रहे हैं, उसकी एक छोटी-सी झलक आपको इस समाज के नुक्कड़ नाटक में नौटंकी में कभी भी कहीं भी आज से कुछ सौ बरस पहले भी मिल सकती थी। यहाँ की भाषा में, नए शिक्षा शास्त्री शायद इसे भाषा नहीं, बोली कहेंगे तो उस बोली में समुद्र, दरियाव के लिए एक शब्द है - हाकड़ो। हाकड़ो का एक अर्थ आत्मा भी है। आज की थोड़ी-सी नई किस्म की पढ़ाई पढ़ गया समाज इस इलाके को पानी के अभाव का इलाका मानता, बताता है। पर इस इलाके की आत्मा है हाकड़ो यानी पानी।

समय की अनादि-अनंत धारा को क्षण-क्षण में देखने और सृष्टि के विराट विस्तार को अणु में परखने वाली इस पलक ने, इस दृष्टि ने हाकड़ो को, समुद्र को जरूर खो दिया लेकिन उसने अपनी आत्मा में, मन में हाकड़ो की विशाल जल राशि को कण-कण में, बूँदों में देख लिया। उसने अखंड समुद्र को खंड-खंड कर अपने गाँव-गाँव, ठाँव-ठाँव फैला लिया। प्राथमिक शाला की पाठ्यपुस्तकों से लेकर देश के योजना आयोग तक के कागजों में राजस्थान की, विशेषकर इसके मरूप्रदेश की छवि एक सूखे, उजड़े और पिछड़े इलाके की है। थार रेगिस्तान का वर्णन तो कुछ ऐसा मिलेगा कि आपका कलेजा ही सूख जाए। देश के सभी राज्यों में क्षेत्रफल के आधार पर अब यह सबसे बड़ा प्रदेश है लेकिन वर्षा के वार्षिक औसत में यह देश के प्रदेशों में अंतिम है।

वर्षा को पुराने इंचों में नापें या नए मिलीमीटरों में, सेंटीमीटरों में, वह यहाँ सबसे कम गिरती है। देश की औसत वर्षा 110 सेंटीमीटर ऑंकी जाती है। उस हिसाब से राजस्थान का औसत लगभग आधा ही बैठता है-60 सेंटीमीटर। लेकिन औसत बताने वाले ये ऑंकड़े यहाँ का कोई ठीक चित्र नहीं दे सकते। राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक यह 100 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर तक और कभी तो उससे भी कम है।

भूगोल की किताबें प्रकृति को, वर्षा को इस मरुस्थल में एक अत्यंत कंजूस महाजन, साहूकार की तरह देखती हैं और इस इलाके को उसके शोषण का दयनीय शिकार बताती हैं। राज्य के पूर्वी भाग से पश्चिमी भाग तक आते-आते वर्षा कम से कम होती जाती है। ठेठ पश्चिमी यानी बाड़मेर, जैसलमेर तक जाते-जाते तो वह सूरज की तरह डूबने ही लगती है। जैसलमेर में वर्षा का सालाना ऑंकड़ा 15 सेंटीमीटर है। पर खुद जैसलमेर की गिनती देश के सबसे बड़े जिले के रूप में की जाती है। इसमें भी पूर्व और पश्चिम है। जैसलमेर का पश्चिमी भाग पाकिस्तान से सटा हिस्सा तो कुछ ऐसा है कि मानसून के बादल यहाँ तक आते-आते थक ही जाते हैं और कभी बस 7 सेंटीमीटर तो कभी 3-4 सेंटीमीटर पानी की हल्की सी बौछार कर विशाल नीले आकाश में एक मुट्ठी रूई के टुकड़े की तरह गायब हो जाते हैं। इसकी तुलना गोवा से, कोंकण से या फिर पाठ्यपुस्तकों से ही उभरे एक और स्थान चेरापूँजी से करें तो यहाँ ऑंकड़ा 1000 सेंटीमीटर भी पार कर जाता है।

 

पुस्तकः महासागर से मिलने की शिक्षा
(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

सुनहरे अतीत से सुनहरे भविष्य तक

2

जड़ें

3

राज, समाज और पानी : एक

राज, समाज और पानी : दो

राज, समाज और पानी : तीन

राज, समाज और पानी : चार

राज, समाज और पानी : पाँच

राज, समाज और पानी : छः

4

नर्मदा घाटीः सचमुच कुछ घटिया विचार

5

तैरने वाला समाज डूब रहा है

6

ठंडो पाणी मेरा पहाड़ मा, न जा स्वामी परदेसा

7

अकेले नहीं आते बाढ़ और अकाल

8

रावण सुनाए रामायण

9

साध्य, साधन और साधना

10

दुनिया का खेला

11

शिक्षा: कितना सर्जन, कितना विसर्जन

 

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