हरित हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन

हरित हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन
हरित हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन

हाइड्रोजन ब्रह्मांड में विपुल मात्रा में पाया जाने वाला हल्का तत्व है। जल का प्रमुख घटक है। इसके दहन से जलवाष्प ही बनता है, अतः प्रदूषण मुक्त है। भविष्य का प्रमुख ईंधन है। तभी तो प्रधानमंत्री की घोषणानुसार राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की शुरुआत की गई है। मिशन के तहत 50लाख मीट्रिक टन (एमएमटी) स्थापित क्षमता के साथ, भारत 2030 तक 1 लाख करोड़ रुपये के जीवाश्म ईंधन के आयात को कम कर सकता है।

जनवरी 2023 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत को ऊर्जा के इस स्वच्छ स्रोत के निर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाने के उद्देश्य से 19,744 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी। हरित हाइड्रोजन में प्राकृतिक गैस सहित जीवाश्म ईंधन को ऊर्जा के स्रोत के रूप में या फीडस्टॉक के रूप में प्रतिस्थापित करने की क्षमता है, जिससे जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता में कमी आएगी। हरित हाइड्रोजन मिशन में उर्वरक उत्पादन, पेट्रोलियम शोधन, स्टील, परिवहन आदि जैसे उद्योगों में हरित हाइड्रोजन के साथ भूरे हाइड्रोजन के प्रतिस्थापन की परिकल्पना की गई है, जिससे कार्बन पदचिह्न (फुटप्रिंट) और आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी। जीवाश्म ईंधन के आयात में इस तरह की कमी की मात्रा 2030 तक 1 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

विद्युत अपघटन के माध्यम से 1 किलोग्राम हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए लगभग 10 लीटर अलवणीकृत पानी की आवश्यकता होती है। तदनुसार, प्रति वर्ष 5 एमएमटी हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए लगभग 500 लाख घन मीटर (एमसीएम) डिमिनरलाइज्ड (अलवणीकृत) पानी की आवश्यकता प्रति वर्ष होगी । उद्योग की प्रतिक्रिया के अनुसार, अधिकांश हरित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र बंदरगाह स्थानों के पास स्थापित होने की उम्मीद है। ऐसे मामलों में, अलवणीकृत समुद्री जल का उपयोग हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है। हाइड्रोजन स्वच्छ, नवीकरणीय, कम उत्सर्जन वाला और उपयोग में सुरक्षित है।

स्वच्छ हाइड्रोजन जलाने पर कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता है जो इसे आज उपलब्ध सबसे पर्यावरण अनुकूल ईंधन में से एक बनाता है। हम पानी को विद्युत अपघटित करके (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करके) पानी से हाइड्रोजन निकाल सकते हैं। इस प्रक्रिया के लिए बिजली की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे 'हरित' बनाने के लिए बिजली नवीकरणीय स्रोतों से होनी चाहिए। ज्यादातर मामलों में, इस प्रक्रिया के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे सरल और सबसे प्रचुर तत्व है। हालाँकि, पृथ्वी पर, यह शायद ही कभी गैस के रूप में मौजूद होता है, इसलिए इसे अन्य तत्वों से अलग करने की आवश्यकता होती है। सफ़ेद हाइड्रोजन एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला संस्करण है जो कभी- कभी भूमिगत पाया जा सकता है, लेकिन इसे निकालने के कुछ व्यवहार्य तरीके हैं , इसलिए विशेषज्ञ इसे कृत्रिम रूप से उत्पन्न करने पर विचार करते हैं।

हरित हाइड्रोजन, जिसे स्वच्छ हाइड्रोजन भी कहा जाता है, विद्युत अपघटन नामक प्रक्रिया के माध्यम से पानी को दो हाइड्रोजन परमाणुओं और एक ऑक्सीजन परमाणु में विभाजित करने के लिए अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर या पवन ऊर्जा, से स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित किया जाता है। नवीकरणीय ऊर्जा हमेशा दिन के सभी घंटों में ऊर्जा उत्पन्न नहीं कर सकती है और हरित हाइड्रोजन उत्पादन चरम चनों के दौरान उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करने में मदद कर सकता है। यह वर्तमान में कुल हाइड्रोजन उत्पादन का लगभग 0.1% बनाता है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा की लागत में गिरावट जारी रहने के कारण इसके बढ़ने की उम्मीद है।

कई क्षेत्र अब हरित हाइड्रोजन को नवीकरणीय ऊर्जा की आंतरायिकता में सामंजस्य स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका मानते हैं, कम मांग के समय अतिरिक्त ऊर्जा का भंडारण करना ताकि मांग बढ़ने पर ग्रिड में वापस डाला जा सके जबकि रासायनिक, औद्योगिक और परिवहन क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज किया जा सके। हरित हाइड्रोजन मिशन में चार पद शामिल हैं, प्रथम पद हरित हाइड्रोजन संक्रमण के लिए रणनीतिक कौशल (साइट) योजना हेतु 17490 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं वहीं पायलट प्रोजेक्ट के लिए 1486 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया शोध और विकास के लिए 400 करोड़ वहीं मिशन के अन्य घटकों के लिए 388 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
भारत में राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन में कार्य भी द्रुत गति से जारी है। हाइड्रोजन संक्रमण के लिए रणनीतिक कौशल (साइट) योजना के तहत हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइज़र (वैद्युत अपघट्य जो जल से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मुक्त करता है) विनिर्माण परियोजनाओं के लिए बोलियां दिसंबर 2023 तक जमा की गई है। हरित हाइड्रोजन संक्रमण के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप (साइट) योजना (मोड-1- किश्त) के तहत भारत में हरित हाइड्रोजन के लिए 4,50,000 टन की उत्पादन सुविधाएं स्थापित करने के लिए हरित हाइड्रोजन उत्पादकों के चयन के लिए अनुरोध (आरएफएस) भी बीते जुलाई को जारी किया गया था।

विगत 7 जुलाई 2023 को जारी साइट स्कीम (ट्रेंच-ख) के तहत 1.5 गीगावॉट वार्षिक इलेक्ट्रोलाइजर (विद्युत अपघटक) विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर (विद्युत अपघटक) । हरित हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य भारत को हरित हाइड्रोजन और उसके व्युत्पन्न के उत्पादन, उपयोग और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करना है। इससे हाइड्रोजन और ईंधन सेल में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के साथ बहुपक्षीय जुड़ाव और सहयोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
कुछ स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ हैं जो अब तक ऊर्जा परिवर्तन पर हावी रही हैं, अर्थात् सौर ऊर्जा, पवन (तटीय और अपतटीय दोनों) और लिथियम आयन बैटरी। इन प्रौद्योगिकियों के बड़े पैमाने पर निर्माण और तैनाती से उनकी लागत में गिरावट देखी गई है, 2010 और 2018 के बीच बैटरी की लागत में 84%, सौर ऊर्जा के लिए 87%, तटवर्ती पवन के लिए 47% और अपतटीय पवन के लिए 32% की गिरावट आई है।

भारत में हाइड्रोजन के उपयोग का संभावित पैमाना बहुत बड़ा है जिसके 2050 तक 3 से 10 गुना के बीच वृद्धि के आसार हैं। कार्बन तटस्थ अर्थव्यवस्था में परिवर्तन में हाइड्रोजन नवीकरणीय ऊर्जा और बैटरियों को एक पूरक भूमिका प्रदान कर सकता है। हाइड्रोजन को 'ग्रे' (जीवाश्म ईंधन से उत्पादित), 'नीला' (कार्बन कैप्चर और भंडारण के साथ जीवाश्म ईंधन से उत्पादित) या 'हरा' (नवीकरणीय बिजली से उत्पादित) में विभाजित किया जा सकता है।
नवप्रवर्तकों, उद्यमियों और सरकार के बीच सक्रिय सहयोग से, हरित हाइड्रोजन में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (जो ग्रीन हाउस के लिए बेहद जिम्मेदार गैस) को काफी कम करने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और भारत को शुद्ध-शून्य ऊर्जा निर्यात की राह पर लाने की क्षमता है। इससे भारत को उच्च मूल्य वाले हरित उत्पादों का निर्यात करने में भी मदद मिलेगी, जिससे यह 'कार्बोनाइज' की आवश्यकता के बिना औद्योगीकरण करने वाली पहली प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन जाएगा। कम लागत वाली नवीकरणीय बिजली के मामले में भारत का विशिष्ट लाभ, इलेक्ट्रोलाइज़र (वैद्युत अपघटक) की तेजी से गिरती कीमतों से पूरक, हरित हाइड्रोजन को न केवल जीवाश्म ईंधन आधारित हाइड्रोजन की  तुलना में भी सक्षम बना सकता है।

भारत सरकार की योजना 2035 तक शुद्ध-कार्बन शून्य हब बनने और नवीकरणीय ऊर्जा प्रोद्योगिकी में अगले तीन वर्षों में लगभग 750 अरब रुपये का निवेश करने की है। इस दिशा में कुछ सार्थक प्रयास भी हुए हैं जैसे, सरकार के नेतृत्व वाला सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू), इंडियन ऑयल हरित हाइड्रोजन क्रांति में सबसे आगे है। यह मथुरा रिफाइनरी के लिए भारत की पहली हरित हाइड्रोजन इकाई स्थापित करने की योजना बना रही है, जिसका उपयोग कच्चे तेल को संसाधित करने के लिए किया जाएगा।
भारत ने जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप को हाइड्रोजन का निर्यातक बनने की अपनी महत्वाकांक्षा घोषित की है। भारत सरकार द्वारा समर्थित परियोजनाओं के तहत विभिन्न हाइड्रोजन चालित वाहनों का विकास और प्रदर्शन किया गया है। इनमें टाटा मोटर्स लिमिटेड की 6 सेल बसें, सरकार के सहयोग से इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा दिल्ली में 50 हाइड्रोजन समृद्ध सीएनजी (एच-सीएनजी) बसें शामिल हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की, 2 हाइड्रोजन ईंधन वाली आंतरिक दहन इंजन वाली बसें पहलें शामिल हैं।

कुछ अनिवार्य खर्चों की वजह से वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन के कुल उत्पादन में हरित हाइड्रोजन का हिस्सा फिलहाल एक फीसदी से भी कम है और भारत का लक्ष्य ऐसे हाइड्रोजन का एक वैश्विक औद्योगिक केंद्र एवं निर्यातक बनना है। भले ही यह एक नेक महत्वाकांक्षा है, लेकिन एक उच्च-प्रौद्योगिकी वाला 'मैन्यूफैक्चरिंग हब' बनने का भारत का पिछला रिकॉर्ड 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने को लेकर संदेह पैदा करता है।

अपनी तमाम नीतियों के बावजूद, भारत सौर सेल, अर्धचालक या पवन ऊर्जा से संबंधित घटकों का शुद्ध निर्यातक बनने में कामयाब नहीं हो पाया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि 'मैन्यूफैक्चरिंग' से संबंधित भारत का अंतर्निहित आधार कमजोर बना हुआ है और वह वैश्विक पूंजी को कुशलतापूर्वक आकर्षित और उसका उपयोग करने में नाकाम है। अपनी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए, भारत को अपने छोटे मैन्यूफैक्चरिंग और संबद्ध उद्यमों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा जो बड़े उद्योगों के बजाय किसी भी हरित अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार साबित होंगे।

स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिए हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्वों में से एक है। हाइड्रोजन एक ऊर्जा वाहक है ना कि स्रोत यह ऊर्जा की अधिक मात्रा को वितरित या संग्रहित कर सकता है इसका उपयोग ईंधन सेल में विद्युत या ऊर्जा और उसमें उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है वर्तमान में पेट्रोलियम शोधन और उर्वरक उत्पादन में हाइड्रोजन का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है जबकि परिवहन एवं अन्य उपयोगितायें इसके लिए उभरते बाजार हैं।

हाइड्रोजन और ईंधन सेल वितरित या संयुक्त ताप तथा शक्ति सहित विविध अनुप्रयोगों में उपयोग के लिए ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं अतिरिक्त ऊर्जा , अक्षय ऊर्जा भंडारण और इसे सक्षम करने के लिए, तंत्र चलित बिजली आदि के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है । इनकी उच्च दक्षता और शून्य या लगभग शून्य उत्सर्जन संचालन के कारण हाइड्रोजन और एवं ईंधन सेलों जैसे कई अनुप्रयोगों में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की कम करने की क्षमता है।दुनिया भर में वर्तमान में कुल उत्पादित हाइड्रोजन का एक से डेढ़ प्रतिशत हिस्सा ही हरित हाइड्रोजन का होता है। अभी हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत अधिक है, वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन की लागत हाइड्रोकार्बन ईंधन जैसे कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस आदि के समान ही हो जाएगी। उत्पादन और बिक्री बढ़ने पर कीमतों में और कमी आएगी यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत की हाइड्रोजन की मांग वर्ष 2050 तक 5 से 6 गुना बढ़ जाएगी इसमें 80% भागेदारी हरित हाइड्रोजन की होगी ।

स्रोत - पर्यावरण डाइजेस्ट,वर्ष 38. अंक 01 जनवरी 2024

ईमेल - paryavaran.digest@gmail.com,kspurohitrtm@gmail.com

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Post By: Shivendra
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