प्रस्तावना
भारत एक विकासशील देश है जहां जनसंख्या घनत्व विश्व के औसत जनसंख्या घनत्व से कहीं अधिक है। हर जगह मानव हस्तक्षेप ध्यान देने योग्य बात है, जो पीड़ित व्यक्ति से शुरू होकर मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति तक मौजूद है। देश की प्रकृति भी इनके साथ प्रभावित हो गई है। देश में जैसे-जैसे जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है वैसे-वैसे खाद्य की माँग भी एक साथ बढ़ रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण वर्ष 2025 एवं 2050 में खाद्यान्न की माँग क्रमश: 345 और 494 मिलियन टन तक पहुँच जायेगी। इस प्रकार, इस लक्षित खाद्यान उत्पादन को प्राप्त करने के लिए कृषि रसायनों के उचित प्रबंधन के साथ साथ ही प्राकृतिक संसाधनों (मृदा एवं जल) के दक्ष उपयोग द्वारा सिंचित और वर्षा आधारित स्थिति दोनों के तहत फसल उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि करना बहुत ही आवश्यक है।
हमें वृद्धि विकास और आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये जल की प्रत्येक बूंद का दक्ष उपयोग करना पड़ेगा अर्थात् प्रति जल बूंद-अधिक फसल। 'उत्पादन' को अवधारणा पर विचार करना पड़ेगा। लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है। कि उपयोग करने योग्य उपलब्ध जल हमारे और हमारे पर्यावरण के लिये क्या पूरी तरह से सुरक्षित है ?
अधिकांशत: हमें इस प्रश्न के खिलाफ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं ही प्राप्त होंगी। विभिन्न जल संसाधनों में से भूजल हमारे दिन-प्रतिदिन जीवन की क्रियाओं में अधिकतम योगदान देता है। विश्व के कुल 3% ताजा जल संसाधनों में से अधिकतर जल ध्रुवीय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पाया जाता है, वैश्विक जल का केवल 1% भाग ही तरल अवस्था में मौजूद है। जबकि, कुल 98% ताजा भूजल तरल अवस्था में पाया जाता है, इसलिये, यह पृथ्वी का सबसे मूल्यवान ताजा जल संसाधन है। भूजल की गुणवत्ता मानव स्वास्थ्य और खाद्यान की मात्रा एवं गुणवत्ता के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, फसलों और आसपास के वातावरण को प्रभावित करती है।
भूजल का महत्व
- हमारी अधिकांश पेयजल की मात्रा भूजल से ही प्राप्त होती है।
- कृषि, उद्योग और रोजमर्रा के जीवन के लिये इस्तेमाल किया गया जल अधिकांशतः भूजल से ही प्राप्त होता भूजल की सतह के बिना जल का पुनःभरण संभव नहीं हो सकता
- मौसमी परिवर्तनशीलता की परवाह किये बिना भूजल पूरे वर्ष भर उपलब्ध रहता है। सतही जल के मुकाबले भूजल का अक्सर ज्यादा उपचार नहीं करना पड़ता है।
भूजल प्रदूषण के स्रोत
प्रदूषण स्रोतों के क्षेत्र की सीमा और प्रदूषण के स्पष्ट स्रोतों के आधार पर भूजल प्रदूषण को बिंदु स्रोत और गैर-बिंदु स्रोत के रूप में विभाजित किया जा सकता है। जब सतही जल और भूजल एक अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र या जल निकाय के थोड़े से आयतन से ही दूषित हो जाता है तो इस प्रकर के प्रदूषण को बिंदु स्रोत कहा जाता है। जबकि, भूजल प्रदूषण का गैर-स्रोत कहीं भी मौजूद हो सकता है और यह बड़े क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है दूषित पदार्थों के गैर-स्रोत उन क्षेत्रों में पर्यावरण को दूषित करते हैं जो बिंदु स्रोतों की तुलना में बड़े होते हैं। तालिका 16 में भूजल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार उत्पादों का वर्णन किया गया है।
भूजल प्रदूषण के एंथ्रोपोजेनिक स्रोत - बिंदु स्त्रोत
रेडियोधर्मी और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ भूजल को प्रदूषित करने के प्रमुख बिंदु स्रोतों में से एक है अगर यदि इनको सही ढंग से फेंका नहीं गया हो या हटाया नहीं गया हो फेंकने वाली सामग्री के फैलने और रिसने की संभावनाओं के कारण भूजल सीधे ही दूषित हो सकता है जिसको लगभग भूजल से कभी भी नहीं हटाया जा सकता है। लैंडफिल्स भूमि के निचले भाग में लैंडफिल्म से जहरीले पदार्थों के मृदा में रिसने के कारण भूजल प्रदूषण एंथ्रोपोजेनिक बिंदु स्रोत का एक और प्रमुख उदाहरण हैं और तुरंत इस वजह से लगभग पूरा भूजल प्रदूषित हो जाता है। यदि जब लैंडफिल्स बहुत बड़े होते हैं तो उनके द्वारा प्रदूषित भूजल की मात्रा भी अधिक होती है।
पशु अपशिष्ट
विशेष रूप से मूत्र और मल जो जमीन पर पड़े रह जाते हैं, वे भी भूजल प्रदूषण का स्रोत बन सकते हैं। इस अपशिष्ट में बहुत से नाइट्रोजन युक्त यौगिक और विषाक्त पदार्थ होते हैं जो या तो सीधे या प्रकृति में कुछ संशोधन के बाद भूजल को दूषित कर सकते हैं। प्रदूषण के बिंदु स्रोत कृषि क्षेत्रों में आम है जहाँ पशुओं को छोटे क्षेत्रों में केंद्रित रखा जाता है जैसे कि फीडलॉट।
शहरी और औद्योगिक विकास
भूजल के प्रदूषण के अन्य बिंदु स्रोतों में सेप्टिक टैंक, द्रव भंडारण टैंक और फसल औद्योगिक लैगून्स आदि शामिल हो सकते है। यदि एक प्रदूषक जल में अघुलनशील है या और भूजल स्तर तक पहुँच जाता है तो दूषित पदार्थ धीरे-धीरे बहने वाले भूजल की वजह से भूजल में स्थानांतरित हो जाते हैं। यदि स्रोत समय: की अवधि के साथ प्रदूषक को बनाये रखे रखता है तो घुलनशील प्रदूषकों का वितरण एक विशेष प्लमलाइक' आकार ले लेगा।
अपशिष्ट पदार्थों को ले जाने वाले सीवर पाइपों से कभी-कभी आसपास की मृदा और भूजल में तरल पदार्थों का रिसाव हो जाता है। इस जल में कार्बनिक पदार्थ, अकार्बनिक लवण, भारी धातुएं, बैक्टीरिया, वायरस और नाइट्रोजन आदि होते हैं। अन्य पाइप लाइन जो औद्योगिक रसायनों और तेल ब्रिन वाहक का कार्य करती है वे भी कभी-कभी लीक हो जाती हैं। खासकर जब पाइप के माध्यम से ले जाने वाली सामग्री संक्षारक प्रकृति वाली होती हो तो।
मानव द्वारा खनन गतिविधियां भी भूजल के प्रमुख प्रदूषक स्रोतों में से एक है। सक्रिय और स्थगित हो गई दोनों खदानें भूजल प्रदूषण में योगदान दे सकती हैं। वर्षा के द्वारा खदान अपशिष्ट के घुलनशील खनिजों का भूमि की सतह के नीचे भूजल में रिसाव हो जाता है। इस अपशिष्ट में अक्सर धातु, अम्ल, खनिज सल्फाइड आदि होते हैं। स्थगित हो गई खानों को अक्सर कुओं और अपशिष्ट पदार्थ के गड्ढों के रूप में कभी-कभी एक साथ उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, खानों को सूखा रखने के लिये इनको पंप भी किया जाता है। यह पंपिंग दूषित भूजल को भूमि की सतह के ऊपर लाने का कारण बन सकता है, जिसको कुओं द्वारा अच्छी तरह से ग्रहण कर लिया जाता है।
जल निकास कुओं का नम क्षेत्रों में अतिरिक्त जल का निकास करने एवं मृदा की नीचे की प्रोफाइल तक जल के निर्वहन के लिये इस्तेमाल किया जाता है। इन कुओं में कई प्रकार के कृषि रसायन और जीवाणु होते हैं। हालांकि, इंजेक्शन कुओं का उपयोग तूफान के जल को इकट्ठा करने, स्पिड तरल पदार्थ को इकट्ठा करने, अपशिष्ट जल को निकालने और औद्योगिक, वाणिज्यिक व उपयोगी अपशिष्ट पदार्थो का निकास करने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। अनुचित रूप से निर्मित कुओं में भी भूजल दूषित हो सकता है, जब प्रदूषित सतह या भूजल को अच्छी तरह से कुओं में प्रवाहित किया जाता हो तो। अनुचित रूप से स्थगित कुयें एक नाली के रूप में कार्य करते हैं जिसके माध्यम से प्रदूषक भूजल की जलभृत तक पहुँच जाते हैं। यह तभी होता है जब कुओं को खुला छोड़ दिया जाता हो या कैसिंगों को हटाया दिया जाता हो जैसा कि अक्सर किया जाता है या यदि केसिंग के जंग लग गयी हो। इसके अलावा कुछ लोग अपशिष्ट पदार्थों को फेंकने के लिये इन कुओं का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि मोटर तेल। ये दूषित पदार्थ कुओं को जलभृत तक पहुँच जाता है जिनका लोग पीने की आपूर्ति के लिये उपयोग करते हैं। स्थगित कुओं जैसे, गैस, तेल या कोयले के लिए) या टेस्ट होल कुओं को आम तौर पर बिना ढ़के ही खुला छोड़ दिया जाता है जिससे ये भी दूषित पदार्थो के वाहक के रूप में कार्य करते हैं।
गैर-बिंदु स्रोतः
यह हम सभी जानते हैं कि मानव निर्मित भूजल प्रदूषण, गैर-बिंदु स्रोत के रूप में भूजल प्रदूषण का सबसे विनाशकारी कारण है। यहाँ कुछ प्रमुख मानव जनित तरीकों को वर्णित किया जा रहा है जिनको वजह से भूजल प्रदूषित हो जाता है।
दुनिया भर में कृषि भूमि संशोधन या रूपान्तरण का महत्वपूर्ण कारण रहा है। भूमि की जुताई, भूमि की सतह के इन्फिल्ट्रेसन और वर्षा अपवाह जैसी विशेषताओं को बदल देती है जो भूजल पुनः भरण को प्रभावित करती है और सीधे भूजल जलभृत में दूषित पदार्थों के वितरण को प्रभावित करती है।
नाइट्रेट और अमोनियम आयन्स नाइट्रोजन के दो प्रमुख रूप होते हैं जो पौधों द्वारा उनके उपापचय और वृद्धि की क्रियाओं द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। नाइट्रेट आयन जल में बहुत ही घुलनशील हैं जो सीधे मास फ्लो द्वारा जलभृत में पहुँच जाते हैं। अमोनियम युक्त यौगिकों की मृदा में नाइट्रीकरण क्रिया भूजल में अतिरिक्त नाइट्रेट की सांद्रता में वृद्धि होने का दूसरा अन्य प्रमुख कारण है। सब्जियों एवं पेयजल के माध्यम से अतिरिक्त नाइट्रेट का सेवन या नाइट्रेट युक्त रसायनों के संपर्क में आने से बल्यू बेबी सिड्रोम या मिथेमोग्लोबिनेमिया रोग हो जाता है। इसकी वजह से शरीर में रक्त की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी के कारण शरीर के अलग-अलग अंगों में साइनोसिस रोग होता है। इस रोग में वयस्कों की तुलना में शिशु इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
भूजल और सतही जल में कीटनाशक प्रदूषण आजकल एक प्रमुख पर्यावरण मुद्दा बन गया है। हाल ही के अध्ययनों से पता चला है कि फसलों की भूमि में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशकों से भूजल बहुत ही प्रदूषित हो रहा है और फिर यह कीटनाशी भूजल प्रवाह के साथ सतही जल तक वापिस आ जाते है। इसके अलावा, सतही जल और भूजल के बीच इन कीटनाशकों का प्रवाह कुछ कारकों के प्रति गतिशील हो जाता है जैसे कि अधिक वर्षा अपवाह और भूजल दोहन के दौरान उच्च भंडारण आदि किसी भी नदी के अधिक प्रवाह की अवधि के दौरान एट्रॉजीन की उच्च सांद्रता युक्त सतही जल तलछट और जलोढ़ जलभृत में स्थानांतरित हो जाता है, और जब नदी के स्तर में गिरावट होती है तो यह प्रवाह फिर धीरे-धीरे वापिस नदी की और चला जाता हैं। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र ऐसे बड़े क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके माध्यम से उर्वरक और कीटनाशक आदि पर्यावरण में छोड़े जाते है या पहुंचते हैं।
भूजल प्रदूषण के प्रभाव
भूजल के प्रदूषण के परिणामस्वरूप पेयजल की गुणवत्ता, जल की आपूर्ति में कमी, सतही जल पद्धतियों में खराबी, स्वच्छता की अधिक लागत, वैकल्पिक जल की आपूर्ति के लिये अधिक लागत और/या संभावित स्वास्थ्य समस्या आदि नुकसान पहुँचते हैं। यदि एक बार प्रदूषित स्रोत को नियंत्रित किया जाता है/ हटाया जाता है तो प्रदूषित भूजल का उपचार कई तरीकों से किया जा सकता है जिनको कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं के रूप में नीचे प्रस्तुत किया गया है।
- प्रदूषण के प्रवाह को रोकना
- प्रदूषित जल का पंप के माध्यम से दोहन करना, इसका उपचार करना और जलभूत को वापस लौटाना
- भूजल को उसी जगह पर छोड़ना और जल या प्रदूषित पदार्थ का उपचार करना।
- प्रदूषक की स्वाभाविक रूप से कम (न्यून) करने के लिये प्रदूषित पदार्थ को अनुमति देने के साथ-साथ एक विशेष स्रोत नियंत्रक का कार्यान्वयन करना।
अतः भूजल के प्रदूषण को रोकने के लिये स्थान विशिष्ट कारकों के आधार पर उचित उपचारात्मक तकनीकों का चयन करना और अक्सर संभावित जोखिमों के आधार पर सफाई के लक्ष्यों को मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर पूरा करना चाहिये जिस तकनीक का भी चयन किया गया है वो सफाई के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगी। ऐसी दक्ष तकनीकों का चयन करना होगा जिससे भूजल को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
निष्कर्ष
हमारे देश में कृषि के तेजी से विकास के साथ साथ पिछले कई दशकों के दौरान लगातार बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण की बढ़ती गति और जलसंसाधनों की बढ़ती हुई सामाजिक माँग के साथ सतही जल और भूजल दोनों ही लगातार विभिन्न प्रदूषक पदार्थों के कारण प्रदूषित हो रहे हैं। इसकी प्रत्यक्ष अदृश्यता के कारण अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्रों में भूजल हमेशा दृष्टि और दिमाग से बाहर ही रहा है इसलिये भूजल प्रदूषण बहुत जटिल, अदृश्य और आमतौर पर दीर्घकालिक प्रभाव रखता है। अतः हमें ऐसी तकनीकों का विकास करना होगा जिससे भूजल जैसे मूल्यवान संसाधन को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
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