पर्यावरण रक्षक सिद्ध गिद्ध

गिद्ध, साभार - विकिपीडिया
गिद्ध, साभार - विकिपीडिया

आप जानते होंगे कि गिद्ध नामक पक्षी अब विलुप्ति की कगार पर आ चुका है। पहले हमारे शहरों, खासकर हमारे गाँवों के गोचर व कचरे वाले स्थल, व जंगलों में इनकी संख्या बहुत हुआ करती थी, लेकिन अब यदाकदा ही हमें गिद्ध कहीं नजर आते हैं। गिद्ध पक्षी को रामायण में जटायु के रूप में रावण से लड़कर मरने के कारण हम उसे श्रद्धा से देखते हैं, जबकि आमतौर पर इसे घृणित और बदसूरत पक्षी के रूप में जानते हैं व मरे हुए जानवरों के माँस को खाने के कारण हम इन्हें कम पसन्द करते हैं। लेकिन इसके इस महत्वपूर्ण काम के लिए इसे हम पर्यावरण का रक्षक भी कहते हैं, ये पर्यावरण में मरे हुए जानवर को खाकर सफाई करते हैं और बीमारी को फैलने से रोकते हैं, हवा व भूमि को शुद्ध बनाकर रोगों को रोकने में सहायक के रूप में कार्य करते हैं।

गिद्ध की हम शिकारी पक्षियों में आने वाला मुर्दाखोर पक्षी भी कहते हैं। ये विश्व में सर्वाधिक ऊँची उड़ान वाले पक्षी के रूप में भी जाने जाते हैं, ये झुंड मैं रहते हैं, ये कत्थई और काले रंग का भारी कद का बड़ा पक्षी होता है। इनकी नेत्र दृष्टि व सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है, लगभग किलोमीटर की ऊंचाई से मरे जानवर की गंध को सूंघ व देख लेता है शिकारी पक्षियों की तरह इनकी चोंच भी आगे से टेढ़ी और बहुत मजबूत होती है। इनके पंजे चोंच की तुलना में कम मजबूत होते हैं। इनके बड़े पंख व छोटी पूंछ होती है। इसके पंखों का फैलाव 5 से 7.8 फीट तक होता है, इसका वजन 5.5 किलोग्राम से 6.5 किलोग्राम तक होता है। यह अपने वजन के 20 प्रतिशत भोजन की मात्रा को खा सकता है।

ये अपना भद्दा-सा घोंसला पहाड़ों में या मैदानी क्षेत्रों में पेड़ों की ऊँची शाखाओं पर बनाते हैं। राजस्थान में अधिकतर इनके घोंसले खेजड़ी के पेड़ पर पाये जाते हैं। आकार व पंख बड़े होने के कारण पेड़ के अन्दर जाने में इसको कठिनाई होती है, इसलिए इसे पेड़ की ऊँची शाखाएं ही अधिक सुविधाजनक लगती हैं। इसका अण्डा सफेद व कुछ मटमैला धब्बेदार रंग का होता है। मादा गिद्ध वर्ष में दो अण्डे देती है जो मुर्गी के अण्डे से थोड़े बड़े आकार के होते हैं, जिनकी सुरक्षा नर और मादा दोनों मिलकर करते हैं। दोनों ही मिलकर गर्माहट देते हुए लगभग 30 से 35 दिन तक उन्हें सेते हैं।

इनका बच्चा छः माह तक घोंसले में ही रहता है तथा छ माह बाद वह उड़ान भरता है तब तक नर गिद्ध व मादा दोनों उसे भोजन खिलाते हैं। इस दौरान वे अपने घोंसले से दूर नहीं जाते हैं तथा भोजन भी आसपास में ही तलाशते हैं। एक गिद्ध 5 वर्ष की उम्र मैं प्रजनन के योग्य होता है, सामान्यतयाः गिद्ध को उम्र 30 से 35 वर्ष तक की होती है, गिद्ध के सिर पर बाल नहीं होते हैं। इसका नंगा सिर, मरे हुए जानवर के माँस को खाते वक्त उसके जीवाणुओं की गर्दन पर कम से कम चिपकने का अवसर देते हैं व नंगे सिर की त्वचा शरीर के तापमान सन्तुलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गिद्ध गर्म और समशीतोष्ण क्षेत्रों में बहुतायत से पूरे विश्व में पाये जाते हैं। भारत में ये अधिकतर उत्तरी भाग में पाये जाते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में इसे प्राकृतिक रूप से भोजन मिल जाता है। वैसे वन्यजीव प्रेमी की पहली पसन्द गिद्ध द्वारा मरे हुए जानवर का माँस खाने के दृश्य को देखना होता है।

गिद्ध जिन पेड़ों पर नियमित बसेरा करते हैं उन पेड़ों पर अपने मलमूत्र त्याग करने से उसे सफेद चित्रित कर देते हैं। इनके मल-मूत्र में एसिड की मात्रा अधिक होने से लम्बे समय बाद पेड़ भी एसिड के प्रभाव से नष्ट होने लग जाता है। आसपास पानी की अधिक उपलब्धता होने पर गिद्ध नियमित स्नान व पीने में पानी अधिक उपयोग में लेता है। गिद्ध आम दिनों में भोजन की तलाश में मीलों उड़ते रहते हैं। गिद्ध अधिकतम 60 मील प्रति घन्टे की गति से उड़ सकता है तथा अपनी शक्ति को बचाने के लिए ये हवाओं की धाराओं में लम्बे समय तक बिना पंख हिलाये ग्लाइडर की तरह उड़ते रहने में बहुत कुशल होते हैं। गिद्ध की जब मरा हुए जानवर या उसकी गंध का पता चलता है तो वह एक झुण्ड के रूप में उसके ऊपर मंडराते हैं तथा पूर्ण सुरक्षा का अनुमान होने पर एक-एक कर नीचे उतरते हैं तथा गिद्धों का झुण्ड मरे हुए बड़े जानवर को अधिकतम 20 मिनट में चटकर कर जाता है।

गिद्ध के बोलने की क्षमता आकार की तुलना में कम ही होती है। यह अधिकतर मांस खाते वक्त धमकी भरी आवाज निकालता है या परिणय निवेदन के समय या अधिक भूखा होने पर धीमी आवाज निकालता है। वह जब मरे जानवरों का मांस खाता है तो उस वक्त कई विषैले बैक्टीरिया उसके पाँवों से चिपक जाते हैं। इसलिए गिद्ध अपना पेशाब अपने पैरों पर करता है, उसके पेशाब में यूरिक एसिड की मात्रा अधिक होने के कारण वह उन्हें अपने पेशाब से नष्ट कर पैर की विषैले बैक्टीरिया से मुक्त कराता है तथा पाँवों पर वाष्पीकरण करके उसको ठंडा रखता है गिद्ध के पेट में विशेष लाभकारी एसिड की मात्रा अधिक होने से वह दूषित मांस को भी बैक्टीरिया मुक्त कर पचाने में सक्षम होता है। वह मांस के साथ-साथ हड्डी को भी निगल लेता है। पेट अधिक भर जाने पर या उड़ने में कठिनाई होने पर वह उल्टी करके अपने आप को हल्का बनाकर उड़ जाता है। गिद्ध कभी जीवित व स्वस्थ्य पशु पर हमला नहीं करते हैं।

विश्व में लगभग कुल 22 प्रकार की गिद्धों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से भारत में नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से चार प्रजातियाँ प्रमुख हैं. 1 भारतीय गिद्ध, 2 लम्बी चोंच वाला गिद्ध, 3. लाल सिर वाला गिद्ध, तथा 4. बंगाल का गिद्ध।

राजस्थान के 25 जिलों में की गई गिद्ध की गणना के अनुसार इनकी संख्या 5080 है कुछ वर्षों पूर्व गिद्ध पूरे क्षेत्र में पाये जाते थे। पशुओं में दी जाने वाली डाइक्लोफेनाक, एक्सीटोन व कृषि में उपयोग की जाने वाली बेन्जिमन हैक्जा क्लोराइड (BHC) तथा डिक्लोफेनाक नामक दवा के प्रयोग का प्रभाव गिद्धों पर पड़ा है।

इन रसायनों के प्रयोग से इनके गुर्दों ने काम करना बन्द कर दिया, इससे इनकी प्रजनन्न क्षमता कम हो गयी, जिससे 1990 के दशक में गिद्धों की 98 प्रतिशत प्रजातियाँ खत्म हो गयीं। सन 1999-2000 मैं पड़े भीषण अकाल के समय बहुत से जानवर असमय ही मर गये जिससे जानवरों के अभाव में गिद्धों के लिए प्राकृतिक भोजन का अभाव हो गया, और गिद्ध कालान्तर में कम होते गये। हालांकि गिद्धों के कम होने के कुछ और भी कारण थे जैसे लोगों में पर्यावरण जागरूकता का अभाव, चक्रवात से मौत, हवाई दुर्घटनायें, कुत्तों के हमलों, मोबाइल टॉवर को तरंगों के दुष्प्रभाव व आदिवासियों के द्वारा शिकार करके इन्हें खाना, पतंगबाजी के धागों से चोटिल होकर इनको संख्या कम होती गयी और आज ये विलुप्ती के कगार पर पहुंच चुकी है।

इसलिए सरकार ने इसे लाल सूची में दर्ज कर संरक्षण के उपाय आरम्भ कर दिये तथा वन्यजीव अधिनियम में इसे संरक्षण प्राप्त है इसको मारना कानूनन दण्डनीय अपराध है। भारत सरकार ने भोपाल में गिद्ध पुनवास एवं संरक्षण केन्द्र की स्थापना की है। जिससे समय रहते इस प्रजाति को बचाया जा सके। इसलिए 01 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरुकता दिवस के रूप में हम मनाते हैं और इस प्रजाति को आने वाली भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित कर बचाने के लिए हम सतत् प्रयासरत हैं। आओ आज हम मिलकर गिद्ध बचाने का संकल्प लेवें।


संपर्क सूत्र - श्री सरदार सिंह चारण, रेलवे स्टेशन कॉलोनी, जालोर,
मो. 09001165745

 

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Post By: Kesar Singh
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