संदर्भ आपदा : प्रबंधन हो दुरुस्त

18 जून, 2013 को उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़क (छवि: एएफपी फोटो/ भारतीय सेना; फ़्लिकर कॉमन्स)
18 जून, 2013 को उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़क (छवि: एएफपी फोटो/ भारतीय सेना; फ़्लिकर कॉमन्स)

पूरे उत्तराखंड में बारिश के कहर ने ऑल वेदर रोड की असलियत भी खोल दी है तो सरकार के आपदा प्रबंधन की भी उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन विभाग के 14 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक से अब तक प्राकृतिक आपदा में 53 लोगों की मौत हो चुकी है। 35 लोग घायल हुए हैं। जबकि दो लापता है। 95 बड़े और 198 छोटे पशु मरे हैं। सड़क हादसों में 44 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 161 लोग घायल हुए हैं दो लापता हैं। आपदा में 1052 घर आंशिक रूप से 197 बुरी तरह से और 19 घर पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं। केवल चार धाम यात्रा की बात करें तो विभाग के मुताबिक 14 अगस्त तक चारों धामों में 21 लाख 67 हजार लोग आ चुके थे। जिनमें से 180 की मौत हो चुकी है। इनमें 177 लोगों की स्वास्थ्य खराब होने से मौत हो गई जबकि तीन प्राकृतिक आपदा के कारण जान गवां बैठे। अब तक प्रदेश में 2596 सड़कें प्रभावित हुई थींष सरकार का दावा है कि 2435 सड़कों को चालू कर दिया गया है। लेकिन बारिश और भूस्खलन के कारण सड़कें बार-बार बह और ढह जा रही हैं। अभी लगभग एक महीना और बारिश का दौर चलेगा। ऐसे में क्या हालात हो सकते हैं इसकी कल्पना की जा सकती है। इस मॉनसून में प्रदेश के लगभग हर जिले से तबाही हुई हालांकि, देहरादून और हरिद्वार जिले में बारिश से नुकसान कम हुआ है। एक और दो जुलाई की बारिश ने कुमाऊं के नैनीताल, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में कहर बरपाया. मूसलाधार बारिश से कारण कई सड़कें बह गई और एक पुल को भी नुकसान पहुंचा। आठ लोगों की मौत हुई बारिश से नुकसान इतना ज्यादा था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खुद हल्द्वानी जाकर अधिकारियों के साथ बैठक करनी पड़ी। नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में नुकसान के बाद बारिश का कहर उधमसिंह नगर जिले में भी देखने को मिला। उधम सिंह नगर में मॉनसून के दौरान बारिश से अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है। कुमाऊं में बारिश से अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 20 लोगों की मौत नदियों के उफान पर आने और बहने से हो चुकी हैं।

पूरा गढ़वाल मानसून के समय आपदा के प्रति बेहद संवेदनशील में माना जाता है। इस बार की बारिश ने भी यह बताया कि सबसे अधिक नुकसान गढ़‌वाल क्षेत्र में होगा। इसकी शुरुआत गंगोत्री धाम में बादल फटने से हुई। धाम में पानी के 'तूफान' ने न केवल वहां के गंगा घाटों और आवासीय मकानों, सड़का, बिजला लाइनों को भी काफी नुकसान पहुंचा है. हालांकि, गनीमत रही कि गंगोत्री धाम में किसी तरह की जनहानि नहीं हुई। इसके बाद टिहरी गढ़वाल के बूढ़ाकेदार में आपदा का 'रौद्र' रूप देखा गया। इस भीषण आपदा में लोगों ने अपने घरों को पत्तों की तरह बिखरते हुए देखा। भूस्खलन की चपेट में आए। टिहरी के पूरे तिनगढ़ गांव को विस्थापित होना पड़ा। टिहरी के बाद रुद्रप्रयाग जिले में भी कुदरत ने खूब 'हाहाकार' मचाया। 31 जुलाई की रात केदारनाथ पैदल यात्रा मार्ग पर मूसलाधार बारिश के कई जगह भूस्खलन हुआ। जबकि कई जगह रास्ता साफ हो गया।

इससे केदारनाथ धाम और यात्रा मार्गों पर हजारों तीर्थ यात्री फंस गए। कई लोग बारिश के डर से अपनी जान बचाने के लिए जंगलों की तरफ बढ़े रास्ता भटक गए। चार धाम यात्रा रोकी गई। लेकिन हैरत की बात यह रही कि इस वर्ष रुद्रप्रयाग प्रशासन ने रात के समय भी यात्रा जारी रखी थी जबकि पहले शाम 3-4 बजे तक केदारनाथ धाम से नीचे या गौरीकुंड से ऊपर यात्रियों को रोक दिया जाता था। सरकार फंसे यात्रियों की संख्या अलग- अलग बताती रही। रेस्क्यू लोगों की सरकार ने समय-समय पर जो तादाद बताई उससे साफ लगा कि सरकार कुछ तो छिपा रही है। सरकार ने रेस्क्यू ऑपरेशन के साथ सेना की मदद से सर्च अभियान भी शुरू किया। 

यात्रा मार्ग पर लिनचोली के पास दो स्निफर डॉग की मदद से लापता लोगों की खोजबीन की। इस बीच सवाल उठने लगे कि क्या सरकार के पास ये आंकड़े हैं कि 31 जुलाई के आसपास केदारनाथ में ठीक- ठीक कितने तीर्थयात्री मौजूद थे? मिसाल के तौर पर एक अगस्त को रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी सौरभ गहरवार के एक्स हैंडल पर करीब 200-300 लोगों के धाम के आसपास होने की जानकारी साझा की। 2 अगस्त की शाम तक ये आंकड़ा 7000 पार कर गया। आपदा प्रबंधन और पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने दावा किया कि 2 अगस्त तक कुल 7,234 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया। 3 अगस्त को 1,865 यात्री रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाये गये। 3 अगस्त तक कुल 9,099 यात्रियों को रेस्क्यू किया जा चुका था। चार अगस्त को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के एक बड़े अखबार के कार्यक्रम में दावा किया कि लगभग 17 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया वहीं उसी दिन सरकारी विज्ञप्ति में संख्या 10347 बताई गई। वहीं छह अगस्त को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बयान जारी कर 15 हजार से अधिक जिंदगियां बचाने का दावा किया। 

सात अगस्त को भाजपा विधायक विनोद चमोली ने रेस्क्यू किए गए लोगों की तादाद 16 हजार से अधिक बताई तो 12 अगस्त को भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी ने रेस्क्यू लोगों की तादाद 20 हजार से अधिक बता दी। आपदा प्रबंधन विभाग ने अब तक केवल 3 लोगों की मौत और 6 लोगों के लापता होने की पुष्टि की। जबकि स्थानीय लोग कुछ और ही दावा करते दिखाई दिए। चारधाम यात्रा से पहले सरकार सौ फीसद पंजीकरण की बात करती दिखती थी लेकिन जब आपदा आई तो सारे दावे घरे के धरे रह गए क्योंकि सरकार यात्रा में फंसे लोगों की सही संख्या ही नहीं बता पाई। आपदा प्रबंधन के अपर सचिव आनंद स्वरूप ने कहा कि पर्यटन विभाग ने आपदा प्रबंधन विभाग को केदारनाथ धाम पर आने वाले तीर्थ यात्रियों के संबंध में किसी तरह का कोई डेटा साझा नहीं किया। उन्होंने कहा कि केदारनाथ मार्ग पर फंसे यात्रियों को केवल प्रत्यक्षदर्शियों और मौके पर मौजूद हालातों के आधार पर ही चिन्हित किया जा रहा है। बता दें कि 2013 की केदारनाथ आपदा का के बाद साल 2021 में उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने चारधाम यात्रा में आने वाले यात्रियों के रियल टाइम मॉनिटरिंग और परिस्थितियों में यात्रियों की स्थिति जानने के लिए पंजीकरण और उनके वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की थी। यह इसलिए भी किया गया था कि क्योंकि 2013 में भी केदारनाथ में कितने यात्री मौजूद थे, इसकी जानकारी किसी विभाग के पास नहीं थी। दोबारा ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों का रजिस्ट्रेशन और उनके वेरिफिकेशन की कवायद की गई थी। लेकिन पिछले दो सालों से यह प्रक्रिया लगातार सवालों के घेरे में रही और इस साल जब 31 जुलाई की रात केदारनाथ पैदल मार्ग पर बादल फटा तो उस समय केदार घाटी में कितने लोग मौजूद थे इसके सरकारी इंतजाम की पोल खुल गई। रुद्रप्रयाग जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे ने तो पल्ला झाड़ने के अंदाज में कहा कि यात्रियों का पूरा डाटा निदेशालय में ही संकलित किया जाता है। उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। सत्ता पक्ष इस दौरान हेडलाइन मैनेजमेंट में लगा रहा है और लगातार यह रट लगाता रहा है कि सरकार ने रेस्क्यू ऑपरेशन में अपनी पूरी ताकत झोंकी हैं। केदारघाटी में लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। सत्ता पक्ष की अपने ही नियमों की धज्जियां उड़ाने का आलम तो यह रहा कि जहां सरकार ने आपदा के कारण चार धाम यात्रा रोकी थी और लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर, सेना, वायु सेना एसडीआरएफ, एनडीआरएफ की मदद ली वहीं भाजपा के पूर्व कैबिनेट मंत्री व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हेलीकॉप्टर में परिवार समेत केदारनाथ दर्शन के लिए पहुंच गए। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुई तो सरकार को विवाद से पल्ला छुड़ाना मुश्किल हो गया। 

मानसून की बारिश इतना कहर बरपा रही है कि उत्तराखंड में अकेले ऊर्जा निगम को ही करीब 126 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर लंबी विद्युत लाइनें और तीन हजार से अधिक पोल क्षतिग्रस्त हो गए। इसके साथ ही प्रदेशभर में 400 से अधिक ट्रांसफार्मर को नुकसान पहुंचा। इसमें सर्वाधिक नुकसान रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में हुआ वहां बिजलीघर से लेकर अन्य उपकरणों विद्युत लाइन, पोल और ट्रांसफार्मर को भारी क्षति पहुंची है। अतिसंवेदनशील रुद्रप्रयाग जिले में इस मानसून सीजन में अब तक 27 किमी से अधिक लंबाई की विद्युत लाइनें, कुल 236 बिजली के पोल, 10 ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हुए हैं।
इसबार यह जरूर देखा गया कि प्रदेश सरकार का ज्यादा ध्यान आपदा प्रबंधन से ज्यादा आपदा की खबरों के प्रबंधन पर अधिक रहा इसका नतीजा मुख्यधारा के मीडिया में भी नजर आया जिसने आपदा के प्रभाव और लोगों की परेशानियों को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई।

सरकार आपदा के प्रति कितनी गंभीर थी इसका अंदाजा इन्हीं बातों से हो जाता है कि बरसात से काफी पहले 25 अप्रैल को ही देहरादून मौसम केंद्र के निदेशक डॉ बिक्रम सिंह ने उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) की ओर से मानसून की तैयारियों को लेकर विभिन्न विभागों के लिए आयोजित प्रशिक्षण शिविर मानसून में सामान्य से साथ फीसद अधिक बारिश होने का पूवार्नुमान व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को तैयारियां शुरू करने की सलाह दे दी थी। 17 जून को वर्ष 2023 की केदारनाथ आपदा की 11वीं बरसी पर राज्य की आपदाओं को लेकर पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों के बीच वृहद मंथन में कहा गया था कि केदारनाथ में 2013 के से हालत फिर से बनते हैं तो बदरीनाथ और केदारनाथ में हो रहे भारी निर्माण के कारण इस बार नुकसान पहले से
भी ज्यादा होगा। विशेषज्ञों के बीच इस पर भी चर्चा की गई कि जिस तरह सरकार बिना आपदाओं की परवाह किए निर्माण कार्य को मंजूरी दे रही है, चार धाम यात्रा को भी रेगुलेट नहीं किया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में आपदाओं के लिहाज से प्रदेश की मुसीबत बढ़ने वाली है। यही नहीं 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी हाईपावर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हर एक धाम की आपात स्थिति में बाहर निकालने की योजना बनाने के लिए कहा था।

क्योंकि धाम तक पहुंचने के लिए जैसे जैसे ऊपर जाया जाता है, रास्ते संकीर्ण होते जाते हैं। हर धाम की एक आपात निकासी योजना होनी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार और प्रशासन पूरी तरह लापरवाह बना रहा। जुलाई-अगस्त के महीने बारिश और भूस्खलन के लिहाज से वैसे ही बेहद संवेदनशील होते हैं। फिर उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में पिछले करीब 200 सालों से कोई बहुत बड़ा भूकंप नहीं आया है। हिमालयी क्षेत्रों में इंडियन और यूरेशियन टैक्टोनिक प्लेटों के घर्षण से जमीन के नीचे ऊर्जा एकत्र हो रही है। अध्ययन से पता चला है कि यह ऊर्जा एक बड़ा भूकंप सा सकती है। ऐसे में प्रदेश में खासकर हिमालयी क्षेत्रो में विकास के नाम पर जिस तरह से अनियंत्रित निर्माण हुए है उससे यह साफ है कि जल्द ही यदि कोई बड़ा भूकंप आया तो भारी तबाही लाएगा। भूकंप भूस्खलनों को बहुत तेज कर देंगे। ऐसे में नदियों में मलबे से बने बांध टूटकर बाढ़ जैसी स्थिति बना सकते है।
इतना ही नहीं करीब दो महीने पहले ही तमाम वैज्ञानिक संस्थानों ने चेताया था कि उत्तराखंड की 13 ग्लेशियल झीलें खतरे की जद में हैं। इन झीलों का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है, जो भविष्य में केदारनाथ आपदा जैसे बड़े नुकसान का सबब बन सकता है। गंगोत्री ग्लेशियर के साथ बहुत सी झीलें हैं, जो अत्यधिक जोखिम में आ रही हैं। इसी प्रकार, बसुधारा ताल में भी जोखिम लगातार बढ़ रहा है, केदारताल, भिलंगना व गौरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र निरंतर बढ़ता जा रहा है। जो कि आने वाले समय में आपदा के जोखिम के प्रति संवेदनशील है। मानसून को लेकर सरकारी तैयारी के ये हाल रहे कि हैरत की बात है कि जब मानसून सिर पर थीं यानी गरमियां चल रही थी तो सचिव आपदा प्रबंधन जापान के दौरे पर थे और उसी दौर में आपदा प्रबंधन के 20 से ज्यादा लोग नौकरी छोड़ चुके थे। खैर, इस बार के आम बजट में केंद्र सरकार ने बादल फटने और भारी भूस्खलन के कारण उत्तराखंड को हुए नुकसान के लिए सहायता उपलब्ध कराने की बात कही है। अब देखना है कि आपदा की चोट के मरहम के लिए केंद्र अपनी पोटली से कितनी रकम जारी करता है। यह भी देखा जाना है कि क्या सरकार उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन को बेहतर करने के लिए पहाड़ के कंधों को छील ऑल वेदर रोड जैसी चौड़ी सड़कें बनाने और पहाड़ में भीड़ बढ़ाने की अपनी नीति को पर्यावरण संरक्षण के नजरिए से बदलती है या फिर समय से साथ सब कुछ भूल पुराने ढर्रे पर कायम रहती है।

स्रोत - चाणक्य मंत्र, अगस्त 2014

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Post By: Kesar Singh
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