निरंतर बढ़ता धरती का तापमान इस ग्रह के जीव जगत के लिए खतरा बनता जा रहा है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि तापमान लगातार नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है। इसका ही हालिया प्रमाण जुलाई माह में देखने को मिला। 21 जुलाई को सबसे गर्म दिन के रूप दर्ज किया गया जब तापमान 17.06 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। अभी पर्यावरण विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इस चिंता से उबर पाते कि अगले ही दिन 22 जुलाई को तापमान ने नया रिकॉर्ड बना दिया। यह पृथ्वी पर सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया, जब तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। यह वैश्विक तापमान का विगत कई दशकों में सबसे उच्च स्तर है। यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) के अनुसार, 22 जुलाई को पृथ्वी ने कम से कम 84 वर्षों में अपना सबसे गर्म दिन अनुभव किया, जब वैश्विक औसत तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस के रिकार्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। यह एक दिन पहले 21 जुलाई को दर्ज किये गये 17.06 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकार्ड को पार कर गया।
ये अभूतपूर्व तापमान मासिक गर्मी के रिकार्ड की एक श्रृंखला के बाद आए हैं। जून में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुँचने या उससे अधिक होने का लगातार 12वाँ महीना रहा। पिछले साल जून से लेकर अब तक हर महीना में तापमान में वृद्धि का नया रिकार्ड बन रहा है। सी3एस के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला कि 22 जुलाई का दिन 1640 के बाद से सबसे गर्म दिन था। इतना ही नहीं, सी3एस ने कहा है कि वैश्विक तापमान अब लगभग 1,25,000 वर्षों में सबसे अधिक है, जो कोयला, तेल और गैस के जलने तथा वनों की कटाई के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। कहा गया कि हालांकि वैज्ञानिक इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि 22 जुलाई का दिन इस अवधि का सबसे गर्म दिन था, लेकिन मानव द्वारा कृषि विकसित करने से बहुत पहले से औसत तापमान इतना अधिक नहीं रहा है।
डाटा से पता चला है कि जुलाई 2023 से पहले, अगस्त 2016 में स्थापित पृथ्वी का दैनिक औसत तापमान रिकॉर्ड 16.8 डिग्री सेल्सियस था। हालाँकि, 3 जुलाई, 2023 से, 57 दिन ऐसे रहे हैं जब तापमान पिछले रिकॉर्ड से अधिक रहा है। सी3एस के निदेशक कार्लो बुओनटेम्पो ने कहा कि पिछले 13 महीनों के तापमान और पिछले रिकॉर्ड के बीच का अंतर चौंका देने वाला है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जा रही है, आने वाले महीनों और वर्षों में हमें नए रिकहर्ड देखने को मिलेंगे। 2010 से 2016 तक संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता की प्रमुख रहीं क्रिस्टियाना फिगुएर्स ने कहा है कि अभूतपूर्व शब्द अब उस भयावह तापमान का वर्णन नहीं कर सकता, जिसका हम सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय, विशेषकर जी-20 राष्ट्रों के सामने एक खतरनाक वास्तविकता है, जिसका समाधान उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में तेजी लाने और जीवाश्म ईंधनों को विवेकपूर्ण तरीके से चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की नीतियों के साथ करना होगा। वैश्विक बिजली का एक तिहाई हिस्सा अकेले सौर और पवन ऊर्जा से उत्पादित किया जा सकता है, लेकिन लक्षित राष्ट्रीय नीतियों को उस परिवर्तन को सक्षम बनाना होगा। अन्यथा हम सभी झुलस जाएंगे और जल जाएंगे।
विश्लेषण से पता चलता है कि 2023 और 2024 में पिछले वर्षों की तुलना में वार्षिक अधिकतम दैनिक वैश्विक तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। उच्चतम दैनिक औसत तापमान वाले 10 वर्ष 2015 से 2024 तक के हैं। वैश्विक औसत तापमान आमतौर पर जून के अंत और अगस्त की शुरुआत के बीच चरम पर होता है, जो उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों के कारण होता है। उत्तरी गोलार्ध में भूमि द्रव्यमान दक्षिणी गोलार्ध के महासागरों के ठंडे होने की तुलना में तेजी से गर्म हो जाता है। जानकार मानते हैं कि वैश्विक औसत तापमान पहले से ही रिकार्ड स्तर पर है, इसलिए दैनिक औसत तापमान का नया रिकार्ड पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था।
वैज्ञानिकों ने दैनिक वैश्विक तापमान में अचानक वृद्धि के लिए अंटार्कटिका के बड़े हिस्से में औसत से कहीं अधिक तापमान को जिम्मेदार ठहराया है। अंटार्कटिक सर्दियों के दौरान ऐसी बड़ी विसंगतियाँ असामान्य नहीं हैं और इसने जुलाई 2023 की शुरुआत में वैश्विक तापमान रिकार्ड करने में भी योगदान दिया। यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने कहा है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म साल होगा या नहीं, यह काफी हद तक ला नीना के विकास और तीव्रता पर निर्भर करता है। हालांकि 2024 इतना गर्म रहा है कि 2023 को पार कर जाएगा, लेकिन 2023 के आखिरी चार महीनों की असाधारण गर्मी के कारण यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि कौन सा साल अधिक गर्म होगा। जलवायु विज्ञान से जुड़ी गैर-लाभकारी संस्था बर्कले अर्थ ने पिछले सप्ताह अनुमान लगाया था कि 2024 में नए वार्षिक तापमान का रिकार्ड बनने की 62 प्रतिशत संभावना है। इसमें कहा गया है कि 66 प्रतिशत संभावना है कि 2024 में वार्षिक औसत तापमान विसंगति 1850-1600 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगी।
पेरिस में 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में विश्व नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक अवधि के औसत से 1. 5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी। हालाँकि, पेरिस समझौते में निर्दिष्ट 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का स्थायी उल्लंघन 20 या 30 साल की अवधि में दीर्घकालिक वार्मिंग को संदर्भित करता है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इस गर्मी को दुनिया भर में रिकॉर्ड सूखे, जंगल की आग और बाढ़ का कारण माना जाता है।
स्पष्ट है कि धरती अब झुलसने लगी है। आगे जाकर इस पर अवस्थित प्राणिजगत और वनस्पतियों के जल जाने का खतरा आसन्न है। यह आपदा मानवजनित है, इसलिए मानव समाज को इसकी जिम्मेदारी लेते हुए प्रभावी और त्वरित सुधारात्मक उपाय तत्परता से करने होंगे। इसमें अब और अधिक देरी आत्मघाती साबित होगी और इंसानों की गलती की सजा पूरे प्राणी जगत और वनस्पतियों को भी भुगतनी होगी।
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