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वन्यजीव
चंबल पट्टी में आग से पक्षियों की आफत
Posted on 19 Jun, 2024 08:28 PMउत्तर प्रदेश में प्रचंड गर्मी के बीच इटावा जिले में यमुना और चंबल के भेद में बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के आशियाने खाक होने का अंदेशा जताया जा रहा है। आग से छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के घोंसले जल कर खाक होने की यह संख्या एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो आंकी जा रही है।
विश्व कछुआ दिवस : चंबलघाटी की पांच नदियों में मिल रहा है दुर्लभ कछुओं को 'जीवनदान'
Posted on 22 May, 2024 11:22 AMभले ही कछुओं की तस्करी हर ओर होती हो लेकिन अर्से तक कुख्यात डाकुओं के आतंक से जूझती रही चंबल घाटी की पांच नदियों में हजारों सालों से प्राकृतिक रूप से दुर्लभ प्रजाति के कछुओं को जीवनदान मिल रहा है।
स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह प्रभावी नहीं
Posted on 09 Apr, 2024 11:44 AMवन्यजीव कार्यकर्ता एमके रंजीत सिंह के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड- गोडावण’ को सौर-पैनल परियोजनाओं में लगाए गए ओवरहेड ट्रांसमिशन तारों से होने वाली टक्कर के कारण बस्टर्ड पक्षियों की मृत्यु से संबंधित मामला उठाया गया था। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में पाई जाती हैं और उनकी संख्या में चिंताजनक कमी का कारण उनके निवास स्थान के पास सौर ऊर्जा संयंत्रों सहित,
चीतों के शिकार नहीं कर पाने से बढ़ी चिंता
Posted on 24 Jan, 2024 04:08 PMकूनो नेशनल पार्क के बाड़े से खुले जंगल में छोड़े गए दो नर चीतों अग्नि और वायु के शिकार न करने से पार्क प्रबंधन ने चिंता जताई है। इधर विशेषज्ञ यह आशंका जता रहे हैं कि लंबे समय तक बाड़ों में कैद रखने और भोजन उपलब्ध कराए जाने से चीतों में आलस्य की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो उनके सेहत के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। बता दें कि बरसात के दिनों में चीतों की ताबड़तोड़ मौत की घटनाओं के बाद खुले जंगल से
अवैध वन्यजीव व्यापारः जैवविविधता एवं पर्यावरण हेतु गंभीर संकट
Posted on 16 Dec, 2023 12:38 PMअपने विकास आरंभ से ही मनुष्य विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वन्यजीवों का शिकार करता चला आ रहा है। मानव द्वारा वन्यप्राणियों के शिकार का एक लम्बा इतिहास रहा है। मानव सभ्यता के शुरुआती चरणों में भोजन एवं मांस के लिए जंगली जीव-जंतुओं का शिकार किया जाता था। जंगलों, गुफाओं और शिलाश्रयों में रहने वाला आरंभिक मानव जानवरों का शिकार कर ही अपना भरण-पोषण करता था। खूंखार प्राणियों से स्वयं की सुरक्षा हे
जैव विविधता को सहेजने की अपरिहार्यता
Posted on 11 Jul, 2023 03:56 PMयह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ओर हम जैव विविधिता के संरक्षण के प्रति चिंता जताते हुए संगोष्ठियां करते हैं, नए कानून बनाते हैं, वहीं प्रति वर्ष लाखों हेक्टेयर वन एवं करोड़ों जीवों का विनाश कर जैव विविधता को चुनौती देते हैं। ऐसे में समझना कठिन हो जाता है कि हमारे इस दोहरे आचरण से जैव विविधता का संरक्षण किस तरह होगा। आंकड़े बताते हैं कि पिछले सैकड़ों सालों में, विशेषकर गत 200 वर्षों में मनुष्य जाति न
पहाड़ खत्म होने की वजह से बढ़ा आदिम जनजातियों का शोषण
Posted on 20 May, 2019 11:08 AMगोड्डा की ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में विख्यात राजमहल की पहाड़ियों के अस्तित्व संकट में है। गोड्डा जिला राजमहल पहाड़ी श्रृंखला से घिरा हुआ है। अंधाधुंध उत्खनन से दर्जनों पहाड़ियों का नामोनिशान धीरे-धीरे मिटता जा रहा है।
जंगल-जंगल बात चली है
Posted on 08 Apr, 2015 12:04 PMरहस्यों से भरे हैं भारत के जंगल। जंगल में रहना बहुत ही रोमांचक और खतरों से भरा है। भारत कई प्रकार के जंगली जीवों का, अनेक पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों का घर है। घने जंगल और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कारण यह देश धरती का सबसे सुन्दर स्थान है। तप और ध्यान करने के लिए प्राचीनकाल में भारत सबसे उपयुक्त स्थान हुआ करता था। भारत के मध्य में स्थित ‘दण्डकारण्य’ में हजारों ऋषियों के आश्रम थे और यहाँ दुनिया की सबसेपक्षियों के संरक्षण का जीवंत उदाहरण: ग्राम सरेली
Posted on 24 Nov, 2011 10:48 AMएक मनुष्य के पूरे शरीर की तरह यदि शरीर का एक अंग नष्ट हो जाये तो उससे सारा शरीर बिना प्रभावित हुये नहीं रह सकता। इसी प्रकार इस प्रकृति के सारे तत्व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और यदि कोई एक तत्व प्रभावित होता है तो इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। अतः आकाश की सुन्दरता को पक्षीविहीन होने से जिस प्रकार यह ग्रामीण सतत् प्रयासरत् हैं, यह अपने आप एक सराहनीय प्रयास है और इससे हमें सबक लेना चाहिये।
उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में ब्रिटिश हुकूमत के एक अफसर को लहूलुहान कर देने से यह गाँव चर्चा में आया मसला था। एक खूबसूरत पक्षी प्रजाति को बचाने का, जो सदियों से इस गाँव में रहता आया। बताते हैं कि ग्रामीण ये लड़ाई भी जीते थे, कोर्ट मौके पर आयी और ग्रामीणों के पक्षियों पर हक जताने का सबूत मांगा, तो इन परिन्दों ने भी अपने ताल्लुक साबित करने में देर नहीं की, इस गाँव के बुजुर्गों की जुबानी कि उनके पुरखों की एक ही आवाज पर सैकड़ों चिड़ियां उड़ कर उनके बुजुर्गों के आस-पास आ गयी, मुकदमा खारिज कर दिया गया। गाँव वालों के घरों के आस-पास लगे वृक्षों पर ये पक्षी रहते हैं और ये ग्रामीण उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं,