स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह प्रभावी नहीं

सुप्रीम कोर्ट,Pc-wikipedia
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वन्यजीव कार्यकर्ता एमके रंजीत सिंह के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड- गोडावण’ को सौर-पैनल परियोजनाओं में लगाए गए ओवरहेड ट्रांसमिशन तारों से होने वाली टक्कर के कारण बस्टर्ड पक्षियों की मृत्यु से संबंधित मामला उठाया गया था। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में पाई जाती हैं और उनकी संख्या में चिंताजनक कमी का कारण उनके निवास स्थान के पास सौर ऊर्जा संयंत्रों सहित, ओवरहेड पारेषण लाइनों से उनका अक्सर टकराना है। इस मसले पर तीन जजों की बेंच ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले क्षेत्रों में ओवरहेड और भूमिगत बिजली लाइनों को स्थापित करने की संभावना, उपयुक्तता और सीमाओं की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति की स्थापना की है। 

दैनिक जागरण की एक रपट के अनुसार राजस्थान और गुजरात में लुप्तप्राय पक्षी सोन चिड़िया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे के बीच संतुलन के उपाय सुझाने के लिए एक समिति का गठन करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह प्रभावी नहीं होता। शीर्ष अदालत ने अप्रैल, 2021 के अपने  आदेश को वापिस ले  लिया जिसके तहत दोनों राज्यों में 80 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में ओवरहेड पारेषण (ट्रांसमिशन) लाइनों को भूमिगत किया जाना था।    

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा की उच्च वोल्टेज और कम वोल्टेज वाली विद्युत लाइनों को भूमिगत करने के लिए आदेश पर नए सिरे से विचार की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, 'जलवायु परिवर्तन, समानता के अधिकार की संवैधानिक गारंटी को प्रभावित कर सकता है। जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से स्थिर और अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता। स्वास्थ्य का अधिकार (जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है ) वायु प्रदूषण, वेक्टर जनित बीमारियों (संक्रामक बीमारियों) में बदलाव, बढ़ता तापमान, सूखा, फसल ख़राब होने के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी, तूफान एवं बाढ़ जैसे कारकों से प्रभावित होता है। 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा है, ‘संविधान के अनुच्छेद 48(ए) में प्रावधान है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करने और देश के जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा. अनुच्छेद 51ए के खंड (जी) में कहा गया है कि जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा. हालांकि, ये संविधान के न्यायसंगत प्रावधान नहीं हैं, लेकिन ये संकेत हैं कि संविधान प्राकृतिक दुनिया के महत्व को पहचानता है.’

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लिखा है, कि

“इस अदालत के निर्णयों, राज्य के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए कार्यों और प्रतिबद्धताओं, और जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक सहमति के आलोक में, अनुच्छेद 14 के अंतर्गत समानता के अधिकार और अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार की सराहना की जानी चाहिए। इनसे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से मुक्ति का अधिकार हमारा है। इस अधिकार को सक्रिय रूप से लागू करते समय यह महत्वपूर्ण है कि न्यायालय प्रभावित समुदायों के अन्य अधिकारों, जैसे कि विस्थापन के खिलाफ अधिकार और संबंधित अधिकारों के प्रति भी सजग रहे।”

साथ ही पीठ ने कहा, 'स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार में यह सिद्धांत समाहित है कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे वातावरण में रहने का अधिकार है जो स्वच्छ, सुरक्षित और उसके लिए अनुकूल हो। स्वस्थ पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को मान्यता देकर राज्य पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों से निपटा जा सके और वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा की जा सके।' शीर्ष अदालत ने कहा, 'भारत जैसे राज्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों पर कायम रहना अनिवार्य है जिसमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने, जलवायु के प्रभावों के अनुकूल होना और स्वस्थ वातावरण में रहने के सभी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना शामिल है।  फैसला ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की सुरक्षा के लिए वन्यजीव कार्यकर्ता एमकेरंजीत सिंह और अन्य की याचिका पर आया है।

लाइवलॉ के एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के संरक्षण के लिए 'प्राथमिकता' माने जाने वाले क्षेत्रों में ओवरहेड और भूमिगत पावरलाइन स्थापित करने की गुंजाइश, व्यवहार्यता और सीमा की जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया। यह मुद्दा मुख्य रूप से सौर पैनल परियोजनाओं में स्थापित ओवरहेड ट्रांसमिशन तारों के साथ टकराव के कारण बस्टर्ड की मौत से उत्पन्न होता है।

हमें यह जानकर खुशी होगी कि 8 अक्टूबर 2021 को, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने एक स्वच्छ, स्वस्थ और स्थायी पर्यावरण के अधिकार को एक आवश्यक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने वाला एक प्रस्ताव पारित किया। यद्यपि यह अधिकार पहले से ही 150 से अधिक राष्ट्रीय अदालतों द्वारा स्वीकृत है, इसकी वैश्विक मान्यता से अंतर्राष्ट्रीय कानून में इसके समावेश और देशीय स्तर पर इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मार्ग प्रशस्त होता है।

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Post By: Shivendra
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