![ग्रास लैंड बर्ड (फोटो साभार - natureinfocus.in)](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/2024-06/grassland%20Birds.png?itok=66d9T7ra)
उत्तर प्रदेश में प्रचंड गर्मी के बीच इटावा जिले में यमुना और चंबल के भेद में बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के आशियाने खाक होने का अंदेशा जताया जा रहा है। आग से छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के घोंसले जल कर खाक होने की यह संख्या एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो आंकी जा रही है।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ.राजीव चौहान बताते है कि आज इकदिल इलाके में यमुना पट्टी के बराखेड़ा के जंगलों में आग लगने का वाक्या सामने आया है जिसके बारे मे ऐसा कहा जा रहा है कि अवैध रूप से लकड़ी कटान करने वाले लोग अपनी करतूतों को छुपाने के लिए बीहड़ में आग लगा देते है ताकि लकड़ी कटान का कोई सबूत जांच के दौरान जांच अधिकारियों के हाथ ना लग सके दूसरे बीहड़ों में चरवाहे आग लगाने की घटनाओ को इसलिए अंजाम देते हैं ताकि बरसात से पहले बीहड़ की सूख चुकी घास साफ हो जाए जिससे बरसात के दिनों में उगी नई कोपल से उनके अपने मवेशियों को चराने में कोई कठिनाई ना हो लेकिन इन आग लगाने वालों को यह नहीं पता कि यमुना और चंबल पट्टी में पाए जाने वाली छोटी चिड़ियों एवं ग्रासलैंड बर्ड को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने में जुटे हुए हैं।
यमुना चंबल पट्टी में आग से हरा पटरंग,तीतर,बटेर, काला तीतर,सिल्वर बिल,बया,मैना और जंगल बेबलर के आशियाने के बड़े पैमाने पर जलकर खाक होने का अंदेशा जताया जा रहा है। आग लगने से इन पक्षियों का प्रजनन तो बुरी तरह से प्रभावित होता ही है साथ ही खाद्य श्रृंखला को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचता है। चौहान ने बताया कि अगर सही से देखा जाए तो यमुना और चंबल पट्टी में दो महीने के दायरे में आग लगने की करीब दो दर्जन के आसपास छोटी बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया है पहले तो यह माना जाता रहा है कि यह आग लगने की घटनाएं अनायास घटित होती है लेकिन अब ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं कि आग लगाने की घटनाओ को साजिशन अंजाम दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि पिछले दो महीने से देखा जा रहा है चंबल और यमुना पट्टी के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर आग लगने की घटनाएं सामने आ रही है। बेशक आग लगने की घटना के बाद दमकल कर्मी वनकर्मियों की मदद से आग पर काबू पा जाते लेकिन आग लगने की घटनाओं से जहां बड़े पैमाने पर वन संपदा को नुकसान पहुंचता है वहीं पर यमुना और चंबल पट्टी में पाए जाने वाले विभिन्न वन्य जीव भी जल कर खाक हो जाते हैं, उन्होंने बताया कि यह है अंदेशा ऐसे ही नहीं जताया जा रहा है इसके भी कई अहम कारण सामने आए हैं मुख्य कारण यह है बताया जा रहा है कि जब आग लगने की घटना घटित होती है तो उस इलाके में पाए जाने वाली छोटी एवं ग्रासलैंड बर्ड पूरी तरह से गायब हो जाते हैं जबकि आग लगने से पहले उनकी मधुर आवाजों को अच्छी तरह से सुना जाता रहा है।
उन्होंने बताया कि इन दिनों सभी प्राकृतिक आपदाओं की तरह, दुनिया भर में जंगल की आग भी आम होती जा रही है। हाल के वर्षों में, हमने एक के बाद एक त्रासदियाँ देखी हैं लेकिन यमुना और चंबल के बीच बीहड़ी इलाके के लकड़कट्टे एवं चरवाहों को यह समझ में नहीं आ रहा और गाहे बगाहै वह इन जंगलों में लगातार आग लगा रहे हैं जो धीरे-धीरे विकराल रूप लेकर जंगलों का नाश कर रही है। जंगल की आग का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि यह तेजी से फैलती है और महत्वपूर्ण आवास को नष्ट कर देती है। जंगल की आग 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से जंगल को जला सकती है। आवास का नुकसान सभी जानवरों को बहुत प्रभावित करता है। वे प्रजातियाँ जो हर साल एक ही प्रजनन स्थल और घोंसले के शिकार स्थलों पर लौटती हैं, उन्हें विशेष रूप से जंगल की आग से खतरा होता है। कुछ मामलों में, प्रजनन के मौसम को खोने के बाद किसी प्रजाति को ठीक होने और सुरक्षित घर को फिर से स्थापित करने में सालों लग सकते हैं।
चौहान ने बताया कि जंगल की आग के रास्ते में फंसे जानवरों के लिए, प्रभाव जानलेवा हो सकते हैं। आग से निकलने वाला गाढ़ा धुआँ जानवरों को भ्रमित कर सकता है, उनकी आँखों में जलन पैदा कर सकता है और साँस लेने में कठिनाई पैदा कर सकता है। जलने से अत्यधिक दर्द होता है और बड़े पैमाने पर वन्यजीवों की मृत्यु हो सकती है,जानवर अपनी जन्मजात क्षमताओं पर भरोसा करते हैं। कई जानवर आग के शुरुआती संकेतों को पहचानने के लिए अपनी गंध और अपने आस-पास के वातावरण के प्रति जागरूकता की अपनी गहरी समझ का उपयोग करते हैं, लेकिन कभी-कभी उन्हें सुरक्षित भागने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है। सरीसृप और उभयचर जैसे छोटे जानवर जो आग से बच नहीं सकते, वे बिलों या चट्टानों के नीचे शरण लेते हैं। अन्य मामलों में बच्चों वाले जंगली जानवर या बाड़ जैसी मानव निर्मित संरचनाओं में फंसे हुए जानवर बच नहीं पाते। चाहे उन्हें जंगल की आग का सामना करने के लिए छोड़ दिया जाए या सुरक्षित दूरी पर, सभी प्रकार के वन्यजीव स्तनधारी, पक्षी और मछलियाँ - इन आपदाओं से बहुत प्रभावित होते हैं।
चौहान ने बताया कि जंगल में आग लगने के दौरान अक्सर खाद्य स्रोत नष्ट हो जाते हैं या दूषित हो जाते हैं, जिससे वन्यजीवों के पास अपने घर की सीमा से बाहर एक नए क्षेत्र में प्रवेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता। जब जानवर भोजन और आवास की तलाश में यात्रा करते हैं, तो उन्हें वाहन की टक्कर, पालतू जानवरों के हमले और नए शिकारियों जैसे अतिरिक्त खतरों का खतरा होता है। एक बार जब वे किसी नए क्षेत्र में पहुँच जाते हैं, तो उन्हें अक्सर क्षेत्रीय विवादों का सामना करना पड़ता है और सीमित संसाधनों के लिए उन्हें अन्य जानवरों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। जंगल में आग लगने जैसी आपदाओं के समय, संसाधनों और सुरक्षित भूमि की तलाश में बिखरने वाले वन्यजीवों को असामान्य स्थानों पर देखना बहुत आम बात है।
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