सूखे के कगार पर खेत-खलिहान

देश को हासिल होने वाली कुल सालाना बरसात में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की हिस्सेदारी लगभग 75 फीसद तक होती है। दूसरी ओर, भारत के कुल सालाना कृषि उत्पादन में खरीफ की फसलों का योगदान 53 फीसद होता है। ऐसे में जाहिर है कि अगर यह मानसून डगमगाता है तो देश की नाजुक खाद्य टोकरी में हलचल शुरू हो जाती है। देश के 83 फीसद क्षेत्र पर सामान्य से कम वर्षा हुई है। मोटे तौर पर हालात सूखे जैसे बन रहे हैं।

मौसम वैज्ञानिकों, सरकार और किसानों को पूरी उम्मीद है कि जुलाई-अगस्त में बादल बरसेंगे जिससे कमजोर मानसून के कारण हुए अब तक के नुकसान की भरपाई हो जाएगी लेकिन यह एक पूर्वानुमान है, जिसको मानसून कभी भी धता बता सकता है। बरसात के पानी को खेत में संजोकर रखने की जरूरत है जिसके लिए मेड़बंदी, कच्चे बांध आदि बनाये जा सकते हैं। यदि मुमकिन हो तो खेत में एक छोटा कच्चा तालाब बनाकर बरसाती पानी को संजोया जा सकता है।

अपनी पुरानी आदत के मुताबिक इस बार फिर मानसून अपने वादों और हमारी उम्मीदों को झटका देता नजर आ रहा है। मौसम विभाग द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट (1 जुलाई) के मुताबिक पूरे देश में बरसात की 31 फीसद तक कमी आ चुकी है, जो खासतौर से खेती के लिए चिंता का सबब बन गई है। पूरे देश पर निगाह डालें तो उत्तर-पूर्व की बरसात में केवल पांच फीसद कमी आई है जबकि उत्तर प्रदेश समेत पूरे उत्तर भारत में 69 फीसद की कमी देखी जा चुकी है। मध्य-भारत में 39 फीसद और दक्षिण-भारत में 29 फीसद की कमी दर्ज की गई है। कुल मिलाकर देखें तो देश के 83 फीसद क्षेत्र पर सामान्य से कम वर्षा हुई है। मोटे तौर पर हालात सूखे जैसे बन रहे हैं लेकिन मौसम विभाग का मानना है कि जुलाई-अगस्त के दौरान मानसून जोर पकड़ेगा, वर्षा सामान्य होगी, जिससे इस कमी की काफी हद तक भरपाई हो सकती है। आगे चलकर मानसून का ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है। पर हकीकत यह है कि बरसात के बिना हर गुजरता दिन खेती के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। दरअसल, यही वह समय है, जब देश भर में खरीफ की फसलों की बुआई की जाती है। इनमें धान, मोटे अनाज, दालें, गन्ना और कपास प्रमुख हैं। मूंगफली, सूरजमुखी, तिल जैसी तिलहनी फसलें भी इसी मानसून के दौरान बोई जाती हैं, जिसे हम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून कहते हैं।

देश को हासिल होने वाली कुल सालाना बरसात में इस मानसून की हिस्सेदारी लगभग 75 फीसद तक होती है। दूसरी ओर, भारत के कुल सालाना कृषि उत्पादन में खरीफ की फसलों का योगदान 53 फीसद होता है। ऐसे में जाहिर है कि अगर यह मानसून डगमगाता है तो देश की नाजुक खाद्य टोकरी में हलचल शुरू हो जाती है। अप्रैल के महीने में मौसम विभाग ने सामान्य मानसून की घोषणा की थी, जिसके आधार पर भारत सरकार ने खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य में कम से कम 15 फीसद से लेकर 53 फीसद तक वृद्धि की घोषणा कर दी थी ताकि किसान खरीफ फसलों पर पूरा ध्यान दें। लेकिन अब मामला कुछ-कुछ उल्टा होता नजर आ रहा है। खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल धान है, जो देश के कुल अनाज उत्पादन में 38 फीसद का योगदान देती है। लेकिन इसकी बुआई के लिए खेतों में पर्याप्त पानी होना जरूरी है।

यही वजह है कि अभी तक धान की बुआई लगभग 31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक लगभग 42 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर बुआई हो चुकी थी। धान की बुआई के मामले में पंजाब सबसे आगे है क्योंकि यहां के किसान पानी के लिए केवल बरसात पर निर्भर नहीं हैं, ये नलकूप द्वारा जमीन के भीतर के पानी का उपयोग करते हैं। सिंचाई की सुविधा वाले अन्य क्षेत्रों में धान की नर्सरी तैयार करने का काम जोर-शोर से चल रहा है। किसानों को उम्मीद है कि बादल बरसेंगे और धान की बुआई जोर पकड़ लेगी। हरियाणा में हल्का पानी बरसने के बाद बौने धान की रोपाई का काम धीमी रफ्तार से शुरू हो गया है। पूर्वी-उत्तर प्रदेश में कम अवधि में तैयार होने वाली धान की फसलें उगाने की सिफारिश की गई है ताकि उत्पादन में कमी न आए।

दाल पर है ज्यादा दारोमदार


जहां तक दालों का सवाल है, मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में खरीफ की दालें जैसे अरहर, मूंग, उड़द आदि उगाई जाती हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर क्षेत्रों में बारिश की 34 से 38 फीसद की कमी देखी गई है। पिछले साल इस समय तक लगभग छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर दालों की बुआई हो चुकी थी, परंतु इस साल इसमें सीधे दो लाख हेक्टेयर तक की कमी आ गई। अगर जल्दी ही मानसून जोर नहीं पकड़ता तो दालों के उत्पादन पर चोट पड़ने की आशंका बताई जा रही है। दूसरी ओर वैज्ञानिक उचित सलाह देकर इस चोट को कम से कम करने की कोशिश कर रहे हैं। कर्नाटक में, जहां बरसात में दो सप्ताह से ज्यादा की देरी हो गई है, किसानों को अरहर की मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्में बोने की सिफारिश की गई है। जहां दाल की बुआई हो चुकी है, वहां खेतों में पलवार लगाकर नमी को संजोने की सलाह दी गई है। उत्तरी कर्नाटक में किसानों को मूंग और उड़द की बुआई न करने की ताकीद दी गई है।

अपने विशेष पोषणीय महत्व के कारण मक्का, ज्वार और जौ जैसे मोटे अनाजों की मांग बढ़ती जा रही है। किसानों को इसमें फायदा भी हो रहा है लेकिन मध्य और पश्चिमी भारत में कमजोर मानसून के कारण इन फसलों की अब तक केवल 14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो पाई जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 25 लाख हेक्टेयर के आसपास था। मसाले भी आए चपेट में किसानों को अच्छी आमदनी दिलाने वाले चटपटे मसाले भी मानसून की चपेट में आ गए हैं। दक्षिणी भारत में मिर्च की बुआई मानसून के साथ शुरू हो जाती है लेकिन इस बार कमजोर मानसून के कारण बुआई की रफ्तार धीमी है। यदि मध्य जुलाई तक बरसात हो जाती है तो मिर्च की बुआई जोर पकड़ लेगी। लगभग यही हाल हल्दी का भी है। देश के कुल हल्दी उत्पादन में आंध्र प्रदेश 50 फीसद की हिस्सेदारी करता है और आम तौर पर यहां 67 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर हल्दी की बुआई की जाती है लेकिन इस बार अभी तक केवल 7 हजार हेक्टेयर पर बुआई हुई है। इसकी एक वजह यह भी है कि किसान इन हालातों में हल्दी की खेती को जोखिम समझते हुए दूसरी फसलों की ओर मुड़ रहे हैं।

कमजोर मानसून के निराशाजनक माहौल में कपास और गन्ना उजली किरण की तरह दिखाई दे रहे हैं। सिंचित क्षेत्रों में कपास की बुआई का काम पूरा हो चुका है जबकि अन्य भागों के किसान अभी मानसून का इंतजार कर रहे हैं। कपास की बुआई के अब तक के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस साल कपास का क्षेत्र लगभग 6 लाख हेक्टेयर अधिक है। दूसरी ओर गन्ने की बुआई समाप्त हो चुकी है और इस साल पिछले साल के मुकाबले गन्ना लगभग तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अधिक बोया गया है। लेकिन अगर मानसून जल्दी ही सामान्य नहीं होता तो फसल की बढ़वार पर चोट पहुंच सकती है जिससे सन् 2012-13 में चीनी का उत्पादन घट सकता है।

संकट से निपटने की तैयारी


मौसम वैज्ञानिकों, सरकार और किसानों को पूरी उम्मीद है कि जुलाई-अगस्त में बादल बरसेंगे जिससे कमजोर मानसून के कारण हुए अब तक के नुकसान की भरपाई हो जाएगी लेकिन यह एक पूर्वानुमान है, जिसको मानसून कभी भी धता बता सकता है। इस अंदेशे को देखते हुए सरकार ने सूखे से निपटने की कुछ योजनाएं बना ली हैं और कुछ पर जोर-शोर से काम चल रहा है। दरअसल, कृषि अनुसंधान के कारण सूखे से निपटने के लिए आज हमारे तरकश में कई तीर हैं। मसलन यदि सूखा जोर पकड़ता है तो कम पानी चाहने वाली वैकल्पिक फसलों और किस्मों की बुआई की जा सकती है। अनेक फसलों की ऐसी किस्में भी उपलब्ध हैं, जो सूखे को आसानी से सह लेती हैं या कम अवधि में तैयार होकर पूरा उत्पादन देती है। केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया है कि ऐसी फसलों के बीज पर्याप्त मात्रा में तैयार रखे जाएं और इन्हें किसानों तक जल्दी से जल्दी पहुंचाया जाए। इसी तरह, बरसात के पानी को खेत में संजोकर रखने की जरूरत है जिसके लिए मेड़बंदी, कच्चे बांध आदि बनाये जा सकते हैं।

यदि मुमकिन हो तो खेत में एक छोटा कच्चा तालाब बनाकर बरसाती पानी को संजोया जा सकता है। अगर इस तालाब में पॉलीथीन का अस्तर लगा दिया जाए तो रिसाव से होने वाले पानी के नुकसान पर अंकुश लग जाता है। खेत में नमी को संजोकर रखने के लिए पलवार लगाई जा सकती है, जिससे पानी भाप बनकर नहीं उड़ता। खेतों में पानी के कुशल उपयोग के लिए टपक सिंचाई जैसी प्रणालियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अनेक फसलों में फुहारा सिंचाई कारगर साबित हुई है। सिंचाई की इन आधुनिक विधियों के इस्तेमाल के लिए भारत सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है। भारत सरकार ने सूखे के संभावित संकट से निपटने के लिए एक योजना तैयार कर ली है, जिस पर अमल के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिया जा रहा है। देश की शीषर्स्थ कृषि अनुसंधान संस्था, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत काम करने वाले केंद्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने अनेक राज्यों के लिए जिला स्तर पर आपदा योजनाएं तैयार की हैं।

इनमें किसानों को पशुपालन से लेकर खेती-बाड़ी और बागवानी तक के लिए आवश्यक सुझाव दिए गए हैं। अब जरूरत इस बात की है कि वैज्ञानिकों की इन सलाहों को विभिन्न प्रचार-प्रसार माध्यमों का उपयोग करते हुए प्रभावित क्षेत्रों के किसानों तक तत्परता के साथ पहुंचाया जाए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने देश के कोने-कोने में 630 कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किए हैं जो किसानों से सीधे संपर्क रखने का काम करते हैं। सन् 2009 के सूखे के दौरान इन केंद्रों ने किसानों के साथ मिलकर, उन्हें सही सलाह और सहायता देकर, सूखे के प्रभाव को कम करने में अहम भूमिका निभाई थी। इस बार भी कृषि विज्ञान केंद्रों का नेटवर्क सजग और सतर्क है। पूरी उम्मीद है कि अगर मानसून अपना वादा नहीं निभाता है तो देश का कृषि समुदाय इस आपदा का मजबूती से सामना करेगा। देश की खाद्य सुरक्षा को कोई आंच नहीं आने वाली।

Path Alias

/articles/sauukhae-kae-kagaara-para-khaeta-khalaihaana

Post By: Hindi
×