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समाज, संस्कृति, धर्म और इतिहास
हजारों जलस्रोत अतिक्रमण का शिकार समाज और सरकार करें भूल सुधार
Posted on 26 Jul, 2023 03:05 PMहाल के दिनों में एक माफिया की बहुत चर्चा रही। अपने वर्चस्व के दिनों में उक्त माफिया ने किसी पर जबरन की जमीन लूटी, तो किसी के मकान पर जबरन कब्जा किया। उसके जीवित रहते अधिकांश सताए लोग सामने आकर शिकायत की हिम्मत भी नहीं कर पाते थे। माफिया के आखिरी अंजाम तक पहुंचने के बाद उसके सताए हुए लोग एक-एक कर सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि सरकार अब आयोग बनाकर पीड़ितों की सुनवाई करने के पश्चात उनकी संपत्
प्राचीन जलविज्ञान
Posted on 28 Jun, 2023 01:30 PMजलविज्ञान के आविष्कर्ता वैदिक ऋषि ‘सिन्धुद्वीप’
शनिदेव की आराधनामंत्र के मंत्रद्रष्टा ऋषि भी थे सिन्धुद्वीप
"जलमेव जीवनम"
मूल सरयू ही पुरानी सरयू है
Posted on 31 May, 2023 03:26 PMप्रत्येक धारणा के पीछे कोई न कोई ठोस कारण होता है। तथ्य बताते हैं कि पूर्व काल में सरयू जी भैरव धाम महाराजगंज के सामने से होकर प्रवाहित होती थीं। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि सरयू जी की एक प्रवाहित शाखा यहाँ से होकर जाती थी। सरकारी अभिलेखों ने लोक मानस में व्याप्त ज्ञान को ग्रहण करने और उस आधार पर शोध करके अभिलेख तैयार करने की परेशानी नहीं उठायी। जिसका परिणाम यह हुआ कि सहायक नदी को छोटी सरयू
शास्त्रों से संगम तक मूल सरयू
Posted on 30 May, 2023 03:39 PMमनुना मानवेन्द्रण या पुरी निर्मिता स्वयं
आदिकवि वाल्मीकि ‘श्री सरयू जी’ को अयोध्या धाम से उत्तर की ओर प्रवाहित होना बताते हैं। श्रीराम और विश्वामित्र के संवाद में ब्रह्मर्षि बताते हैं कि ‘श्री सरयू’ भगवान के मानस से संभव हुई हैं। श्री रुद्रयामल के श्री अयोध्या महात्म्य में राजा दशरथ कहते हैं- "त्वन्तु नेत्रोद्भवा देवि हर्रेनारायणस्य हि ।" हे देवि!
रंग बरसे
Posted on 30 Dec, 2010 09:50 AMबदरंग सर्दी विदा लेने को है और होली के रंग आँखों में तैरने लगे हैं। मौसम बदल तो रहा है पर संसार के हर कोने में शायद रंगभरी होली नहीं खेली जा सके। सिर्फ रंग लगा लेने या रंग में नहा लेने से ही तो होली नहीं हो जाती, रंगों की विविधता वाले इस पर्व को जीवन के अनेक रंगों में शामिल किया जा सकता है।
प्राकृतिक रंगों की खोज घर - बाहर
Posted on 30 Dec, 2010 09:43 AMहोली के सूखे रंगों को गुलाल कहा जाता है। मूल रूप से यह रंग फूलों और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से बनता है जिनमें रंगने की प्रवृत्ति होती है। समय के साथ इसमें बदलाव आया और होली के ये रंग अब रसायन भी होते हैं और कुछ तेज़ रासायनिक पदार्थों से तैयार किए जाते हैं। ये रासायनिक रंग हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते हैं, विशेषतौर पर आँखों और त्वचा के लिए। इन्हीं सब समस्याओं ने फिर से हमें प्राकृतिक रंगों की
रस ही जीवन / जीवन रस है
Posted on 09 Jul, 2010 05:09 PMसाल भर हमारे कोमल मनों में जो तनाव जमा होते रहते हैं, उनसे उल्लासपूर्ण विमुक्ति का दुर्लभ मौका, जब आप कोयले को कोयला और कीचड़ को कीचड़ कह सकते हैं। होली के दिन कोई किसी का गुसैयां नहीं रह जाता। किसी से भी प्यार किया जा सकता है और किसी पर भी छींटाकशी की जा सकती है। लेकिन यह छींटाकशी भी विनोद भाव के परिणामस्वरूप मृदु और सहनीय हो जाती है। बल्कि जिसका परिहास किया जाता है, वह भी बुरा न मानने का अभिनय करते हुए बरबस हंस पड़ता है। शायद यही 'बुरा न मानो होली है' के हर्ष-विनोद घोष का उद्गम स्थल है। भारत में होली सबसे सरस पर्व है। दशहरा और दीपावली से भी ज्यादा। दूसरे त्योहारों में कोई न कोई वांछा है। या वांछा की पूर्ति का सुख। होली दोनों से परे है। यह बस है, जैसे प्रकृति है। अस्तित्व के आनंद का उत्सव। वांछा और वांछा की पूर्ति, दोनों में द्वंद्व है। यह जय-पराजय से जुड़ा हुआ है। दोनों ही एक अधूरी दास्तान हैं। सच यह है कि दूसरा हारे, तब भी हमारी पराजय है। कोई भी सज्जन किसी और को दुखी देखना नहीं चाहता। किसी का वध करके उसे खुशी नहीं होती। करुणानिधान राम ने जब रावण पर अंतिम प्राणहंता तीर चलाया होगा, तो उनका हृदय विषाद से भर गया होगा। उनके दिल में हूक उठी होगी कि काश, रावण ने ऐसा कुछ न किया होता जो उसके लिए मृत्यु का आह्वान बन जाए; काश, उसने अंगद के माध्यम से भेजे गए संधि प्रस्ताव को मंजूर कर लिया होता; काश, उसने विभीषण की सत सलाह का तिरस्कार नहीं किया होता। अर्जुन का विषाद तो बहुत ही प्रसिद्ध है। युद्ध छिड़ने के ऐन पहले उसे अपने तीर-तूरीण भारी लगने लगे।सूखी होली..
Posted on 04 Feb, 2009 07:33 AMसूखी होली खेलने से बच सकता है पानी
नई दिल्ली, पानी की कमी को देखते हुए लोगों को चाहिए कि वह सूखी होली खेलें. इस तरह वह जल संरक्षण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. यह अच्छी बात है कि सामाजिक संस्थाएं और आमजन इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं.