पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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9. रिचार्ज शॉफ्ट
Posted on 30 Jan, 2010 12:47 PM

यह संरचना विशेषतः उन क्षेत्रों में, जहाँ तालाब और नालों की तलहटी में काली मिट्टी की अपारगम्य परत का निर्माण होने से वर्षा का पानी ऊपर से बह जाता है। साथ ही उस क्षेत्र विशेष के कुओं का जलस्तर नीचे चला गया हो, वहाँ पर इसका निर्माण किया जाता है। इस संरचना में तालाब या नाले की सतह पर काली मिट्टी की अपारगम्य पर्त को पार कर पारगम्य चट्टानों तक खोदते हैं, जिसको धँसने से रोकने के लिए मजबूत लोहे की जाली

भू-जल का कृत्रिम पुनर्भरण
Posted on 30 Jan, 2010 09:51 AM

(Artificial Recharge of ground water)

जीवन दायिनी
Posted on 28 Jan, 2010 07:34 PM


झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के रूपापाड़ा की पहाड़ी................!

बूंदों को रोकने की चर्चा के साथ-साथ कभी हम नीचे तलहटी में बने तालाब को देखते तो कभी काली घाटी में हर गर्मी में सूख जाने वाले इतिहास के साक्षी हैंडपंपों के किस्से सुनते।

pahadi
डेढ़ हजार में नदी जिन्दा
Posted on 27 Jan, 2010 01:04 PM

डेढ़ हजार में नदी जिन्दा

river
शिप्रा तट सभ्यताओं की जननी रहा है
Posted on 27 Jan, 2010 10:19 AM

प्राचीन सभ्यताएँ नदी-तटों पर ही पनपीं। शिप्रातट भी इसका अपवाद नहीं है। उज्जैन और महिदपुर में उत्खनन किये गये। महिदपुर उत्खनन से ताम्राश्मीय सभ्यता (2100 ई.पू.) से ई.पू.

उद्धारक शिप्रा उद्धारकों की बाट जोह रही
Posted on 27 Jan, 2010 09:53 AM

इस शिप्रा को अपने जीवन के लिए पानी उधार भी लेना पड़ता है। वही शिप्रा जो कभी सबका उद्धार करती थी और जो आशा की किरण भी- अब अपने उद्धार का रास्ता देख रही है। शिप्रा का परिसर रमणीय प्राकृतिक छटा से भरपूर था। यह सरल तरल है सिप्रा। जगह-जगह कमलकुल खिले थे। विचरते थे हंस और बतख। यक्ष और गन्धर्व इसका सेवन करते थे। तटों पर गीत गाती थीं किन्नरियाँ। पक्षी कलरव करते रहते थे। भ्रमरों की गुँजार होती रहती थी।

शिप्रा की पन्द्रह बहनें
Posted on 26 Jan, 2010 09:30 AM

अवन्तीखण्ड में उज्जयिनी के परिसर में बहती प्रायः पन्द्रह नदियाँ बतायी गयी हैं। जो शिप्रा से मिलती थीं और जिनका पौराणिक महत्व था। उसमें से कुछ तो साहित्य में भी याद की गयी हैं। ऐसी नदियों में गन्धवती सर्वप्रमुख है। कालिदास के मेघदूत, कथासारित्सागर और जैन साहित्य में इसका स्मरण किया गया है। कालिदास का कहना है कि वर्षा आने तक भी यह बहती रहती थी और इसमें नारियाँ स्नान करती थीं, आज उसके दर्शन नहीं ह

भाग 2
Posted on 26 Jan, 2010 08:28 AM

जाली करंज असल में लालबाग में ऐसा संगम है जहाँ सूखा भण्डारा, मूल भंडारा और चिंताहरण का जल आकर एकत्र होता था। मुगलकाल में ‘जाली करंज’ से बुरहानपुर को पानी प्रदाय किया जाता था। यह पानी पकी मिट्टी और तराशे गये पत्थर के पाइपों के जरिये नगर के विभिन्न करंजों और वाटर टावरों में पहुंचाया जाता था। पानी के दबाव से पकी मिट्टी के पाइप फट न जायें इसलिए इन पाइपों के आसपास चूना, गारा और ईंट की मोटी चिनाई कर द

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