पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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तालाब
Posted on 10 Feb, 2010 09:56 AM बारिश या किसी झरने के पानी को रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों का चलन हमारे यहां बहुत पुराना है। देश में ऐसे हजारों पुराने तालाब आज भी मौजूद हैं। हाल ही में इलाहाबाद के पास श्रृंगवेरपुर में 2,000 साल से ज्यादा पुराना तालाब मिला है। यही वजह है जहां से श्री राम ने अपने 14 साल के वनवास का आरंभ किया था और निषादराज गुह की नाव से गंगा पार की थी।

दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में अनेक पुराने तालाबों से आज भी सिंचाई की जाती है। बेल्लारी जिले में तुंगभद्रा नदी के किनारे जो पंपासागर तालाब है, शायद यही रामायण में वर्णित ‘पपासर’ है। धान और तालाबों के क्षेत्र तेलंगाना में भी अनेक पुराने तालाब मौजूद हैं। वारंगल और करीमनगर जिलों के गांव पाखाल, रामप्पा, लकनावरम और शनीग्राम के तालाब 12वीं और 13 वीं सदी में तत्कालीन राजाओं ने बनवाए थे। कट्टागिरी में ऐसे तालाब की लंबी श्रृंखला है। 1096 के शिलालेखों में इस श्रृंखला का वर्णन है। ये तालाब पनढाल के अलग-अलग स्तरों पर बने हैं।

प्रदूषण
Posted on 10 Feb, 2010 09:43 AM सतही पानी की अपेक्षा भूमिगत पानी के लिए प्रदूषण का खतरा कम है। लेकिन उसके प्रदूषण को पहचानना और सुधारना ज्यादा कठिन है। ताजा अध्ययनों से लगता है कि भूमिगत पानी के प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है। कुछ इलाकों में तो यह काफी गंभीर है। इसके कुछेक दोषी ये हैं : राजस्थान में कपड़ा रंगाई-छपाई की इकाइयां, तमिलनाडु के चमड़ा शोधन केंद्र और रेशा उद्योग केंद्र।
बढ़ता दुरुपयोग
Posted on 10 Feb, 2010 09:35 AM नलकूपों की संख्या बढ़ने का अर्थ है भूमिगत पानी का ज्यादा उपयोग। जो हाल दूसरे सभी संसाधनों के शोषण का है, वही पानी का भी है। उसका बेहिसाब दुरुपयोग होता है। इस कारण से भी पानी की सतह नीची होती जा रही है। कुदरती तौर पर जितना पानी भूमिगत भंडार में भरता है, उससे ज्यादा पानी नलकूप बाहर खींच लाते हैं। इसका मतलब यह कि यह कीमती भंडार हमेशा से घटता जा रहा है। इस घटे की मात्रा के बारे में कोई अधिकृत तथ्य प्र
भूमिगत जल
Posted on 10 Feb, 2010 09:19 AM जिस देश को आज से 20 साल के बाद पानी के भयंकर संकट का सामना करना पड़ेगा, उसके लिए भूमिगत पानी का सही उपयोग करना बहुत ही महत्वपूर्ण है पर इस मामले में भी देश की भूमिगत जल संपदा और उसके उपयोग से संबधित पूरे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी कुछ अनुमान इस प्रकार है: बताया जाता है कि 300 मीटर गहराई में लगभग 3 अरब 70 क.हे.मी.
पानी की मांग
Posted on 09 Feb, 2010 12:27 PM पानी की मुख्य मांग सिंचाई के लिए है। 1974 में देश में जितना पानी इस्तेमाल हुआ, इसका 92 प्रतिशत सिंचाई में गया। बचे 8 प्रतिशत से घरेलू और औद्योगिक जरूरतें पूरी की गईं। देहातों में या तो पानी है नहीं, या पानी उनकी पहुंच में नहीं है, इसलिए कम से कम पानी से उन्हें काम चलाना पड़ता है। अगर मान लें कि सन् 2025 तक घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार पूरा और पर्याप्त प्रबंध होता है, तो कुल पानी का 73 प्
देश की जलकुंडली
Posted on 09 Feb, 2010 12:21 PM हालत दिन-ब-दिन ज्यादा-से-ज्यादा बिगड़ती जा रही है, फिर भी हम अपने जल संसाधनों के उपयोग इतनी लापरवाही से कर रहे हैं मानो वे कभी खत्म ही नहीं होने वाले हैं। दामोदर घाटी प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष श्री सुधीर सेन इसे नेतृत्व का संसाधनों के बारे में ‘अज्ञान’ कहते हैं।
गंधमार्दन : सत्याग्रह की ताजी गंध
Posted on 09 Feb, 2010 11:27 AM वन और खनिज संपदाओं से परिपूर्ण उड़ीसा राज्य के तीन जिले संबलपुर, बलांगीर और कालाहांडी के केंद्र में गंधमार्दन पर्वत श्रृंखला फैली हुई है। इस पर्वत श्रृंखला के एक तरफ संबलपुर जिले के पदमपुर का अकाल पीड़ित इलाका है और दूसरी तरफ सैंकड़ो वर्ग किलोमीटरों में कालाहांडी का भयानक अकालग्रस्त इलाका फैला है। पदमपुर की हालत फिर भी थोड़ी बहुत अच्छी ही है लेकिन कालाहांडी इलाके के अकालजनित दारिद्र्य का वर्णन करन
खुदाई की राजनीति
Posted on 09 Feb, 2010 11:09 AM हमारे यहां खुदाई के कई कारण हैं, कुछ बिलकुल साफ हैं तो कुछ छिपे हुए भी। खदानें कई उद्योगों के कच्चे माल के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। देश के कुल निर्यात में कच्चा लोहा 6 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक है और इस प्रकार खदानें विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण साधन हैं। सरकारी तौर पर खदानों की हिमायत इसी बिना पर की जाती है। उनसे पिछड़े इलाकों में रोजगार मिलता है और क्षेत्रीय विकास में मदद। लेकिन खदानों के अलिखित प्रत
भूमि संवर्धन को अनिवार्य बनाया जाए खनन से पहले
Posted on 09 Feb, 2010 10:59 AM देश की लाखों हेक्टेयर खेतों को बंजर बनाने का ही इरादा कर लिया हो तो बात दूसरी है, वरना भूमि संवर्धन को खान उद्योग का एक अनिवार्य अंग मानकर चलना बहुत जरूरी है। अमेरिका में किसी भी खदान को तभी मंजूरी दी जाती है जब भूमि संवर्धन की योजना भी साथ-साथ पेश की जाती है। न्यूयार्क के साइराक्यूज स्थित कॉलेज ऑफ एनवायर्नमेंटल सांइसेस एंड फारेस्ट्री के प्रो.
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