पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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संदर्भः
Posted on 23 Jan, 2010 04:29 PM


1. वायु पुराण/अ.-27/श्लोक-18 से 22 तक

2. ‘मानव’ शब्द का प्रयोग भारतीय परम्परा के अनुसार भारत भूमि पर जन्में ‘मनु’ का अपत्य (सन्तान) = मानव।

3. 225-266.

पंचगव्य-सफेद गाय का मूत्र, काली गाय का गोबर, लाल गाय का दूध, सफेद गाय का दही तथा कपिला गाय का घी- इन पाँच ‘गव्यों’ का यौगिक ‘पंचगव्य’ कहलाता है। यह ‘महापातक नाशक’ है-

उपसंहार
Posted on 23 Jan, 2010 04:26 PM

‘जल’ के ऊपर लिखने के लिए इतना अधिक मौजूद है कि एक स्वतंत्र ग्रन्थ लिखा जा सकता है। किन्तु समय और कलेवर की सीमा विवश कर रही है कि मैं अपने आलेख को यहीं समाप्त कर दूँ।

परिशिष्ट-2 - जल के आध्यात्मिक प्रयोग
Posted on 23 Jan, 2010 04:24 PM

‘जल’ के केवल भौतिक उपयोग नहीं होते, बल्कि कुछ ऐसे उपयोग भी हैं जो सत्य होते हुए भी अविश्वसनीय हैं। इन्हें आध्यात्मिक प्रयोग कहा जा सकता है।

परिशिष्ट-1 - जलरूप देवता
Posted on 23 Jan, 2010 04:20 PM

आपो ह्यायतनं विष्णोः, स च एवाम्भसां पतिः।
तस्मादप्सु स्मरेन्नित्यं, नारायणमघापहम्।।

‘जल’ विष्णु का निवास स्थान (अथवा जल ही उनका स्वरूप) है। विष्णु ही ‘जल’ के स्वामी हैं। इस कारण सदैव, जल में पापापहारी विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

-ब्रह्मपुराण, 60/34

आपो देवगणाः प्रोक्ता, आपः पितृगणास्तथा।
तस्मादप्सु जलं देयं,पितृणां हितभिच्छता।।

(3)‘जल-माहात्म्य’
Posted on 23 Jan, 2010 04:17 PM

शिव-पार्वती के विवाह के समय, जबकि ब्रह्माजी हवन कर रहे थे, अचानक वे कामातुर हो गये। उनके मन में ग्लानि उत्पन्न हुई और वे अपराधबोध से दुखी हो गये। ब्रह्माजी उठकर मण्डप से बाहर निकल आये।

भगवान शिव समझ गये। उन्होंने ब्रह्मा को ‘निष्पाप’ करने के उद्देश्य से अपने पास बुलाया। फिर बोले- ‘पृथ्वी और जल, पापियों के पाप को नष्ट करने में सहायक होते हैं। मैं इनका ‘सार सर्वस्व’ निकालूँगा।’

(2)‘जल ने ब्रह्म हत्या ली’
Posted on 23 Jan, 2010 04:13 PM

‘स्कन्द पुराण’ के माहेश्वर-केदारखण्ड के पन्द्रहवें अध्याय में एक प्राचीन आख्यान दिया हुआ है। तदनुसार देवासुर-संग्राम के पश्चात् जबकि ‘देवगुरु’ बृहस्पतिजी इन्द्र की अवहेलना से दुखी होकर उन्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये थे, इन्द्र का पौरोहित्य विश्वरूप नामक महर्षि करते थे। विश्वरूप ‘त्रिशिरा’ थे, जब कोई यज्ञ या अनुष्ठान करते तब अपने एक मुख से देवताओं का, दूसरे से दैत्यों का और तीसरे से मनुष्यों का आ

जलकथा
Posted on 23 Jan, 2010 04:10 PM

(1)‘पोखरा बनवाने का पुण्य’


(नारद पुराण/पूर्व भाग/प्रथम पाद)
गौंड देश में एक वीरभद्र नामक राजा थे। उनकी रानी का नाम चम्पक मंजरी था। उनके मंत्री का नाम बुद्धिसागर था।

जलाशय-निर्माण का पुण्य फल
Posted on 23 Jan, 2010 04:04 PM

(नारद पुराण/पूर्व भाग/पाद)

- - जो स्वयं अथवा दूसरे के द्वारा तालाब बनवाता है, उसके पुण्य की संख्या बताना असंभव है।
- यदि एक राही भी पोखरे का जल पी ले तो उसके बनाने वाले पुरुष के सब पाप अवश्य नष्ट हो जाते हैं।
- जो मनुष्य एक दिन भी भूमि पर जल का संग्रह एवं संरक्षण कर लेता है, वह सब पापों से छूट कर सौ वर्षों तक स्वर्गलोक में निवास करता है।

जल-शुद्धिकरण
Posted on 23 Jan, 2010 03:57 PM

यदि कूप, वापी, पोखर इत्यादि का जल किसी कारण अशुद्ध या अपवित्र हो जाये ते इसके लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए-

वापी कूप तडागानां दूषितानां च शोधनम्।
अद्धरेत षट्शतं पूर्णं पंचगव्येन शुद्धयाति ।।225।।

जल के गुण-दोष
Posted on 23 Jan, 2010 03:51 PM

‘गरुड़-पुराण’ आचार काण्ड के अनुसार ‘जल’ में निम्नलिखित गुण/दोष पाये जाते हैः

- वर्षा का जल तीनों दोषों (वात-पित्त-कफ) का नाशक, लघु स्वादिष्ट तथा विषापहारक है।
- नदी का जल वातवर्धक, रुक्ष, सरस, मधुर और लघु होता है।
- वापी का जल वात-कफ विनाशक होता है।
- झरने का जल रुचिकर, अग्निदीपक, रुक्ष कफनाशक और लधु होता है।
- कुएँ का जल अग्निदीपक, पित्तवर्धक तथा

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