: ऊपर से देखने पर इस संरचना में कुछ भी दिखाई नहीं देता। सब कुछ भूमि के अंदर होता है। इस संरचना द्वारा नदी-नालों की सतह से ढलान की ओर जाने वाली पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर डाइक के ऊपर की ओर भू-जल संग्रहण में वृद्धि की जाती है। डाइक के गहराई एवं चौडाई का निर्णय वहाँ की परिस्थिति के अनुसार किया जाता है।
उपयुक्त स्थल पर नाले की पूर्ण चौड़ाई में 1 से 2 मीटर चौड़ी तथा गहराई में कठोर चट्टान आने तक एक गड्ढे का निर्माण किया जाता है। अब काली मिट्टी से कचरा साफ कर उसे 2-3 दिन भीगने रख दिया जाता है। फिर उसके गोले बनाकर गड्ढे में डालकर उसे अच्छी तरह से दबाकर उसकी तह बनाई जाती है। इस तरह एक के ऊपर एक कई तह बनाकर गड्ढे को भर दिया जाता है। इस प्रकार काली मिट्टी की एक दीवार, जिसे पडल कहते हैं, बन जाती है, जो नाले के ऊपरी भाग से नीचे आने वाले जल प्रवाह को रोककर आसपास स्थित कुओं व नलकूपों का पुनर्भरण करती है। जैसा कि चित्र क्र. 6 में दर्शाया गया है।
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