Posted on 23 Mar, 2010 09:23 AM ऊख सरवती दिवला धान। इन्हें छाड़ि जनि बोओ आन।।
शब्दार्थ- सरवती-सरौती नामक ईख।
भावार्थ- घाघ का कहना है कि ईख में सरौती ईख और धान में देहुला नामक धान बोना चाहिए क्योंकि इनमें पैदावार अधिक होती है। अतः इन्हीं की बुआई करनी चाहिए अन्य की नहीं।
Posted on 23 Mar, 2010 09:19 AM अगहन बवा। कहूँ मन कहूँ सवा।।
भावार्थ- यदि अगहन मास में गेहूँ, जौ की बोवाई होती है तो कहीं बीघा पीछे मन भर और कहीं सवा मन की उपज होती है अर्थात् अगहन में बोवाई से पैदावार कम हो जाती है।
Posted on 23 Mar, 2010 09:08 AM अद्रा धान पुनर्बसु पैया। गया किसान जो रोप चिरैया।।
भावार्थ- धान को आर्द्रा नक्षत्र में रोपने से फसल अच्छी होती है। पुनर्वसु नक्षत्र में रोपने पर केवल पैया (बिना चावल का धान) ही हाथ आयेगा और जो किसान धान की रोपाई पुष्य नक्षत्र में करते हैं तो कुछ भी हाथ नहीं लगता है।
Posted on 22 Mar, 2010 04:55 PM अगहर खेती अगहर मार। घाघ कहैं तौ कबहुँ न हार।।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि खेती और मारपीट के मामले में पहल करने वाला व्यक्ति कभी हारता नहीं है। लड़ाई-झगड़े में पहले मारने की नीति को सर्वत्र श्रेय दिया जाता है लेकिन खेती के मामले में हमेशा अगहर होना लाभदायक नहीं होता, फिर भी लाभ की सम्भावना अधिक होती है।