पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

Term Path Alias

/sub-categories/books-and-book-reviews

धान, पान, उखेरा
Posted on 23 Mar, 2010 01:08 PM
धान, पान, उखेरा।
तीनों पानी के चेरा।।


भावार्थ- धान, पान और ईख तीनों पानी के गुलाम हैं अर्थात् इनकी फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

तरकारी है तरकारी
Posted on 23 Mar, 2010 01:06 PM
तरकारी है तरकारी।
या में पानी की अधिकारी।।


भावार्थ- तरकारी को सदैव तर रखना चाहिए। इसमें सिंचाई की अधिकता होनी चाहिए।

सिंचाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 23 Mar, 2010 12:57 PM
काले फूल न पाया पानी।
धान मरा अध बीच जवानी।।


भावार्थ- यदि धान का फूल काला हो गया हो और उसे पानी नहीं मिला तो समझो वह आधी जवानी में ही मर जायेगा अर्थात् फसल नष्ट हो जायेगी।

हस्त न बज री
Posted on 23 Mar, 2010 12:55 PM
हस्त न बज री, चित्रा न चना।
स्वाति न गोहूँ, बिसाखा न धना।।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र में बाजरा, चित्रा में चना, स्वाति में गेंहूँ और विशाखा नक्षत्र में धान बोने से फसल चौपट हो जाती है।

हरिन फलांगन काकरी
Posted on 23 Mar, 2010 12:45 PM
हरिन फलांगन काकरी, पैगे पैग कपास।
जाय कहो किसान से, बोवै घनी उखार।।


शब्दार्थ- उखार-ईख, गन्ना।

भावार्थ- हिरण के एक छलांग की दूरी पर ककड़ी और मनुष्य के कदम-कदम की दूरी पर कपास का बीज बोना चाहिए। घाघ का कहना है कि किसान से जाकर कहो कि ईख को घनी बोवे।

साठी में साठी करै
Posted on 23 Mar, 2010 12:43 PM
साठी में साठी करै, बाड़ी में बाड़ी।
ईख में जो धान बौवै, फूँको वाकी दाढ़ी।।


भावार्थ- जो साठी धान के खेत में फिर धान बोता है और कपास के खेत में कपास और ईख के खेत में धान बोता है तो अच्छा नहीं करता। इससे पैदावार कम हो जाती है।

सन घना बन बेगरा
Posted on 23 Mar, 2010 12:41 PM
सन घना बन बेगरा, मेढक फन्दे ज्वार।
पैर पैर से बाजरा, करै दरिद्रै पार।।


शब्दार्थ- बन-कपास।

भावार्थ- सनई को घनी, कपास को बीड़र अर्थात् दूर-दूर, ज्वार को मेढक की कुदान के फासले पर और बाजरा एक-एक कदम की दूरी पर बोना चाहिए। अगर ऐसी बोवाई हुई तो वह दरिद्रता को दूर कर देती है।

सावन सावाँ अगहन जवा
Posted on 23 Mar, 2010 12:39 PM
सावन सावाँ अगहन जवा।
जितना बौवें उतना लवा।।


शब्दार्थ- उतना लवा- उतना ही लेना।

भावार्थ- सावन में सावाँ और अगहन में जौ, तौल में जितना बोया जायेगा, उतना ही काटा जायेगा अर्थात् इस समय बोवाई करने से फसल अच्छी नहीं होती है।

रोहिनी खाट मृगसिरा छउनी
Posted on 23 Mar, 2010 12:37 PM
रोहिनी खाट मृगसिरा छउनी।
अद्रा आये धान की बोउनी।।


शब्दार्थ- खाट-खटिया, चारपाई। छउनी-छप्पर।

भावार्थ- रोहिणी नक्षत्र में चारपाई बिनना और मृगशिरा नक्षत्र में छप्पर छाना उत्तम माना गया है क्योंकि आर्द्रा नक्षत्र आते ही धान की बोउनी (बुवाई) शुरू करनी पड़ती है।

रोहिनि मृगसिरा बोये मका
Posted on 23 Mar, 2010 12:32 PM
रोहिनि मृगसिरा बोये मका। उरद मडुवा दे नहीं टका।।
मृगसिरा में जो बोये चना। जमींदार को कुछ नहीं देना।।
बोये बाजरा आये पुख। फिर मन में मत भोगो सुख।।

×