Posted on 24 Mar, 2010 09:13 AM गेहूँ बाहे चना दलाये। धान बिगाहे मक्की निराये।। ऊख कसाये।
भावार्थ- गेहूँ के खेत को कई बार जोतने से, चने को खोंटने से, धान के खेत को बिदाहने से (धान के उग जाने पर फिर जुतवा देने से), मक्के को निराने से और ईख को बोने से पहले पानी में छोड़ देने से पैदावार अच्छी होती है।
Posted on 24 Mar, 2010 09:10 AM कुही अमावस मूल बिन, बिन रोहिनि अखतीज। स्रवन बिना हो स्रावनी, आधा उपजै बीज।।
शब्दार्थ- स्रावनी-सावन की पूर्णिमा।
भावार्थ- यदि अमावस मूल नक्षत्र में न पड़े, अक्षय तृतीया को रोहिणी न हो और श्रावण पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र न पड़े तो बीज आधा उगेगा अर्थात् पैदावार कम होगी।
Posted on 24 Mar, 2010 09:00 AM दो दिन पछुवाँ छः पुरवाई। गेहूँ जव को लेव दँवाई।। ताको बाद ओसावै सोई। भूसा दाना अलगै होई।।
भावार्थ- पछुवा हवा में दो दिन और पुरवा में छः दिन गेहूँ एवं जौ की मड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद मड़ाई करने के बाद ओसाने से उसका भूसा और दाना अलग होता है।