असाढ़ मास पुनगौना


असाढ़ मास पुनगौना। धुजा बाँधि के देखौ पौना।
जो पै पवन पुरब से आवै। उपजै अन्न मेघ झर लावै।।

अगिन कोन जो बहै समीरा। पड़ै काल दुख सहै सरीरा।।

दखिन बहै जल थल अलगीरा। ताहि समें जूझैं बड़ बीरा।।
तीरथ कोन बूँद ना परैं। राजा परजा भूखन मरैं।।

पच्छिम बहै नीक कर जानो। पड़ै तुसार तेज डर मानो।।
बायब बह जल थल अति भारी। मूस उगाह दंड बस नारी।।

उत्तर उपजै बहु धन धान। खेत बात सुख करै किसान।।
कोन इसान दुन्दुभी बाजै। दही भात भोजन सब गाजै।।


शब्दार्थ- पुनगौना- पूर्णिमा। उगाह-उत्पत्ति।

भावार्थ- आषाढ़ मास की पूर्णमासी को झण्डी बाँधकर हवा का रुख देखिये। यदि पूर्व की हवा हो तो पैदावार और वर्षा अधिक होगी। यदि अग्नि (पूर्व और दक्षिण के) कोण की हो तो अकाल पड़ेगा एवम् शारीरिक कष्ट मिलेगा। हवा यदि दक्षिण की हो तो वर्षा अधिक होगी और बड़े-बड़े योद्धा आपस में लड़ेगे। यिद दिक्षिण-पश्चिम कोण की हवा हो तो वर्षा कम होगी, राजा प्रजा दोनों भूखे मरेंगे। यदि पश्चिम की हवा हो तो मौसम अच्छा रहेगा, लेकिन पाला ज्यादा पड़ेगा। यदि वायव्य (पश्चिम-उत्तर) कोण की हवा हो तो वर्षा अधिक होगी और चूहे अधिक पैदा होंगे जो हानि पहुँचायेंगे। प्लेग होगा और स्त्रियाँ दुःख पायेंगी। हवा यदि उत्तर दिशा की हो तो धन-धान्य की उपज अधिक होगी और किसान मौज करेंगे। हवा यदि ईशान (पूर्व-उत्तर के) कोण की हो तो पैदावार अच्छी होगी, शादी-ब्याह अधिक होंगे। लोग दही-भात खाकर मस्त रहेंगे।

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Post By: tridmin
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