पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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बांध पर काम शुरू हुआ-पारस्परिक मतभेद भी सामने आया
Posted on 02 Dec, 2011 01:16 PM इस गाँव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के रेवेन्यू विभाग के हाथ में चला गया। यह खस्ता हालत में था। तय हुआ कि इस जमींदारी बांध को (जो कि चित्र में BA और H होता हुआ MN तक जाता था उसे) बढ़ा कर D C G होते हुए B में वापस मिला दिया जाय। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पूवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षि
चानपुरा रिंग बांध की शुरुआत
Posted on 02 Dec, 2011 10:28 AM गाँव के दोनों टोलों को बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति दिलवाने के लिए ब्रह्मचारी जी ने एक योजना बनवाई जिसमें 8.5 किलोमीटर लम्बा रिंग बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया। बिहार के कैबिनेट में 1980 में चानपुरा रिंग बांध की योजना पास हुई। 1981 में सिंचाई विभाग के झंझारपुर डिवीजन को इसके निर्माण कार्य को चालू करने के लिए सूचित किया गया था मगर झंझारपुर डिवीजन ने इस योजना को हाथ में लेने से इसलिए इनकार कर दिया
इन्दिरा गांधी के योग गुरु-स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
Posted on 02 Dec, 2011 09:46 AM ऐसी पृष्ठभूमि के गाँव चानपुरा में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था और वे स्वर्गीय बमभोल चौधरी के बेटे थे। 14-15 साल की उम्र में वे गाँव छोड़ कर चले गए थे और लम्बे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गाँव और परिवार वालों को यह विश्वास हो चला था कि वे मर गए होंगे।
बिहार में बागमती नदी
Posted on 02 Dec, 2011 09:43 AM

बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर तथा जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 6,500 वर्ग किलोमीटर होता है। इस तरह नदी उद्गम से गंगा तक कुल लम्बाई लगभग 589 किलोमीटर और कुल जल ग्रहण क्षेत्र 14,384 वर्ग किलोमीटर बैठता है। बिहार के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (1994) के अनुसार बागमती के ऊपरी क्षेत्र काठमाण्डू के आस-पास सालाना औसत बारिश लगभग 1460 मिलीमीटर होती है जबकि चम्पारण में 1392 मि.मी., सीतामढ़ी में 1184 मि.मी., मुजफ्फरपुर में 1184 मि.मी., दरभंगा में 1250 मि.मी. और समस्तीपुर में 1169 मि.मी. होती है।

बिहार में बागमती से संबंधित पौराणिक या लोक-कथाएं प्रचलन में नहीं हैं मगर यहाँ इसके पानी की अद्भुत उर्वरक क्षमता का लोहा सभी लोग मानते हैं। यहाँ इस नदी को तीन अलग-अलग खण्डों में देखा जा सकता है- उत्तर बागमती, मध्य बागमती और दक्षिण-पूर्व बागमती।

उत्तर बागमती


नेपाल में लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा तय कर के यह नदी बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर-नरकटियागंज रेल लाइन पर स्थित ढेंग रेलवे स्टेशन के 2.5 किलोमीटर उत्तर में भारत में प्रवेश करती है (चित्रा-1.3)। नेपाल में इस नदी का कुल जल ग्रहण क्षेत्र 7884 वर्ग किलोमीटर है। ढेंग और बैरगनियाँ स्टेशन को जोड़ने वाली रेल लाइन पर बने पुल संख्या 89, 90, 91, 91A और 91B से होकर यह नदी दक्षिण दिशा में चलती है
चानपुरा रिंग बांध
Posted on 02 Dec, 2011 09:20 AM

8.1 चानपुरा-परिचय

पुराणों में बागमती
Posted on 30 Nov, 2011 05:33 PM पौराणिक कथाओं और बौद्ध साहित्य में बागमती का नाम बड़ी प्रमुखता से उभरता है। स्कंदपुराण के हिमवत्खंड के नेपाल महात्म्य में बागमती के बारे में बहुत सी कहानियाँ मिलती हैं।

प्रह्लाद की तपस्या और शंकर के अट्टहास से उत्पन्न बागमती

बागमती कथा
Posted on 17 Nov, 2011 09:08 AM

परिचय

जलवायु संकट : प्रभावित होती आजीविका, सामाजिक गतिविधियां और कठिनतम होता जीवन
Posted on 12 Nov, 2011 01:17 PM

पड़ोसी गांव पल्ला में आलू, राजमा तथा चौलाई का उत्पदन बढ़ा है और आपदाओं से उनका नुकसान भी कम हुआ है। इसका मुख्य कारण है कि वहां पर आज भी जैविक खेती की जाती है तथा गांव, वनों से घिरा है। अतः जिस संस्था से मैं जुड़ा हूं, वह कुछ सालों से इस दिशा में काम कर रही है। जल व बीज संरक्षण को लेकर पदयात्राएं की गई हैं। विलुप्त पारंपरिक जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने व स्थानीय वृक्षारोपण का भी काम किया गया है। मुझे उम्मीद है कि इससे कुछ तो बिगड़ती स्थिति की रफ्तार को हम रोक पाएंगे

मैं लक्ष्मण सिंह नेगी गांव पिल्खी, विकासखंड जोशीमठ, जिला चमोली उत्तराखंड का निवासी हूं। करीब 4800 फीट की ऊंचाई पर स्थित, हमारा गांव छोटा ही है जिसमें 14-15 परिवार ही हैं। मैं एक सीमांत कृषक हूं। मेरे परिवार की करीब 15 नाली (करीब 6 बीघा) जमीन है जिसमें हम मिश्रित खेती कर धान, गेहूँ, रामदाना, राजमा, सरसों, खीर, हल्दी, धनिया, मिर्च आदि उगाते हैं। पिछले 10 वर्षों से मैं अपने इलाके में कार्य कर रही एक सामाजिक संस्था, जयनन्दा देवी स्वरोजगार शिक्षण संस्थान ‘जनदेश’ से भी जुड़ा हूं। 9 नवंबर 2000 में स्थापित पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में जनपद चमोली उच्च हिमालयी क्षेत्र है। हमारे जनपद में सदाबहार बर्फीली चोटियों की श्रृंखला है और यहीं हिन्दु धर्म की आस्था के कई तीर्थ स्थित हैं, जिनमें प्रमुख बद्रीनाथ धाम। हमारे जनपद में ही कई प्रमुख नदियों का उद्गम है जिनमें सबसे बड़ी है अलकनंदा। इस नदी में छोटी नदियों के अलावा, पांच बड़ी नदियों का संगम पड़ता है जिनमें से पांचवा संगम देवप्रयाग पर भागीरथी से मिलने के बाद दोनों गंगा कहलाती हैं।
जलवायु संकट : तटीय जीवन पर गहराता संकट
Posted on 10 Nov, 2011 04:40 PM मेरा नाम अजंता है। मैं कराय जिला मछुआरिन संघ, नागई की प्रतिनिधि के रूप में यहां आई हूं। हमारे मछुआरिन संघ में 12000 से अधिक सदस्य हैं।

जलवायु परिवर्तन


पिछले 10-15 सालों में इस क्षेत्र की जलवायु में बहुत अधिक बदलाव देखे जा रहे हैं। बरसात बहुत कम हो गई है व समय पर नहीं आ रही है या गलत समय पर आ रही है जिससे बहुत नुकसान हो रहा है। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है और लू भी चलती है और शीत लहर भी। मानसून पूरी से अनियमित और नाकाम हो गया है। ठंड और गर्मी दोनों की तीव्रता बढ़ी है। वर्षा की मात्रा बहुत ही कम हो गई है। हवा की दिशा व रफ्तार भी अनिश्चित हो गई है और बढ़ गई है।
जलवायु संकट : कृषि, पशुपालन व जीवनयापन की कठिनाइयां
Posted on 08 Nov, 2011 01:46 PM

नदियों का जलस्तर बढ़ जाने के कारण ऐसे उथले स्थान अब कम हो गए हैं जहाँ से ये मछुआरे मछली पकड़ा करते थे। नदियों के किनारों पर मिट्टी और गाद जमा होने के कारण बीच में उनकी गहराई बढ़ गई है। इस क्षेत्र की नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की कई प्रजातियाँ जैसे हिल्सा, पॉम्फ्रेट, मेकरिल, चकलि (क्षेत्रीय नाम), बॉल (क्षेत्रीय नाम), सिम्यूल (क्षेत्रीय नाम), मेड (क्षेत्रीय नाम), तारा आदि की संख्या बहुत कम हो गई है।

मैं जिला 24 परगना, सुंदरवन के बड़े विकासखंडों में से एक पाथर प्रतिमा का किसान नेता अनिमेश गिरि हूँ। यहाँ रहने वाले अधिकांश लोग छोटे किसान और मछुआरा समुदाय के हैं। चक्रवात, मिट्टी की अत्यधिक लवणता और पानी के भराव ने हमारे गांव सहित पूरे सुंदरवन को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है।

सुंदरवन संसार के सबसे असुरक्षित पारिस्थितिकी क्षेत्रों में से एक है। यहाँ किसी न किसी प्राकृतिक आपदा के आने का डर हमेशा ही बना रहता है। यह एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ मीठा पानी, दलदल और विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों से भरा हुआ जंगल है, जो 10 हजार किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। निम्न स्तर का विकास, आधारभूत संरचनाओं का अभाव, अत्यधिक गरीबी, ऊर्जा की मांग अत्यधिक होने के बाद भी उसकी कम उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, संक्रामक और पानी से होने वाली बीमारियों डायरिया, मलेरिया आदि की अधिकता इस क्षेत्र की कमजोरियाँ बन चुकी हैं।
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