ऐसी पृष्ठभूमि के गाँव चानपुरा में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था और वे स्वर्गीय बमभोल चौधरी के बेटे थे। 14-15 साल की उम्र में वे गाँव छोड़ कर चले गए थे और लम्बे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गाँव और परिवार वालों को यह विश्वास हो चला था कि वे मर गए होंगे। मगर एक बार इसी गाँव के परमाकान्त चौधरी ने, जो पटना के दानापुर कॉलेज के प्रधानाध्यापक थे, नई दिल्ली स्टेशन पर उन्हें देखा और पहचान लिया। गाँव के कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मचारी जी की पहचान चानपुरा के ही उनके एक बालसखा सदाशिव चौधरी ने की थी।
यह 1960 के दशक के अन्त या 1970 के दशक के आरम्भ की घटना रही होगी। जो भी हुआ हो तब तक धीरचन्द्र चौधरी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे और उनके शिष्यों में प्रधानमंत्री से लेकर छोटे बड़े बहुत से सामर्थ्यवान लोग और नेता शामिल थे। वे एक स्थापित व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे। धीरे-धीरे ब्रह्मचारी जी का गाँव से फिर संपर्क स्थापित हुआ। उस समय उनकी माता जी जीवित थीं और उनके दो भाई भी चानपुरा में रहते थे। संपर्क पुनर्जीवित होने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर देने की बलवती इच्छा ने ब्रह्मचारी जी को प्रेरित किया कि वे चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक रिंग बांध बनवा दें तो चारों ओर नदी-नालों से घिरा उनका यह गाँव हर साल आने वाली बाढ़ के थपेड़ों से बच जायेगा। अपने गाँव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैय्या वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक पेट्रोल टैंक भी गाँव में बनाना चाहा। पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान गाँव में आ भी गया था जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। अपने गाँव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था जिसे पूरा करने की सामर्थ्य भी उनमें थी।
यह 1960 के दशक के अन्त या 1970 के दशक के आरम्भ की घटना रही होगी। जो भी हुआ हो तब तक धीरचन्द्र चौधरी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे और उनके शिष्यों में प्रधानमंत्री से लेकर छोटे बड़े बहुत से सामर्थ्यवान लोग और नेता शामिल थे। वे एक स्थापित व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे। धीरे-धीरे ब्रह्मचारी जी का गाँव से फिर संपर्क स्थापित हुआ। उस समय उनकी माता जी जीवित थीं और उनके दो भाई भी चानपुरा में रहते थे। संपर्क पुनर्जीवित होने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर देने की बलवती इच्छा ने ब्रह्मचारी जी को प्रेरित किया कि वे चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक रिंग बांध बनवा दें तो चारों ओर नदी-नालों से घिरा उनका यह गाँव हर साल आने वाली बाढ़ के थपेड़ों से बच जायेगा। अपने गाँव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैय्या वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक पेट्रोल टैंक भी गाँव में बनाना चाहा। पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान गाँव में आ भी गया था जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। अपने गाँव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था जिसे पूरा करने की सामर्थ्य भी उनमें थी।
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