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क्लाइमेट इमरजेंसी : गर बर्फ पिघलती जाए…
Posted on 29 Jun, 2024 04:14 PM

जिन वजहों से क्लाइमेट इमरजेंसी के हालात पैदा हुए हैं, उनमें से एक है ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से ग्लेशियरों और ध्रुवीय इलाकों की बर्फ का पिघलना। हाल ही के वर्षों में वहां बर्फ इतनी तेजी से पिघलने लगी है कि जिसे देखकर डर लगता है। डर की वजह यह है कि इन इलाकों की एक सेंटीमीटर बर्फ पिघलने का असर 60 लाख लोगों पर पड़ता है। इसका अभिप्राय यह है कि इस तरह 60 लाख नए लोग डूब क्षेत्र की जद में आ जाते हैं। इस

ग्लेशियर का अस्तित्व खतरे में
क्लाइमेट इमरजेंसी हंगामा है क्यों बरपा
हवाएं अपना रुख बदल रही हैं। पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। Posted on 29 Jun, 2024 03:45 PM

प्राकृतिक (क्लाइमेट) इमरजेंसी या आपातकाल की बात कोई कपोल कल्पना नहीं है। बल्कि नवंबर, 2019 में विज्ञान के एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल-बायोसाइंस द्वारा भारत समेत दुनिया के 153 देशों के 11,258 वैज्ञानिकों के बीच एक शोध अध्ययन कराया, जिसका नतीजा यह है कि पिछले 40 वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों के अबाध उत्सर्जन और आबादी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी के संसाधनों के अतिशय दोहन, जंगलों के कटने की रफ्तार बढ़ने, ग्ले

जलवायु परिवर्तन आपातकाल के विरोध में प्रदर्शन
पहाड़ों पर बीस साल से घटती आ रही बर्फबारी और सिमटती नदियां
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2003 के बाद से हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में सबसे कम बर्फबारी हुई है। उच्च हिंदू कुश हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह का लगभग 23 प्रतिशत बर्फ के पिघलने से ही आता है। Posted on 28 Jun, 2024 03:16 PM

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के नए शोध के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) में इस साल असामान्य रूप से कम बर्फबारी से भारत में गंगा नदी बेसिन में रहने वाले 60 करोड़ से अधिक लोगों सहित अन्य समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। एचकेएच स्नो अपडेट-2024 के मुख्य लेखक शेर मुहम्मद ने कहा है कि गंगा नदी बेसिन में बर्फ पिघलने का योगदान 10.3 प्रतिशत है, जबकि ग्लेशियर पिघलने का योगदा

हिमालय से निकलने वाली 12 प्रमुख नदी घाटियों के जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है
वाराणसी गंगा में शैवाल खतरनाक बदलावों के दे रहे संकेत
गंगा जल में मानसून से पहले शैवालों का आना गंगा की पारिस्थितिकी में खतरनाक बदलाव का संकेत दे रहे हैं। बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट ऐंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईईएसडी) के वैज्ञानिकों के शोध में कई तथ्य उजागर हुए हैं। ऐसे जल में स्नान से न सिर्फ कई रोग होते हैं बल्कि दुर्लभ परिस्थितियों में मौत भी हो सकती है। Posted on 28 Jun, 2024 09:05 AM

हिन्दुस्तान, वाराणसी। गंगा जल में मानसून से पहले शैवालों का आना गंगा की पारिस्थितिकी में खतरनाक बदलाव का संकेत दे रहे हैं। बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट ऐंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईईएसडी) के वैज्ञानिकों के शोध में कई तथ्य उजागर हुए हैं। ऐसे जल में स्नान से न सिर्फ कई रोग होते हैं बल्कि दुर्लभ परिस्थितियों में मौत भी हो सकती है।

वाराणसी गंगा में शैवाल खतरनाक (फोटो साभार - एडॉब)
राजस्थान का जयपुर शहर भी तरस रहा है पानी के लिए
2019 में शुरू हुए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'हर घर नल जल' ने इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है। जल शक्ति मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार इस योजना के जरिए देश के 19 करोड़ से अधिक घरों में से लगभग 15 करोड़ घरों में नल के कनेक्शन लगाए जा चुके हैं। जो कुल घरों की संख्या का 77.10 प्रतिशत है। पीने के पानी की उपलब्धता के मायने में जलजीवन मिशन अभी कई पड़ाव पार करने हैं। Posted on 27 Jun, 2024 08:34 AM

देश में लगातार बढ़ते तापमान के साथ ही पीने के पानी की समस्या भी बढ़ी है। इससे राजधानी दिल्ली और अन्य महानगर भी अछूते नहीं हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी इलाकों में आबाद कच्ची बस्तियों के हालात को बखूबी समझा जा सकता है। जहां आज भी पीने के साफ पानी के लिए परिवारों को संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि 2019 में शुरू हुए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'हर घर नल जल' ने इस समस्या को काफ

बाबा रामदेव नगर बस्ती में जलजीवन मिशन का पानी नहीं पहुंच रहा
चंबल नदी के जलस्तर के 10 फीट तक घटने से दुर्लभ जलचर खतरे में
इटावा जिले के उदी स्थित केंद्रीय जल आयोग के स्थल प्रभारी मनीष जैन बताते है कि इस माह चंबल नदी का जलस्तर 105.30 मीटर चल रहा है,एक सप्ताह से इसी अनुरूप जलस्तर टिका हुआ नजर आ रहा है जब की पिछले दस साल पहले इन दिनों जलस्तर 107.08 मीटर तक इन दिनों रिकॉर्ड किया गया था।  चंबल नदी में भयानक रूप से गिर रहा जलस्तर जलीय जीवन के लिए काफी खतरनाक है, जानिए कैसे Posted on 27 Jun, 2024 08:18 AM

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में प्रवाहित देश की सबसे स्वच्छ चंबल नदी के जलस्तर के प्रचंड गर्मी में करीब 10 फुट के आसपास घटने से दुर्लभ जलचरों को खासी तादाद में नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है। इटावा जिले के उदी स्थित केंद्रीय जल आयोग के स्थल प्रभारी मनीष जैन बताते है कि इस माह चंबल नदी का जलस्तर 105.30 मीटर चल रहा है,एक सप्ताह से इसी अनुरूप जलस्तर टिका हुआ नजर आ रहा है जब की पिछले दस साल प

चंबल नदी में भयानक रूप से गिर रहा जलस्तर
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का सरकारी दावा पत्र: देश के दो बड़े राज्यों (उ.प्र. एवं म.प्र.) के मध्य जल की आपूर्ति के लिए नदी जोड़ो परियोजना
हाल ही में विश्व जल दिवस 22 मार्च के अवसर पर, केन-बेतवा नदी इंटरलिंकिंग परियोजना को लागू करने के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने केंन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य नदियों के बीच के क्षेत्र के माध्यम से अधिशेष क्षेत्रों से सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जल-दुर्लभ क्षेत्रों तक पानी पहुंचाना है। इस प्रकार नदी जोड़ने की आजाद भारत की पहली बड़ी परियोजना की शुरुआत को हरी झंडी मिल गई है।
Posted on 20 Jun, 2024 12:52 PM

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच मतभेद को सुलझाकर 22 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्चुअल मौजूदगी में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस परियोजना के लिए केंन्द्र सरकार एक खास केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट अथॉरिटी बनाएगी। यह परियोजना 8 वर्षों में पूरी होगी और इसकी 9

केन बेतवा लिंक मैप
उत्तराखंड में जल संरक्षण एवं संवर्धन की प्रासंगिकता
किसी भी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक समृद्धि के लिये घरेलू उपयोग के समान ही स्वच्छ जल जरूरी होता है, तभी उसका समुचित लाभ मिल पाता है। जहां तक उत्तराखण्ड राज्य की बात है, यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि एक समय था जब यहां अनेक प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध थे, नदियां, गाड़-गधेरे, घारे, कुंए, नौले, झरने चाल-खाल, झील, ताल आदि बहुतायत से उपलब्ध थे, इन प्राकृतिक जल संसाधनों की अधिकता एवं बहुत बड़े भू-भाग में फैले सघन वन क्षेत्र को मध्यनजर रखते हुये लकड़ी और पानी की कमी की कल्पना तक भी नहीं की जाती थी, तभी तो गढ़वाली जनमानस में एक लोकोक्ति प्रचलित वी कि- "हौर घाणि का त गरीव हूह्वया-ह्ह्वया पर लाखडु-पाणि का भि गरीब ह्वया"। अर्थात अन्य वस्तुओं की कमी (गरीबी) तो सम्भव है लेकिन लकड़ी और पानी की भी गरीबी हो सकती है? असम्भव ।
Posted on 20 Jun, 2024 10:10 AM

जल प्रकृति का अनुपम उपहार है। मान्यता है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति जल से ही हुई। जीवनदाता जल की मानव ही नहीं अपितु समस्त जीव-जंतु, वनस्पतियों के लिये कितनी अधिक उपयोगिता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है, तभी तो कहते हैं- "जल ही जीवन है"। जल के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती, जल और जीवन का अटूट सम्बन्ध है। जल तत्व वाष्प और बादल के रूप में आकाश में विद्यमान रहता है, वे बादल बरसकर पृथ्व

प्रतिकात्मक तस्वीर
चंबल पट्टी में आग से पक्षियों की आफत
उत्तर प्रदेश में प्रचंड गर्मी के बीच इटावा जिले में यमुना और चंबल के भेद में बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के आशियाने खाक होने का अंदेशा जताया जा रहा है। जानिए पूरी कहानी Posted on 19 Jun, 2024 08:28 PM

उत्तर प्रदेश में प्रचंड गर्मी के बीच इटावा जिले में यमुना और चंबल के भेद में बड़े पैमाने पर विभिन्न स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के आशियाने खाक होने का अंदेशा जताया जा रहा है। आग से छोटी चिड़िया एवं ग्रास लैंड बर्ड के घोंसले जल कर खाक होने की यह संख्या एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो आंकी जा रही है।

ग्रास लैंड बर्ड (फोटो साभार  - natureinfocus.in)
इटावा : अमृत योजना के तहत हकीकत के बजाय कागजों में खोदे गए तालाब
पांच नदियों के संगम वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में अमृत योजना के तहत तालाबो को हकीकत के बजाय कागजों में खोदने का काम किया गया है। जानें हकीकत और फसाना के बीच की कहानी Posted on 18 Jun, 2024 01:53 PM

पांच नदियों के संगम वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में अमृत योजना के तहत तालाबो को हकीकत के बजाय कागजों में खोदने का काम किया गया है। सरकारी रिकॉर्ड ऐसा बता रहा है कि राज्य और केंद्र सरकार की ओर से अमृत योजना के तहत तालाबों को खोदने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था उसके अनुरूप हकीकत में तालाब नहीं खोदे गए हैं जबकि दस्तावेजी प्रक्रिया में तालाब खोद डाले गए है।

अमृत योजना के तहत खोदे गए तालाबों का हाल
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